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एसपी मित्तल
सवाल उठता है कि क्या पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के निधन का शोक सिर्फ न्यूज चैनलों के लिए ही था? सरकार वाजपेयी के निधन पर सात दिन का राष्ट्रीय शोक घोषित किया था। 17 अगस्त को दफ्तरों में छुट्टी भी रखी गई।
देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी स्वयं भी गमगीन दिखे। दिल्ली में लाखों लोगों ने वाजपेयी को श्रद्धांजलि दी। यहां तक कि सभी समारोह भी 22 अगस्त के लिए स्थगित कर दिए गए। 17 अगस्त को अंतिम संस्कार वाले दिन जब देशभर के लोग गमगीन थे, तब हमारे ही देश के मनोरंजन चैनलों पर दिन भर अश्लील गाने प्रसारित होते रहे।
जो चैनल फिल्मों के हैं, उन पर फिल्मे चलती रहीं। कई चैनल तो फूहड़ता से भरे हैं, उन पर भी दिन भर फूहड़ता परोसी जाती रही। ऐसे सभी चैनल हमारे देश के कानून के अंतर्गत भी चलते हैं। माना कि ऐसे चैनलों को स्वतंत्रता मिली हुई है, लेकिन जब पूरा देश गमगीन हो, तब तो ऐसे चैनलों को भी देश के माहौल के अनुरूप प्रसारण करना चाहिए।
इस ओर सरकार को भी ध्यान देना चाहिए, क्योंकि यह मामला राष्ट्र की संवेदनाओं से जुड़ा है। ऐसे कैसे हो सकता है कि जब लाखों लोगों की आंखों में अपने नायक के लिए आसंू हो तब अनेक चैनलों पर मौज मस्ती वाले गानों का प्रसारण हो रहा हो। अभिव्यक्ति की आजादी का मतलब यह नहीं कि आप देश के माहौल के विपरीत चैनलों पर प्रसारण करें।
अच्छा होता कि मनोरंजन चैनलों पर भी 17 अगस्त को वाजपेयी से जुड़ी घटनाओं का प्रसारण होता। सरकार ऐसा कानून बनाए जिसमें मनोरंजन चैनलों पर भी अंकुश लग सके। चूंकि ऐसे चैनलों का संचालन करने वाले लोग पश्चिमी मानसिकता है। इसलिए उन्हें भारत के माहौल से कोई फर्क नहीं पड़ता। हम सब जानते हैं कि मनोरंजन चैनलों पर हमारी संस्कृति के विरुद्ध क्या - क्या दिखाया जाता है।
इस मामले में हमारे प्रमुख न्यूज चैनलों की प्रशंसा की जानी चाहिए कि 17 अगस्त को अधिकांश न्यूज चैनलों ने दोपहर को सास बहु साजिश जैसे हंसी मजाक के कार्यक्रम भी प्रसारित नहीं किए।
सभी चैनलों ने वाजपेयी जी के अंतिम दर्शनों, शव यात्रा तथा अंतिम संस्कार का लाइव प्रसारण ही दिखाया। किसी भी न्यूज चैनल पर हास्य से संबंधित कोई प्रोग्राम प्रसारित नहीं हुआ। अधिकांश चैनलों ने वाजपेयी के पुराने भाषण भी दिखाए। हालांकि हर न्यूज चैनल का अपना-अपना नजरिया होता है, लेकिन 17 अगस्त को सभी न्यूज चैनलों ने एक सा नजरिया रखा।
(ये लेखक के निजी विचार हैं)
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