बिलासपुर ! हाईकोर्ट ने कहा है कि किसी विवाहिता के मानसिक रूप से अस्वस्थ होने की स्थिति में विवाह शून्य तभी स्वीकार किया जा सकता है जब विवाह के समय वह वैवाहिक संबंधों व संतानोत्पति के अयोग्य हो। इसी आधार पर कोर्ट की डिविजन बेंच ने पति की अपील खारिज कर दी।
जस्टिस आई एम कुद्दुसी और जस्टिस मिनहाजुद्दीन की डिविजन बेंच ने हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 12 (1) व विश्लेषण करते हुए निर्णय दिया कि विवाह शून्य तभी हो सकता है जब विवाहिता की मानसिक स्थिति इतनी खराब हो कि वह वैवाहिक संबंधों के निवर्हन तथा संतोनोत्पति के अयोग्य है। बेंच ने इस विश्लेषण के साथ पति की ओर से परिवार न्यायालय के फैसले के खिलाफ दायर अपील खारिज कर दी। बेंच ने कहा कि प्रकरण में अपीलार्थी ने विवाहिता की चिकित्सा करने वाले चिकित्सक का साक्ष्य कराया है परन्तु इससे यह साबित होता कि विवाहिता वैवाहिक संबंधों के निर्वहन व संतोनोत्पति के अयोग्य है। यह अपील अंबिकापुर निवासी आशीष ने दायर की थी। इसमें कहा गया था कि चूंकि विवाहिता की मानसिक अस्वस्थता की स्थिति छिपाकर विवाह संपन्न कराया गया है, इसलिए विवाह शून्य कर दिया जाए।
पहले उसने परिवार में इस आशय की याचिका दायर की थी, जिसे खारिज कर दिया था। आशीष ने इसी फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट में अपील दायर की थी। उसकी विवाह 2009 में कल्पना के साथ हुआ था। तब उसे यह पता नहीं था कि वह मानसिक रूप से अस्वस्थ है। इसका पता चलने पर उसने कल्पना की जांच रायपुर के मनोरोग चिकित्सक डा. प्रकाश नारायण से कराई और तब पता चला कि वह भारी मात्रा में दवाइयां वह लेती रही है। रांची के डा. बोडर्े ने भी उसका इलाज किया था इसी आधार पर आशीष ने विवाह शून्य करने की अपील की थी। कल्पना की ओर से अधिवक्ता अशोक वर्मा, अजीत सिंह, एवं गजेन्द्र साहू ने याचिका का विरोध किया था।
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