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आख़िरकार दस साल पुराने एक मामले में बीते 2 सितंबर को आए सुप्रीम कोर्ट के निर्णय से यही साबित हुआ. ऊंचा रसूख, ऊंचे अधिकारी, ऊंचे वकील. फिर भी झूठ और भ्रष्टाचार हार गया. सच की जीत हुई. दरअसल, भ्रष्टाचार का यह पूरा मामला वर्तमान में परिवहन एवं सड़क मंत्रालय में संयुक्त सचिव के पद पर तैनात एक आईएएस अधिकारी राघव चंद्रा से जुड़ा हुआ है. बात 2002 की है, तब राघव चंद्रा मध्य प्रदेश हाउसिंग बोर्ड के कमिश्नर थे. राघव चंद्रा 1982 बैच और मध्य प्रदेश कैडर के आईएएस अधिकारी हैं.
2002 में मध्य प्रदेश के कटनी में हाउसिंग बोर्ड ने आवासीय कॉलोनी के लिए ज़मीन ख़रीदने का फैसला किया. इसके लिए कटनी की अल्फर्ट कंपनी की खाली पड़ी ज़मीन को ख़रीदने का फैसला लिया गया, लेकिन यह फैसला बहुत ही सुनियोजित ढंग से और कुछ ख़ास लोगों को फायदा पहुंचाने के लिए किया गया था.
कटनी ज़मीन क्रय प्रकरण में सुप्रीम कोर्ट ने एमपी हाउसिंग बोर्ड के तत्कालीन कमिश्नर राघव चंद्रा के ख़िला़फ भ्रष्टाचार निरोधक क़ानून के तहत मुक़दमा चलाने का आदेश दिया है. राघव चंद्रा इन दिनों भारत सरकार के परिवहन एवं सड़क मंत्रालय में संयुक्त सचिव के पद पर तैनात हैं. उनके केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर जाने से पहले 2007 में आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो ने मध्य प्रदेश सरकार को सूचित किया था कि कटनी ज़मीन क्रय प्रकरण की जांच में राघव चंद्रा के विरुद्ध प्रथम दृष्टया अपराध घटित होना पाया गया है. फिर भी राज्य सरकार ने राघव चंद्रा को केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर भेजने का फैसला किया.
अल्फर्ट कंपनी की 72 एकड़ ज़मीन को ख़रीदने के लिए उसके निदेशक बी डी गौतम से साठगांठ की गई. हालांकि बी डी गौतम सौदे के समय उक्त ज़मीन के स्वामी थे या अल्फर्ट कंपनी के निदेशक, इस पर भी विवाद है. तत्कालीन कमिश्नर राघव चंद्रा ने ज़िलाधिकारी शहजाद ख़ान से इस ज़मीन की क़ीमत 10 लाख रुपये प्रति एकड़ के बारे में जब सलाह मांगी, तब शहजाद ख़ान ने इस क़ीमत को उचित बताया. कुल मिलाकर बोर्ड ने उक्त ज़मीन के लिए क़रीब 7 करोड़ रुपये ख़र्च कर दिए, लेकिन नतीजा यह निकला कि पूरा का पूरा मामला (ज़मीन का), जो पहले से ही विवाद में फंसा था, एक बार फिर अदालत तक पहुंच गया. नतीजतन, मध्य प्रदेश हाउसिंग बोर्ड आज तक उक्त ज़मीन का किसी भी रूप में इस्तेमाल नहीं कर सका है. उल्टे सरकार को क़रीब 7 करोड़ रुपये की हानि उठानी पड़ी, सो अलग. बहरहाल, अल्फर्ट कंपनी की विवादित ज़मीन ऊंची दर पर ख़रीदने के इस मामले के ख़िला़फ अरुण कुमार अग्रवाल ने लोकायुक्त पुलिस जबलपुर में इसकी शिकायत की. शिकायत में राघव चंद्रा, कटनी के तत्कालीन ज़िलाधिकारी शहजाद ख़ान और भूमि अधिग्रहण अधिकारी राम मेश्राम पर अल्फर्ट कंपनी के निदेशक बी डी गौतम के साथ साठगांठ करने का आरोप लगाया गया. मामला कटनी की विशेष अदालत के समक्ष पहुंचा.
