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⧫ कीर्ति राणा
इंदौर । कल्पेश याग्निक आत्महत्या मामले में पर्दे के पीछे कई लोग हैं। इनमें सलोनी के नज़दीकी भी हैं और इस सारे मामले को लंबे समय से जान रहे लोग भी हैं। कल्पेश के इस कदम से परिवार सदमे से जल्दी इसलिए नहीं उबर पाएगा कि कल्यपेश को जानने समझने वाले भी विश्हवास नहीं कर पाए कि नैराश्य शब्द से नफ़रत करने वाला इसी ओर चल पड़ेगा।यह मामला पहली नजर में सलोनी के हाथों मानसिक रूप से प्रताडि़त होकर तीसरी मंज़िल से कूद जाने का लगता ज़रूर है लेकिन क्या इस मामले के चलते कल्पेश के प्रति प्रबंधन के रुख़ में भी तेज़ी से बदलाव आने लगा था और ये अप्रत्याशित-अकल्पनीय कारणों का हल खोजने की अपेक्षा यह कदम उठाना अधिक आसान लगा।
इस मामले में कल्पेश का मोबाइल-लेपटॉप तो पुलिस ने पहले ही जप्त कर लिया था।शुक्रवार को मुंबई में सलोनी के घर पर मारे छापे के दौरान उसका एक मोबाइल और पासपोर्ट भी कब्जे में ले लिया है।यदि जाँच पूरी निष्पक्षता और दबाव-प्रभाव के बिना चली, दोनों मोबाइल की कॉल डिटेल एवं चर्चा का रेकार्ड खंगाला गया तो पर्दे के पीछे ऐसे कई नाम हैं जो कल्पेश की आत्महत्या के कारणों में खलनायक नजर आएँगे। इंदौर से जुड़े एक फिल्म वितरक के एक सदस्य को भी पुलिस सह अभियुक्त बना सकती है।
सूत्र बताते हैं कि सलोनी एक तरफ़ जहाँ मुंबई में अपने इस परिचित के साथ अधिकांश वक्त गुज़ारती थी वहीं कल्पेश से फोन पर लंबी बात करती रहती थी। उसका फोन आने के बाद कल्पेश इतने भयाक्रांत और विचलित हो जाते थे कि अपना कक्ष और कार्यालय परिसर छोड़कर प्रेस कांप्लेक्स के उद्यान के अंधेरे हिस्से में फोन पर बतियाते-गिड़गिड़ाते रहते थे।
फ्रीलांसर से सिटी हेड..! तब एक साथ
कई रिपोर्टरों ने दे दिए थे इस्तीफ़े
इंदौर के अन्य अख़बारों में काम करने के बाद दैनिक भास्कर में फ्रीलांस रिपोर्टर के रूप में सलोनी भोला के नाम से खबरें देने के दौरान कल्पेश के संपर्क में आई सलोनी बाद में स्टाफर बनी और सिटी भास्कर की हेड हो गईं। उस दौरान आंतरिक राजनीति चरम पर होने जैसे हालात का नतीजा यह रहा कि सिटी भास्कर से करीब आठ रिपोर्टरों ने यकायक संस्थान छोड़ दिया। तब कल्पेश ने ही भोपाल आदि से तुरत फुरत रिपोर्टरों को इंदौर तैनात कर स्थिति नहीं बिगड़ने दी थी। साथ ही मैनेजमेंट को यह विश्वास भी हो गया कि सलोनी के काम के मुक़ाबले वो सारे रिपोर्टर कमतर थे इसलिए छोड़ कर चले गए।बाद में सलोनी का ट्रांसफ़र मुंबई भास्कर में कर दिया गया। वहाँ काम करने के दौरान भी वह न सिर्फ कल्पेश के संपर्क में रही बल्कि यह दबाव भी बनाती रही कि वह किसी अन्य को अपने रोज़मर्रा के कार्य की रिपोर्ट नहीं करेगी।
प्रबंधन को कल्पेश ने भी दे दी थी जानकारी
सूत्र बताते हैं कि कल्पेश पर बीते वर्षों में बनाए जाने वाले इस दबाव और सलोनी की स्वैच्छाचारिता की सुधीर, गिरीश अग्रवाल भाइयों को अपने स्तर पर तो निरंतर जानकारी मिल ही रही थी।पानी जब सिर से ऊपर निकलने जैसी स्थिति बनने लगी तो कल्पेश ने भी एमडी को सारी स्थिति से अवगत करा दिया था। नतीजा यह निकला कि सलोनी को संस्थान से निकालने का निर्णय ले लिया गया। संस्थान से ताल्लुक़ नहीं रहने के बाद भी वह लंबे समय से कल्पेश से निरंतर संपर्क में रहते हुए रुपयों के लिए दबाव बनाए हुए थी। पहले पच्चीस लाख, फिर करोड़, दो करोड़ से माँग पाँच करोड़ तक पहुँच गई। जिन हालातों से याग्निक गुज़र रहे थे और सलोनी की बढ़ती डिमांड की जानकारी लगने के बाद याग्निक परिवार को एमडी कार्यालय से यह विश्वास भी दिलाया गया था कि अब इस सारे मामले को वे देखेंगे।इसी बीच सारे संपादकों की मीटिंग की तारीख आ गई, कल्पेश उस मीटिंग की तैयारी में जुटे हुए थे कि एक मैसेज से विचलित हो गए। अपना मोबाइल, लेपटॉप रूम में ही छोड़ कर बाबर निकले। कैमरों के एंगल खंगाले गए तो उसमें कल्पेश तीसरी मंज़िल की सीढ़ियाँ चढ़ते तो नजर आ रहे हैं लेकिन वापस उतरते हुए नहीं दिखे। जिस अंधेरे हिस्से वाली जमीन पर वे घायल अवस्था में पाए गए हैं वहाँ कैमरे नहीं लगे हैं। करीब पंद्रह मिनट वहीं पड़े रहे फिर किसी कर्मचारी की नजर पड़ी, उसने गार्ड को बताया, स्टॉफ के लोग जुटे तो सबके मुँह से निकला अरे! ये तो कल्पेश जी है।
नीरज याग्निक शव के पोस्टमार्टम के लिए नहीं अड़े होते तो, सच सामने नहीं आता
बॉंबे हॉस्पिटल में उन्हें उपचार के लिए ले जाया गया तब हालत चिंताजनक थी। पसलियों में, पैरमें फ़्रैक्चर, सिर में चोट जैसी स्थिति के बाद भी अस्पताल के हवाले से कहा गया कि कल्पेश की मौत कुछ अंतराल में दो बार आए हार्ट अटैक से हुई है।जो कल्पेश ख़बरों की निष्पक्षता को लेकर हर वक्त जूझते रहे उनकी मौत के कारणों को अस्पताल ने मज़ाक़ बना दिया। यदि नीरज याग्निक शव के पोस्टमार्टम के लिए नहीं अड़े होते तो शहर के कई लोग यही खबर सही मानते कि सीढ़ियों से लुढ़कने, हार्ट अटैक के कारण ही कल्पेश की मौत हुई।
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