By आर एल फ्रांसिस
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केन्द्रीय मंत्री जयराम रमेश ने दिल्ली में कैथोलिक संगठन ‘कैरिटस इंडिया’ के स्वर्ण जयंती समारोह का उद्घाटन करते हुए आर्चबिशपों, बिशपों सहित कैथोलिक ननों, पादरियों और श्रोताओं की सभा में बोलते हुए कहा कि कैथोलिक चर्च द्वारा संचालित संगठन नक्सल प्रभावित इलाकों में विकास करने में मदद करें लेकिन ‘लक्ष्मण रेखा’ का सम्मान करें और धर्मांतरण की गतिविधियां नहीं चलाएं। लेकिन क्या जयराम रमेश का यह सरकारी निमंत्रण आदिवासी इलाकों में धर्मांतरण को बढ़ावा नहीं देगा? अभी तक का चर्च संगठनों का इतिहास इसके उलट गवाही दे रहा है.
हालांकि मंत्री जी ने कहा कि वह कैरिटस के बारे में कैथोलिक संगठन के रुप में नहीं बल्कि कैथोलिक संचालित सामाजिक संगठन के रुप में बात कर रहे है। कैरिटस जलापूर्ति, आवास, पुनर्वास और प्राकृतिक आपदाओं के शिकार लोगों के लिए कार्य करता है। जयराम रमेश ने छतीसगढ़ के नरायणपुर जिले में रामकृष्ण मिशन द्वारा किए गए विकास कार्यो का जिक्र करते हुए कहा कि ग्रामीण विकास मंत्रालय झारखंड, छतीसगढ़ और ओडिशा में कार्यक्रमों के कार्यान्वयन में दीर्घकालीन आधार पर ‘कैरिटस इंडिया’ के साथ इस तरह की भागीदारी कर सकता है आपको महत्वपूर्ण जिम्मेदारी निभानी है बशर्ते आप कुछ लक्ष्मण रेखा का सम्मान करते हो।
अगले रोज ही कश्मीर से आती एक ताजा खबर इसी ‘लक्ष्मण रेखा’ के एक और आयाम को रेखांकित करती है। वहां की एक शरीयत अदालत ने धर्मांतरण विवाद पर पादरी सी एम खन्ना, गयूर मसीह, चंद्रकांता खन्ना और पादरी जिम ब्रेस्ट के राज्य में प्रवेश पर पाबन्दी का फैसला सुनाया और इसी के साथ घाटी के मिशनरी स्कूलों की निगरानी के साथ वहां इस्लामिक शिक्षा देने की पहल करने को भी कहा हैं श्रीनगर स्थित आल इंडिया सेंटस चर्च के पादरी सीएम खन्ना पर मुस्लिम युवकों को ‘प्रलोभन’ देकर धर्मांतरण कराने के आरोप लगे थे। इस मामले में उनके विरुद्व धारा 153 ए और 295 ए के तहत मामला दर्ज कर उन्हें जेल भी भेजा गया था। यह दोनों धाराएं दो समुदायों के बीच आपसी वैमनस्य बढ़ाने और दूसरे की भावनाओं को आहत करने और अशांति फैलाने पर सख्त सजा का प्रावधान करती है।
हाल ही में एक राष्ट्रीय पत्रिका में प्रकाशित लेख के मुताबिक योजना-बद्ध तरीके से धर्मांतरण की मुहिम चलाने की रणनीति अपनाई जा रही है। आंकड़े बताते है कि भारत में चार हजार से ज्यादा मिशनरी गुप्र सक्रिय है जो धर्मांतरण की जमीन तैयार कर रहे है। त्रिपुरा में एक प्रतिशत ईसाई आबादी थी जो एक लाख तीस हजार हो गई है। आंकड़े बताते है कि इस जनसंख्या में 90 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। अरुणाचल प्रदेश में 1961 में दो हजार से कम ईसाई थे जो आज बारह लाख हो गये है।धर्मांतरण की इस घटना से घाटी में महौल ईसाई मिशनरियों के विरुद्व होने लगा है। हुर्रियत के उदारवादी गुट के नेता मीरवाइज फारुक के नेतृत्व में कश्मीर के सभी इस्लामिक संगठनों के नेताओं, मौलवियों की बैठक ‘मुत्तिहादा मजलिस ए उलेमा’ नामक संगठन के नाम पर हुई जिसमें ईसाई मिशनरियों और अन्य गैर इस्लामिक ताकतों से निपटने के लिए ‘तहफ्फुज ए इस्लाम’ नामक संगठन का गठन किया।
संगठन ने घाटी के मिशनरी स्कूलों को धर्मांतरण का अड्डा बताते हुए राज्य सरकार से इनकी निगरानी के साथ वहां इस्लामी शिक्षा देने की पहल करने को कहा है। ऐसे किसी भी साहित्य पर रोक लगाने की मांग की है जो इस्लामिक शिक्षाओं और सिद्धान्तों के विरुद्ध हो। कश्मीरी नेतृत्व धर्मांतरण के प्रति लगातार चौंकना रहता है कुछ वर्ष पूर्व दिल्ली से प्रकाशित एक अंग्रेजी दैनिक में छपी इस तरह की खबरों के कारण चर्च नेतृत्व को सफाई देनी पड़ी थी लेकिन इस बार यह मामला शांत होता दिखाई नही दे रहा। घाटी से आ रही खबरों के मुताबिक कुछ अलगाववादी नेताओं और संगठनों ने मीरवाइज और गिलानी के बीच धर्मांतरण मुद्दे पर एकता कराने कराने का प्रयास किया। हालांकि, एकता तो नहीं हुई है, अलबत्ता दोनों गुट मिलकर एक साझा रणनीति बनाकर लोगों को सड़क पर लाने के मुद्दे पर सहमत हो गए है।