2002 में मध्य प्रदेश के कटनी में हाउसिंग बोर्ड ने आवासीय कॉलोनी के लिए ज़मीन ख़रीदने का फैसला किया. इसके लिए कटनी की अल्फर्ट कंपनी की खाली पड़ी ज़मीन को ख़रीदने का फैसला लिया गया, लेकिन यह फैसला बहुत ही सुनियोजित ढंग से और कुछ ख़ास लोगों को फायदा पहुंचाने के लिए किया गया था.
कटनी ज़मीन क्रय प्रकरण में सुप्रीम कोर्ट ने एमपी हाउसिंग बोर्ड के तत्कालीन कमिश्नर राघव चंद्रा के ख़िला़फ भ्रष्टाचार निरोधक क़ानून के तहत मुक़दमा चलाने का आदेश दिया है. राघव चंद्रा इन दिनों भारत सरकार के परिवहन एवं सड़क मंत्रालय में संयुक्त सचिव के पद पर तैनात हैं. उनके केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर जाने से पहले 2007 में आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो ने मध्य प्रदेश सरकार को सूचित किया था कि कटनी ज़मीन क्रय प्रकरण की जांच में राघव चंद्रा के विरुद्ध प्रथम दृष्टया अपराध घटित होना पाया गया है. फिर भी राज्य सरकार ने राघव चंद्रा को केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर भेजने का फैसला किया.
अल्फर्ट कंपनी की 72 एकड़ ज़मीन को ख़रीदने के लिए उसके निदेशक बी डी गौतम से साठगांठ की गई. हालांकि बी डी गौतम सौदे के समय उक्त ज़मीन के स्वामी थे या अल्फर्ट कंपनी के निदेशक, इस पर भी विवाद है. तत्कालीन कमिश्नर राघव चंद्रा ने ज़िलाधिकारी शहजाद ख़ान से इस ज़मीन की क़ीमत 10 लाख रुपये प्रति एकड़ के बारे में जब सलाह मांगी, तब शहजाद ख़ान ने इस क़ीमत को उचित बताया. कुल मिलाकर बोर्ड ने उक्त ज़मीन के लिए क़रीब 7 करोड़ रुपये ख़र्च कर दिए, लेकिन नतीजा यह निकला कि पूरा का पूरा मामला (ज़मीन का), जो पहले से ही विवाद में फंसा था, एक बार फिर अदालत तक पहुंच गया. नतीजतन, मध्य प्रदेश हाउसिंग बोर्ड आज तक उक्त ज़मीन का किसी भी रूप में इस्तेमाल नहीं कर सका है. उल्टे सरकार को क़रीब 7 करोड़ रुपये की हानि उठानी पड़ी, सो अलग. बहरहाल, अल्फर्ट कंपनी की विवादित ज़मीन ऊंची दर पर ख़रीदने के इस मामले के ख़िला़फ अरुण कुमार अग्रवाल ने लोकायुक्त पुलिस जबलपुर में इसकी शिकायत की. शिकायत में राघव चंद्रा, कटनी के तत्कालीन ज़िलाधिकारी शहजाद ख़ान और भूमि अधिग्रहण अधिकारी राम मेश्राम पर अल्फर्ट कंपनी के निदेशक बी डी गौतम के साथ साठगांठ करने का आरोप लगाया गया. मामला कटनी की विशेष अदालत के समक्ष पहुंचा.
