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भारतीय जनता पार्टी का संकट बढ़ गया है. अविश्वास प्रस्ताव पर सदन में सरकार ने बहुमत तो साबित कर दिया लेकिन शिवसेना जैसी सबसे पुरानी सहयोगी का अविश्वास प्रस्ताव पर साथ नहीं देना उसकी परेशानी का सबब बन गया है. लोकसभा चुनाव कुछ महीने की देरी है और उत्तर प्रदेश के बाद लोकसभा की सबसे ज्यादा सीटें महाराष्ट्र से ही आती हैं. शिवसेना का अलग चुनाव लड़ना भाजपा की परेशानी बढ़ सकती है.
महाराष्ट्र में पिछली बार 48 में से 43 सीटें शिवसेना और भाजपा गठबंधन को मिली थी. जाहिर है कि भाजपा और शिवसेना के बीच दरार गहरी होती जा रही है और इसका खमियाजा लोकसभा चुनाव में उठाना पड़ेगा. यह सही है कि भाजपा अपने आप को दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी कहती है लेकिन गठबंधन के दौर पर अकेले अपने बूते सत्ता में आना उसके लिए नामुमकिन है. क्षेत्रीय क्षत्रपों के सहयोग के बिना सत्ता में वापसी नामुमकिन है.
भाजपा को भी इसका अंदाज है इसलिए पार्टी अध्यक्ष अमित शाह राज्य-राज्य जाकर अपने उन सहयोगियों को बहलाने-फुसलाने में लगे हैं जो उनसे नाराज हैं. दरअसल नरेंद्र मोदी के सत्ता में आने के बाद भाजपा के पांव जमीन पर नहीं हैं. अमित शाह ही नहीं नरेंद्र मोदी केंद्र की सरकार को एनडीए की सरकार की बजाय भाजपा की सरकार ही कहते फिर रहे थे. इसका नकारात्मक प्रभाव सहयोगी दलों पर पड़ रहा था. लेकिन उपचुनाव में मिली हार के बाद भाजपा अब एनडीए की सरकार पर जोर दे रही है. लेकिन शिवसेना के अलग राह अपनाने की वजह से भाजपा की राह में परेशानी खड़ी हो सकती है. बंगाल में गोरखा मुक्ति मोर्चा की बैसाखी पर खड़ी भाजपा के लिए परेशानी का सबब यह है कि उसने भी भाजपा से अलग होने का फैसला किया है.
शिव सेना के रवैये ने भाजपा नेतृत्व को नाराज किया है और माना जा रहा है कि भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने महाराष्ट्र भाजपा कार्यकर्ताओं से कहा है कि 2019 में लोकसभा का चुनाव अकेले लड़ने की तैयारी करें. शाह ने कार्यकर्ताओं से कहा कि सभी सीटों पर अकेले लड़ने की तैयारी करें. जल्द ही भाजपा सभी 48 सीटों के लिए प्रभारियों का एलान करेगी. शिवसेना पहले ही कह चुकी है कि वह अकेले चुनाव लड़ेगी. शिवसेना पहले ही कह चुकी है कि वह अकेले चुनाव लड़ेगी. हालांकि जून में ही अमित शाह ने शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे से मुलाकात की थी लेकिन उससे भी बात नहीं बनी और शिवसेना ने 2019 में अकेले चुनाव करने की घोषणा की थी.
शिवसेना नेता संजय राउत ने कहा था कि हम अमित शाह का एजेंडा जानते हैं लेकिन शिवसेना ने प्रस्ताव पास कर रखा है कि वह आने वाले सभी चुनाव अकेले लड़ेंगे. उन्होंने कहा था कि हम अपना प्रस्ताव बदलने नहीं जा रहे. शिवसेना भाजपा के ‘संपर्क फॉर समर्थन’ अभियान पर भी उंगली उठा चुकी है. जून में सामना के संपादकीय में शिवसेना कह चुकी है कि प्रधानमंत्री विश्व की यात्रा कर रहे हैं और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह संपर्क कार्यक्रम के तहत देश भर में घूम रहे हैं. शाह ऐसे समय में क्यों मिल रहे हैं, जब भाजपा को उपचुनावों में हार का सामना करना पड़ा है.
लेकिन महाराष्ट्र ही अकेला चिंता का सबब नहीं है भाजपा के लिए. बिहार में पिछले चुनाव में उसने राष्ट्रीय लोक समता पार्टी और लोक जनशक्ति पार्टी से गठबंधन किया था और 40 में से 31 सीटें जीतीं थी. अब नीतीश कुमार की पार्टी भी गठबंधन का हिस्सा है और भाजपा के साथ उसके सुर नहीं मिल रहे हैं. चेहरे और सीटों के सवाल पर जेडीयू आंखें तरेर रही है. हालांकि अमित शाह कुछ दिन पहले नीतीश कुमार से मिल कर गिले-शिकवे दूर करने की कोशिश की थी. लेकिन इस मुलाकात से रालोसपा और लोजपा खुश नहीं है. रालोसपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष और केंद्रीय मानव संसाधन राज्य मंत्री उपेंद्र कुशवाहा ने तो साफ कर दिया है कि सीट शेयरिंग पर तभी बात होगी, जब सब दल बैठेंगे. ऐसी ही कुछ बात लोजपा ने भी की है.
रालोसपा ने तो सात सीटों पर दावा भी ठोंक दिया है. उत्तर प्रदेश में भाजपा की सहयोगी अपना दल है. उसका रुख भी सीटों को लेकर साफ नहीं है. पंजाब में अकाली दल के साथ भी रिश्ते बहुत बेहतर नहीं है. लेकिन पंजाब में भाजपा अकाली दल के साथ मिल कर ही लड़ेगी. दक्षिण के राज्यों में भी उसे सहयोगियों की तलाश है खास कर तमिलनाडु में. लेकिन अभी तक पत्ते नहीं खुले हैं. अविश्वास प्रस्ताव पर एआईडीएमके ने भाजपा का साथ दिया है लेकिन भाजपा अभी पसोपेश में है कि वह एआईडीएमके साथ जाए या फिर रजनीकांत की नई पार्टी के साथ. लेकिन इतना तय है कि भाजपा 2019 के चुनाव में अकेले चुनाव नहीं लड़ सकती है. अगर वह अकेले चुनाव लड़ने का जोखिम लेती है तो फिर दोबारा सत्ता में आने का सपना टूट सकता है.
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