प्रेस के नाम भूमि आवंटन जिस पर मॉल बन गया यह बिल्डिंग ''भ्रष्टाचार की इमारत है" : संबित्त पात्रा |
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एमपी नगर भोपाल में नेशनल हेराल्ड की जमीन पर बनी विशाल मेगामार्ट की बिल्डिंग के सामने सड़क पर पत्रकारवार्ता आयोजित कर जमीन आवंटन के सारे पेपर्स भी प्रेस को दिखाए, भूमि आवंटन का उद्देश्य समाचार पत्र को बताया गया है। पात्रा ने कहा कि यह बिल्डिंग ''भ्रष्टाचार की इमारत है"।
भोपाल। राफेल के मुद्दे पर नरेंद्र मोदी पर हमला बोल रहे राहुल गांधी को घेरने के लिए भाजपा ने अब नेशनल हेराल्ड का मुद्दा उठाया है।
भोपाल में भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता संबित्त पात्रा ने राहुल पर हमला बोलते हुए नेशनल हेराल्ड की बिल्डिंग के सामने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर राहुल पर हमला बोला। भाजपा ने नेशनल हेराल्ड की बिल्डिंग के गलत इस्तेमाल के लिए सोनिया और राहुल गांधी को जिम्मेदार ठहराया है।
संबित पात्रा ने कहा कि गांधी परिवार ने मध्यप्रदेश को लूटा है। संबित ने नेशनल हेराल्ड की एमपी नगर में स्थित इमारत को भष्टाचार की स्मारक बताया। पात्रा ने कहा कि हेराल्ड केस में सोनिया गांधी और राहुल गांधी आरोपी नंबर एक और दो हैं और दोनों नेता पचास हजार के मुचलके पर बाहर हैं, वहीं संबित पात्रा प्रेस कॉन्फ्रेंस के बाद बिल्डिंग के अंदर प्रिटिंग प्रेस खोजने का सियासी स्टंट भी किया, वहीं बीजेपी के राष्ट्रीय प्रवक्ता संबित पात्रा के सड़क पर प्रेस कॉन्फ्रेंस करने को कांग्रेस ने आचार संहिता का उल्लंघन बताया है।
पात्रा ने कहा कि भ्रष्टाचार के इस मामले का राहुल गांधी जवाब दें। लगभग 40 मिनिट तक सड़क पर चले इस ड्रामे में पात्रा ने पत्रकारों के सवालों का कोई भी जवाब नहीं दिया। उन्होंने कहा कि मामला अभी हाईकोर्ट में है। भाजपा के प्रवक्ता ने जमीन आवंटन के सारे पेपर्स भी प्रेस को दिखाए, जिसमें भूमि आवंटन का उद्देश्य समाचार पत्र को बताया गया है।
कांग्रेस ने पूरे मामले की शिकायत पर निर्वाचन आयोग से की है। वहीं कांग्रेस की शिकायत पर निर्वाचन आयोग ने भोपाल कलेक्टर सुदामा खाड़े से शाम तक पूरे मामले की रिपोर्ट तलब की है। सूत्रों के हवाले से खबर है कि आदर्श आचार संहिता का पालन ना किए जाने को लेकर आयोग परमीशन देने वाले अधिकारी पर कार्रवाई कर सकता है।
क्या प्रवासी भाजपा प्रवक्ता संबित पात्रा प्रेस काम्प्लेक्स की मुख्य सड़क पर प्रेस कांफ्रेंस कर अपनी ही सरकार को घेर रहे थे?