अदालत के आदेश पर लोकायुक्त पुलिस ने 2002 में कमिश्नर राघव चंद्रा, डीएम शहजाद ख़ान और भूमि अधिग्रहण अधिकारी राम मेश्राम के ख़िला़फ एफआईआर दर्ज की. इन अधिकारियों पर भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 13 (1-डी), 13 (2) और आईपीसी की धारा 120 लगाई गई, लेकिन जांच के बाद अप्रैल 2003 में लोकायुक्त पुलिस ने इस पूरे प्रकरण को ख़त्म करने के लिए एक रिपोर्ट विशेष अदालत में दाखिल की, जिसे अदालत ने अस्वीकार कर दिया. लोकायुक्त पुलिस ने एक बार और ऐसी ही रिपोर्ट दाखिल की, जिसे फिर से अस्वीकार कर दिया गया. विशेष अदालत ने 26 अप्रैल, 2005 को अपने आदेश में साफ-साफ लिखा कि उक्त तीनों अभियुक्तों के ख़िला़फ भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 13 (1-डी), 13 (2) और आईपीसी की धारा 120 के तहत अभियोजन चलाने और आगे की कार्रवाई करने के लिए पूरे मामले को आपराधिक पंजिका में दर्ज किया जाए.
इस आदेश के ख़िला़फ यह मामला हाईकोर्ट पहुंचा, जहां से 2009 में अभियुक्तों को राहत मिल गई, लेकिन शिकायतकर्ता अरुण कुमार अग्रवाल यह मामला लेकर सुप्रीम कोर्ट पहुंच गए, जहां बीते 2 सितंबर को न्यायमूर्ति जी एस सिंघवी एवं न्यायमूर्ति एच एल दत्तु की बेंच ने हाईकोर्ट का आदेश रद्द कर दिया और साथ ही मध्य प्रदेश हाउसिंग बोर्ड के तत्कालीन कमिश्नर राघव चंद्रा, तत्कालीन डीएम शहजाद खान और भूमि अधिग्रहण अधिकारी राम मेश्राम के ख़िला़फ भ्रष्टाचार निरोधक क़ानून के तहत मुक़दमा चलाने का आदेश दिया. अदालत ने राज्य सरकार से दो माह के भीतर इस आदेश का पालन करने को कहा है. ग़ौरतलब है कि जब राघव चंद्रा केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर जाने वाले थे, तब राज्य आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो ने मध्य प्रदेश सरकार के सामान्य प्रशासन विभाग को भेजी गई अपनी क्लियरेंस रिपोर्ट में साफ-साफ बताया था कि कटनी ज़मीन क्रय प्रकरण में ब्यूरो की जांच में मध्य प्रदेश गृह निर्माण मंडल के तत्कालीन आयुक्त राघव चंद्रा सहित 9 व्यक्तियों के विरुद्ध प्रथम दृष्टया अपराध घटित होना पाया गया है और उच्च न्यायालय में 2 जून, 2005 को प्रतिवेदन प्रस्तुत किया जा चुका है. ब्यूरो ने यह पत्र सामान्य प्रशासन विभाग को दिसंबर 2007 में लिखा था.
बावजूद इसके राज्य सरकार ने राघव चंद्रा को केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर भेजने का फैसला किया. वर्तमान में राघव चंद्रा भारत सरकार के परिवहन एवं सड़क मंत्रालय में संयुक्त सचिव के पद पर तैनात हैं. ऐसी स्थिति में उनके राजनीतिक संबंधों का अंदाज़ा लगाया जा सकता है. वह मध्य प्रदेश के कई मुख्यमंत्रियों के साथ काम कर चुके हैं. ऐसे में कटनी ज़मीन घोटाले की जांच की जद में अगर राजनीतिक दल से जुड़े लोगों के नाम भी आते हैं तो कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए. बहरहाल, सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश के बाद कटनी ज़मीन घोटाले की जांच अब शुरू हो सकेगी और सच सामने आएगा, ऐसी उम्मीद की जा सकती है.
