Monday, January 9, 2012

एक चेहरे पर कई चेहरे लगा लेते है लोग

               आज हर आदमी एक चेहरे पर कई चेहरे लगाए घूम रहा है जिससे जीवन के इस खेल में उसके अंदर छिपा असली आदमी कभी भी उजागर हो ही नही पाता। या यूं कहे कि वह जिंदगी भर एक अच्छा नाट्यकर्मी जरूर बना रहता है। खुद को अनछुआ ही इस दुनिया से रूखसत कर जाता है। आदमी अपने जीवन को एक ड्राईंग रूम की ही तरह अपने उसूलों से सजाए रहता है। बाकी का असली जीवन को देखने का समय ही नहीं मिल पाता। इस नकलीपन से आज हर कोई आदमी को समझने में भारी भूल कर बैठता है। इसीलिए इस दुनिया में आए दिन हमें ऐसे किस्से देखने को मिलते है कि देवता सा दिखने वाला फलां आदमी शैतान, वहशी निकला। अर्थशास्त्र का सिद्धांत है कि नकली सिक्के असली सिक्कों को चलन से बाहर कर देते है।


                आज भी कुछ ऐसा ही घटित हो रहा है, असली चरित्रवान आदमी घर में दुबका बैठा है और नकली चरित्र का आदमी धड़ल्ले से चल रहा है। यहां मुझे एक छोटी सी कहानी याद रही है। एक सूफी फकीर गुरजियत के बड़े चर्चे थे। चर्चे इस बात के वह किसी को भी अपना शिष्य बनाने के पहले महिना भर पहले शराब में डुबाए रखते थे। जब कुछ लोगों ने इसका कारण उनसे जानना चाहा तो उनका कहना था आज आदमी बाहर से कुछ अंदर से कुछ और होता है। आदमी होश में तो बड़ा बनावटी हो सकता है लेकिन शराब के नशे में उसमें छिपा असली आदमी बाहर जाता है। आखिर जिसे मैं अपना शिष्य बनाने जा रहा हूं उसके अंदर छिपा असली आदमी कौन है, कैसा है, पहले में जान तो लू, पहचान तो लू कि वह शिष्य बनने लायक भी है या नहीं। हो सकता है दुनिया वालों को उनका शिष्य बनाने का यह तरीका उचित लगे, लेकिन है तो सत्य।
               यूं तो नकली, दिखावटी चरित्र का आदमी हर जगह हर क्षेत्र में मौजूद है लेकिन इसकी सबसे ज्यादा भरमार राजनीति के माध्यम से समाजसेवा जैसे पवित्र कार्य में अधिक है जो चिंता का विषय है। मामला गंभीर तब और हो जाता है जब सवा सो वर्ष पुरानी परिपक्व, राजनीतिक पार्टी कांग्रेस के जिम्मेदार प्रतिनिधियों द्वारा सत्ता के मद में मदमस्त हो भारतीय संस्कृति को छोड़, शालीनता को छोड़, छिछोरे शब्दों का प्रयोग करते हैं। मैं बात कर रही हूं कांग्रेस के महासचिव बी.के.हरिप्रसाद की जो किसी वयोवृद्ध समाजसेवी अन्ना हजारे को ‘‘दो कोडी का आदमी’’ कहते है। इससे शायद अन्ना को कोई असर पड़े या पड़े पर जाने-अनजाने में हरिप्रसाद के दिमाग के विचार फूटने के साथ-साथ उनके अंदर गहराई में छिपा असली आदमी जरूर उजागर हो गया। बस, यही नहीं रूकते आगे कहते है कि आज की युवक कांग्रेस हरिप्रसाद के जमाने वाली युवक कांग्रेस नही है, अन्यथा अन्ना का क्या होता भगवान जाने? उनका यह वक्तव्य अहंकारी होने के साथ-साथ किसी गुजरे जमाने के डॉन का होने का अहसास कराता है, साथ ही उनका यह वक्तव्य युवाओं को भड़काने उकसाने जैसा भी है। निःसंदेह आज का युवा समझदार है अच्छे बुरे की समझ रखने वाला है, वह किसी के बहकावे में जल्दी आने वाला नहीं है फिर भी यक्ष प्रश्न यहां यह उठता है आखिर प्रतिष्ठित पार्टी के समझदार, जिम्मेदार प्रतिनिधि आज के युवाओं को किस तरह का मार्गदर्शन करना चाहते है? युवाओं को किस दिशा में, देश को किस दिशा में ले जाना चाहते हैं?
                लोकपाल का इतना भय है कि नेता उसे ‘‘राक्षस’’ समझ रहे है। एक मायने में देखा जाए तो ये राक्षस भ्रष्टाचारियों के ही लिये है।
                यहाँ मैं सोनिया गांधी की तारीफ इस मायने में करना चाहूंगी जो भारतीय संस्कृति में पत्नी-बढ़ी होने के बावजूद बड़े-बूढ़ों के सम्मान की बात कहती है उन्होंने हिदायद दे रखी है कि अन्ना के खिलाफ अमर्यादित शब्दों का प्रयोग किया जाए। पूर्व में कांग्रेस के प्रवक्ता मनीष तिवारी अन्ना के विरूद्ध अमर्यादित शब्दों के लिए माफी मांग चुके है। बेनी प्रसाद के वक्तव्य, अन्ना .प्र. में घुसकर तो देखे? इस कृत्य में डॉन की बू आती है। नेताओं के व्यक्तिगत् चाल चरित्र से कहीं कहीं सवासों वर्ष पुरानी प्रतिष्ठा कांग्रेस की छवि को बट्टा ही लगता है।
                हमारे संविधान में अपनी बात तो शांतिपूर्वक अहिंसक तरीके से, अनशन कर रखने की स्वतंत्रता है और इसी शक्ति का प्रयोग महात्मा गांधी ने अंग्रेजों के खिलाफ किया था। अन्ना का 13 दिवसीय दिल्ली का अनशन भी कुछ इसी तरह का था। यह कई मायनों में राजनेताओं को अनशन के तौर-तरीकों को सीखने के हिसाब से भी बेहतर था। विशेषतः आज राजनीतिक अनशन बिना तोड़-फोड़ के, बंद के, शासकीय सम्पत्ति के व्यापक नुकसान के बिना सफल नहीं माना जाता। ऐसे नेताओं के लिए यह एक सीख है।
                पंडित नेहरू, इंदिरा गांधी में यह खासियत भी कि अच्छी बातों को अपने विरोधियों से भी सीखती थी? आदर भी करती थी। यही कारण है विपरीत परिस्थितियों में भी अटल बिहार बजापेयी सा व्यक्तित्व भी उनका मुरीद था? कांग्रेस के बुजुर्ग एवं युवाओं के बीच की पीढ़ी के कंघों पर अब जवाबदेही है कि युवाओं को वो किस प्रकार के व्यक्तित्व का संदेश देना चाहती है। पार्टी के सिद्धांत एवं छवि को किस प्रकार से और बेहतर बना सकते है? या बिगाड़ सकते है आखिर मर्जी है आपकी।
                                      
  डॉ. शशि तिवारी
      (लेखिका ‘‘सूचना मंत्र’’ पत्रिका की संपादक हैं)
                                                           मो. 09425677352

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