सीएजी की रिपोर्ट में नीतीश कुमार के सुशासन की खुली पोल |
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बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के सुशासन का पोल सीएजी की रिपोर्ट ने खोल कर रख दी है. सृजन घोटाला से लेकर टॉपर घोटाला और शेल्टर होम जैसे महापाप के बाद भी नीतीश कुमार जीरो टॉलरेंस का राग अलाप कर बिहार के लोगों को लगातार भ्रमाने में लगे हैं. सीएजी की रिपोर्ट में नीतीश कुमार के सुशासन को और भी बेनकाब कर दिया है. सीएजी की रिपोर्ट में बिहार में बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार को उजागर किया गया है.
सीएजी के रिपोर्ट के मुताबिक कहीं टेंडर के बिना तो कहीं अपात्र ठेकेदारों को करोड़ों का काम बांट दिया गया. इसके अलावा आंख मूंदकर तयशुदा रकम से करोड़ों की ज्यादा रकम ठेकेदारों को दिया गया. निर्माण कार्यों का ठेका देते समय हर नियम-कायदे टूट गए. यह सब हुआ बिहार सरकार के सबसे प्रमुख उपक्रम बिहार राज्य भवन निर्माण लिमिटेड में. इस सरकारी कंपनी की स्थापना 2008 में हुई और तमाम विभागों के नए भवनों के निर्माण और मरम्मत का काम देखने का जिम्मा इस कंपनी को ही है.
कई सालों से कंपनी किसी बड़े अधिकारी (प्रबंधन निदेशक) के बिना चल रही है. कंपनी में लूट के इस खेल की जानकारी सीएजी ने 2017-18 की रिपोर्ट में दी है. ऑडिट के बाद सीएजी ने कहा है कि ठेके बांटे जाते समय न केंद्रीय सतर्कता आयोग (सीवीसी) की नियामकों का पालन हुआ और न ही राज्य सरकार के वित्तीय नियमों का. बानगी के तौर पर देखें तो कृषि महाविद्यालय किशनगंज के निर्माण में ठेकेदार को 3.39 करोड़ रुपए का अधिक भुगतान कर दिया गया. बिहार स्टेट बिल्डिंग कंस्ट्रक्शन कारपोरेशन लिमिटेड का पटना में मुख्यालय है. यह बिहार सरकार के बिल्डिंग कंस्ट्रक्शन्स डिपार्टमेंट के तहत आता है. इस सरकारी कंपनी की कुल नौ यूनिटें हैं. जिन्हें 2017-18 तक कुल 1754.78.05 करोड़ का काम कराने की जिम्मेदारी मिली थी. सीएजी ने नौ में से पांच पीएसयू के 1309.05 करोड़ रुपए के 699 कार्यों की नमूना जांच की तो भारी गड़बड़ी का पता चला. ऑडिट की अवधि में इस सरकारी कंपनी को 27 विभागों से जुड़े भवनों के निर्माण की जिम्मेदारी मिली थी.
बिहार सरकार के वित्त विभाग की ओर से बनाए नियम के मुताबिक दस लाख से ऊपर के सभी कार्यों का ठेकेदारों को आबंटन सिर्फ और सिर्फ खुले टेंडर से होगा. सीवीसी ने भी जुलाई 2007 में आर्डर जारी कर रखा है, जिसमें दस लाख से ऊपर के कार्यों का आबंटन पब्लिक टेंडर पॉलिसी से ही करने की व्यवस्था है ताकि ठेकों में पारदर्शिता होने से भ्रष्टाचार की समस्या दूर हो. लेकिन बिहार राज्य भवन निर्माण निगम लिमिटेड ने न सीवीसी के नियमों का ख्याल रखा और न ही अपनी सरकार के वित्त विभाग का. कैग की जांच में पता चला कि नवंबर 2014 से दिसंबर 2016 के बीच 19.48 करोड़ के अतिरिक्त कामों का ठेका बगैर किसी टेंडर के एक ही ठेकेदार को दे दिया गया. जबकि उससे पहले इस सरकारी कंपनी ने पांच पीएसयू से जुड़े 278.51 करोड़ के ठेके जनवरी 2013 अप्रैल 2015 तक बांटे थे. बिना टेंडर के ठेके देने पर जब सीएजी ने स्पष्टीकरण मांगा तो बिल्डिंग कंस्ट्रक्शंस डिपार्टमेंट (बीसीडी) ने नवंबर 2017 में सफाई देते हुए कहा कि इन कार्यों को बीपीडब्ल्यूडी कोड के तहत मंजूरी मिली थी. लेकिन सीएजी ने इस जवाब को खारिज कर दिया. ये ठेके गोदाम और स्वास्थ्य केंद्रों के अप्रग्रेडेशन, स्कूलों के निर्माण वगैरह से जुड़े रहे.
सीएजी ने 2018 की रिपोर्ट नंबर एक में बिहार के सार्वजनिक उपक्रमों की हालत पर चौंकाने वाली जानकारी दी है. बिल्डिंग कंस्ट्रक्शंस डिपार्टमेंट ने मई 2009 में व्यवस्था दी कि ठेकेदारों को उच्चस्तरीय अनुभव प्रमाणपत्र पर ही काम मिलेगा. यह प्रमाणपत्र कम से कम एक्जीक्यूटिव इंजीनियर या पंजीकृत राष्ट्रीयकृत बैंक या बीमा कंपनी के मूल्यनिर्धारक से जारी होना चाहिए. ऑडिट के दौरान पता चला कि अगस्त 2014 से दिसंबर 2015 के बीच राज्य भवन निर्माण लिमिटेड ने 125.66 करोड़ रुपए का टेंडर एक बिल्डर शिव शंकर सिंह कॉट्रैक्ट प्राइवेट लिमिटेड को दिया, जिनके पास एक प्राइवेट कंपनी के प्रोजेक्ट मैनेजर से जारी अनुभव प्रमाणपत्र था. इस अपात्र प्रमाणपत्र पर ठेका मिल ही नहीं सकता था. शिवशंकर सिंह को एक लाख 39 हजार मीट्रिक टन क्षमता के साठ गोदाम बनाने के नियम-विपरीत ठेके मिले. दूसरी तरफ इस अपात्र ठेकेदार ने टेंडर तो हथिया लिया लेकिन जून 2017 तक 60 में से 53 गोदाम का निर्माण भी नहीं पूरा किया. जबकि पंद्रह महीने का समय बीत चुका था.
सीएजी ने नोटिस दी तो बीसीडी ने वर्कलोड का बहाना बनाया. इसी तरह जनवरी 2015 में बीएस प्रमोटर्स नामक कॉन्ट्रैक्टर्स को 34.41 करोड़ के ठेके तब मिल गए, जबकि कंपनी के पास क्षमता ही नहीं था. जिन कार्यों का ठेका मिला था, वह दिसंबर 2017 तक नहीं बन सके थे. जबकि काम दिसंबर 2015 में ही आवंटित हो गया था. ऑडिट में पता चला कि 122.16 करोड़ के टेंडर बिना स्थानीय प्रशासन के एनओसी के ही अंतिम रूप दे दिए गए. ऑडिट के दौरान पता चला कि 1045.86 करोड़ के 538 गोदाम और 656.87 करोड़ के 201 स्वास्थ्य केंद्रों के अपग्रेडेशन के लिए कोई टाइम लाइन ही नहीं तय मिली.
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