इस आदेश के ख़िला़फ यह मामला हाईकोर्ट पहुंचा, जहां से 2009 में अभियुक्तों को राहत मिल गई, लेकिन शिकायतकर्ता अरुण कुमार अग्रवाल यह मामला लेकर सुप्रीम कोर्ट पहुंच गए, जहां बीते 2 सितंबर को न्यायमूर्ति जी एस सिंघवी एवं न्यायमूर्ति एच एल दत्तु की बेंच ने हाईकोर्ट का आदेश रद्द कर दिया और साथ ही मध्य प्रदेश हाउसिंग बोर्ड के तत्कालीन कमिश्नर राघव चंद्रा, तत्कालीन डीएम शहजाद खान और भूमि अधिग्रहण अधिकारी राम मेश्राम के ख़िला़फ भ्रष्टाचार निरोधक क़ानून के तहत मुक़दमा चलाने का आदेश दिया. अदालत ने राज्य सरकार से दो माह के भीतर इस आदेश का पालन करने को कहा है. ग़ौरतलब है कि जब राघव चंद्रा केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर जाने वाले थे, तब राज्य आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो ने मध्य प्रदेश सरकार के सामान्य प्रशासन विभाग को भेजी गई अपनी क्लियरेंस रिपोर्ट में साफ-साफ बताया था कि कटनी ज़मीन क्रय प्रकरण में ब्यूरो की जांच में मध्य प्रदेश गृह निर्माण मंडल के तत्कालीन आयुक्त राघव चंद्रा सहित 9 व्यक्तियों के विरुद्ध प्रथम दृष्टया अपराध घटित होना पाया गया है और उच्च न्यायालय में 2 जून, 2005 को प्रतिवेदन प्रस्तुत किया जा चुका है. ब्यूरो ने यह पत्र सामान्य प्रशासन विभाग को दिसंबर 2007 में लिखा था.
बावजूद इसके राज्य सरकार ने राघव चंद्रा को केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर भेजने का फैसला किया. वर्तमान में राघव चंद्रा भारत सरकार के परिवहन एवं सड़क मंत्रालय में संयुक्त सचिव के पद पर तैनात हैं. ऐसी स्थिति में उनके राजनीतिक संबंधों का अंदाज़ा लगाया जा सकता है. वह मध्य प्रदेश के कई मुख्यमंत्रियों के साथ काम कर चुके हैं. ऐसे में कटनी ज़मीन घोटाले की जांच की जद में अगर राजनीतिक दल से जुड़े लोगों के नाम भी आते हैं तो कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए. बहरहाल, सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश के बाद कटनी ज़मीन घोटाले की जांच अब शुरू हो सकेगी और सच सामने आएगा, ऐसी उम्मीद की जा सकती है.
कैग ने भी माना भ्रष्टाचार
कैग की रिपोर्ट (2009) में भी कहा गया कि मध्य प्रदेश हाउसिंग बोर्ड ने इस ज़मीन ख़रीद में विक्रेता को अनुचित लाभ पहुंचाया और शासन को 6.72 करोड़ रुपये का नुक़सान हुआ. कैग के मुताबिक़, अल्फर्ट कंपनी की उक्त ज़मीन विवादित थी और उसका क्रय बोर्ड के हित में नहीं था. रिपोर्ट में इस बात का भी जिक्र है कि 24 जनवरी, 2002 को समाचारपत्रों में एक अधिसूचना प्रकाशित हुई थी, जिसमें भूमि के स्वामित्व के संबंध में 7 दिनों के भीतर दावे/आपत्तियां आमंत्रित किए गए थे, लेकिन सात दिन पूरे होने के पहले ही 28 जनवरी, 2002 को कंपनी के साथ ज़मीन क्रय के संबंध में अनुबंध कर लिया गया. अनुबंध के मुताबिक़, विक्रेता को 72 लाख रुपये अनुबंध के समय और शेष राशि (5.18 करोड़) का भुगतान बाद में करना था, जो जनवरी 2002 से सितंबर 2006 के बीच कर दिया गया. इसके अतिरिक्त अनुबंध के पंजीकरण इत्यादि पर भी बोर्ड ने 82 लाख रुपये ख़र्च कर दिए. जबकि इस बीच मामला अदालत तक पहुंच गया था. कैग की रिपोर्ट के मुताबिक़, इस तरह बोर्ड ने 6.72 करोड़ रुपये का नुक़सान तो उठाया ही, वह उक्त ज़मीन का इस्तेमाल करने में भी असमर्थ रहा. ज़ाहिर है, इस सबके ज़िम्मेदार हाउसिंग बोर्ड के तत्कालीन कमिश्नर राघव चंद्रा ही थे.
sabhar- चौथी दुनिया
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