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प्रशांत टण्डन
24 अक्तूबर की रात सीबीआई में तख्तापलट की टेलीग्राफ ने जो टाइमलाइन छापी है उसकी शुरुआत होती रात 10 बजे प्रधानमंत्री निवास पर एक बैठक से जिसमे प्रधानमंत्री मोदी के अलावा, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित दोवल और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह भी मौजूद थे. इसी बैठक के आधे घंटे बाद यानि 10:30 बजे सीबीआई के निदेशक आलोक वर्मा को हटाने का फैसला हो जाता है.
जब वर्मा को सीबीआई से हटाया गया तब उनकी मेज पर जिन सात संवेदनशील केसों की फाइले थीं उनमे राफेल घोटाला, कोयला घोटाला में प्रधानमंत्री मोदी के सचिव भास्कर खुल्बे की भूमिका, मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया घूस कांड और स्टर्लिंग बायोटेक केस (राकेश अस्थाना का नाम केस में भी है) शामिल हैं. इस सभी घोटालों के तार मोदी और अमित शाह कहीं न कहीं जुड़ते दिखाई देते हैं.
सुप्रीम कोर्ट को इस बात का संज्ञान लेना चाहिये सीबीआई में जो कुछ हुआ उसमे अमित शाह की क्या भागीदारी और दिलचस्पी थी और उन्हे इस महत्वपूर्ण बैठक में किस हैसियत से शामिल किया गया. प्रधानमंत्री गोपनीयता की शपथ लेते हैं – जिस संवेदनशील फैसले में उन्होने अमित शाह को शामिल किया है ये साफ तौर पर गोपनीयता की शपथ का उलंघन है.
आलोक वर्मा सुप्रीम कोर्ट जा चुके हैं और साथ ही राफेल मामले में FIR दर्ज कराने याचिका लेकर प्रशांत भूषण, पूर्व काबिनेट मंत्री यशवंत सिन्हा और अरुण शौरी भी अदालत में हैं. सुप्रीम कोर्ट को इन दोनो याचिकायों के जरिये संविधान और कानून की रक्षा तो करनी ही है साथ ही उसे सीबीआई के निदेशक को रातो रात हटाने के फैसले की जांच के आदेश देने चाहिये और खासकर अमित शाह भी भूमिका पर. ये जांच सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में होनी चाहिये.
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