यह नीचे दिए गये तथ्य अनिल दुबे जी की फेसबुक से लिए गए है
अंग्रेजी न्यूज पेपर नेशनल हेराल्ड, हिंदी समाचार पत्र नवजीवन और उर्दू अखबार कौमी आवाज़ का प्रकाशन करने वाले एसोसिएट्स जनरल्स लिमिटेड या एजेएल समूह को भोपाल के प्रेस काम्प्लेक्स में 1982 में एक एकड़ जमीन दी गई थी। यह समूह कांग्रेस/गांधी परिवार से जुड़ा है।
आरोप है कि यह जमीन समाचार पत्र प्रकाशन के लिए रियायती दामों पर दी गई थी लेकिन लीज की शर्तों का उल्लंघन करते हुए इस पर कमर्शियल काम्प्लेक्स (आजकल जिसमे विशाल मेगा मार्ट, लोटस और अन्य व्यवसायिक संस्थान है) बना दिया गया।
हाँ गौर करने लायक बात यह भी है इस जमीन पर कमर्शियल काम्प्लेक्स का निर्माण भाजपा सरकार के आगमन के साथ 2003 में ही शुरू हुआ था। एमपी नगर में प्रेस संबंधी उद्देश्य के लिए रियायती दरों पर आवंटित प्लॉट्स पर कमर्शियल/आवासीय भवन पिछले 15 साल के दौरान ही ज्यादा बने है। आज भी खड़े है, नेशनल हेराल्ड भी उनमे से एक है।
एमपी नगर के प्लॉट्स को नियंत्रित/आवंटित करनेवाली संस्था - भोपाल विकास प्राधिकरण - शासकीय अधिकारियों और सरकार द्वारा नियुक्त प्रतिनिधियों द्वारा चलाई जाती है। भाजपा के काल में ध्रुवनारायण सिंह, सुरेन्द्रनाथ सिंह इसके अध्यक्ष रहे है, अभी ओम यादव इसके अध्यक्ष है। सभी भाजपा के बड़े स्थानीय नेता है।
मतलब लीज उल्लंघन पर जो कार्यवाही करनी थी वो बीडीए या जिला प्रशासन को करनी थी। बीडीए का मुख्यालय नेशनल हेराल्ड के प्लाट से सिर्फ 200-300 मीटर दूर स्थित है। इसलिये व्यावसायिक ईमारत के निर्माण के दौरान ही या उपयोग शुरू होने पर सबको इस बात का पता चल गया होगा कि उल्लंघन हो गया है।
व्यावसायिक इमारतों को अन्य बिल्डिंग्स की अपेक्षा ज्यादा निर्माण (एफएआर) की अनुमति होती है, इस बिल्डिंग और प्रेस संबंधी कार्य के लिए उपयोग हो रही अन्य इमारतों को देखकर आप अंदाज लगा सकते है।
इस कमर्शियल काम्प्लेक्स के निर्माण की अनुमति एक अन्य शासकीय संस्था - भोपाल नगर निगम - ने दी, इसका टैक्स भी नगर निगम में जमा होता है।
स्वाभाविक बात है बिल्डिंग एक दिन में तो बनी नहीं होगी।
नगर निगम की यह जिम्मेदारी थी कि बिल्डिंग निर्माण की अनुमति देते समय और बाद में भी वो सभी दस्तावेज देखे कि निर्माण/उपयोग, अनुमति/लीज की शर्तों के हिसाब से हो रहा है या नहीं?
बीडीए की भी जिम्मेदारी है कि लीज शर्तों के उल्लंघन को समय समय पर जमीनी समीक्षा करे और कार्यवाही करे।
इस जमीन पर व्यावसायिक काम्प्लेक्स बनने की जानकारी बीडीए को 2011 में लगी, जब लीज नवीनीकरण का आवेदन दिया गया। मतलब, अगर लीज नवीनीकरण का मौका नहीं आता तो बीडीए की नजर एक एकड़ में फैली ईमारत में चल रही दुकानों पर नहीं जाती?
सच में ये अँधा कानून है!!
खैर 2012 में लीज निरस्त कर दी गई। निरस्तीकरण के तुरंत बाद बिल्डिंग खाली कराने की कार्यवाही क्यों नहीं की गई?
इन सब प्रक्रियाओं को स्थानीय/राष्ट्रीय समाचार माध्यमों में उस दौरान काफी लिखा/सुना गया।
ताज्जुब इस बात का भी है कि लीज/टाइटल का हस्तांतरण भी इन 30 सालों के दौरान हुआ, जो कि एक आधिकारिक प्रक्रिया है और बीडीए के बगैर संभव नहीं है।
पात्रा का दावा है 2013 में इस बिल्डिंग का इविक्शन आर्डर आ गया था। तो फिर पांच साल से सरकारी संस्थाएं क्या कर रही है?
फिर यह भी कहा कि यह विवाद कोर्ट में है। अगर मामला कोर्ट में है तो फिर सड़क पर प्रेस कांफ्रेंस किस बात के लिए थी?
क्या पात्रा यह सन्देश देना चाहते थे कि भाजपा सरकार इस मामले को तरीके से सम्हाल नहीं पाई?
2012 में लीज निरस्तीकरण के बाद अभी तक बिल्डिंग में दुकानें क्यों चल रही है?
और जो कार्यवाही होनी चाहिए थी वो नहीं हो पाई?
इस काम्प्लेक्स के बेसमेंट में नियमविरुद्ध दुकानें चल रही है, नगर निगम क्यों चुप है?
लीज का मामला कोर्ट में हो सकता है, अवैद्ध निर्माण तो कभी भी तोडा जा सकता है न!!
अब प्रश्न तो यह भी उठ रहे है कि दीनदयाल परिसर का कमर्शियल हिस्सा और जवाहर भवन भी क्या लीज का उल्लंघन है?
खैर, दिल्ली से आदेश हो तो फिर स्थानीय पार्टी नेता भी कैसे कोई सलाह दे सकते है!! सच्ची सलाह तो तभी मिल सकती थी, जब मन में डर न हो। आदेश का तो सिर्फ पालन ही किया जाना था।
हालाँकि प्रवासी जी को क्या फर्क पड़ता है?
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