जम्मू-कश्मीर कैथोलिक आर्चडायसिस के बिशप पीटर सेलेस्टीन एलमपसरी और चर्च ऑफ नार्थ इंडिया अमृतसर डायसिस के बिशप पी.के सामानरी ने सरकार से इस मामले में हस्तक्षेप करने का आग्रह किया है। घाटी में ईसाइयों की संख्या बेहद कम है वही जम्मू रीजन में कठुआ, जम्मू और इसके आसपास ईसाइयों की कुछ आबादी है। कुछ वर्ष पूर्व प्रसार भारती द्वारा प्रसारित एक वृत्तचित्र ‘इन सर्च ऑफ सैल्फ रिस्पैक्ट’ में इस क्षेत्र के ईसाइयों को बेहद दयनीय स्थिति में दिखया गया था, धर्मांतरण के बाद भी उनके जीवन में कोई विशेष बदलाव नहीं हुआ अधिक्तर आज भी सफाई कर्मचारी के रुप में अपना जीवन निर्वाह कर रहे है। जबकि राज्य में कैथोलिक एवं प्रोटेस्टैंट चर्चो के पास विशाल संसाधनों का भंडार है।
केन्द्रीय मंत्री जयराम रमेश स्पष्टवादी और स्वतंत्र सोच के हैं उनके बयानों से कई बार उनकी सरकार को भी असहज स्थिति से गुजरना पड़ा है। धर्मांतरण पर उनके बयान के गंभीर अर्थ है। चर्च के पास उपलब्ध विशाल संसाधनों का प्रयोग केन्द्र और राज्य सरकारे मानव कल्याण के लिए करने को आतुर है। भारत में किसी को भी चर्च के सेवा कार्यो से अपति नही है अपति है इसकी आड़ में दूसरे की आस्था में अनावश्यक हस्तक्षेप से। भारत का संविधान किसी भी धर्म का अनुसरण करने की आजादी देता है उसमें निहित धर्मप्रचार को भी मान्यता देता है। समाज सेवा की आड़ में दूसरों की आस्था पर हमले की इजाजत नही देता। सेवा कार्यो और धर्मांतरण के बीच यही एक लक्ष्मण रेखा है। जिसके सम्मान की आशा हर भारतीय चर्च संगठनों से करता है।
आदिवासी समूहों में चर्च का कार्य तेजी से फैल रहा है जो आदिवासी समूह ईसाइयत की और आर्किषत हो रहे है धीरे धीरे उनकी दूरी दूसरे आदिवासी समूहों से बढ़ रही है और आज हालात ऐसे हो गए है कि ईसाई आदिवासी और गैर ईसाई आदिवासियों के बीच के संबध समाप्त हो गए है। उनके बीच बैर बढ़ता जा रहा है जिसका परिणाम हम ओडिशा में गा्रहम स्टेंस और उसके दो बेटो की हत्या और कंधमाल में सांप्रदायिक हिंसा में देख चुके है। इस सारी हिंसा के पीछे लक्ष्मण रेखा को पार करने के ही बड़े कारण रहे है जिसकी तरफ देश का सुप्रीम कोर्ट भी कई बार ईशारा कर चुका है।
जयराम रमेश ने ‘कैरिटस इंडिया’ को गा्रमीण विकास मंत्रालय की तरफ से झारखंड, छतीसगढ़ और ओडिशा में कार्यक्रमों के कार्यान्वयन में दीर्घकालीन आधार पर भागीदारी का निमंत्रण देते हुए महत्वपूर्ण जिम्मेदारी निभाने को कहा है बशर्ते वे कुछ लक्ष्मण रेखा का सम्मान करें। चर्च संगठन लम्बे समय से आदिवासी नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में अपने अनुकूल कार्य करने का महौल बनाने की कौशिश कर रहे है। 7 जून 2010 को एक अंग्रेजी दैनिक में प्रकाशित लेख (Help us to help them) जिसे दिल्ली कैथोलिक आर्चडायसिस के प्रवक्ता ने लिखा था ऐसा ही संदेंश देता है। लेख में बड़ी चुतराई से राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से अनुकूल महौल बनाने की मांग की गई और अपनी पीठ थपथपाते हुए पूर्वी राज्यों के विकास का श्रेय चर्च को दिया गया।
देश में चर्च और आर.एस.एस ही दो ऐसे संगठन है जिनकी पंहुच आदिवासी समूहों और दूर-दराज के क्षेत्रों में है। इन संगठनों के पास कार्यकर्ताओं का एक संगठित ढांचा है। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ भी ‘व्यक्ति निर्माण’ और अनेक क्षेत्रों में कार्य कर रहा है। आदिवासी समूहों के बीच उसका दायरा लगातार बढ़ रहा है। आदिवासी समूहों और वंचित वर्गो के बीच कार्यरत आर.एस.एस. के संगठन धर्मांतरण का लगातार विरोध कर रहे है। कुछ वर्ष पूर्व झारंखड के राज्यपाल ने गरीबी रेखा के नीचे रहने वाले लोगों को चर्च के माध्यम से अनाज बांटने की एक योजना बनाई थी जिस पर इतना बवाल हुआ कि सरकार को अपने कदम पीछे हटाने पड़े।
ईसाई मिशनरियों पर धर्मांतरण के गंभीर आरोप लगते रहे है हिन्दू समुदाय ही नहीं मुस्लिम और सिख समुदाय भी उनकी धर्मांतरण वाली गतिविधियों का विरोध कर रहे है। हालांकि ईसाइयत की तरह इस्लाम भी अपना संख्याबल बढ़ाने में विश्वास करता है परन्तु मीनाक्षीपुरम की घटना के बाद मुस्लिम धर्मांतरण के तेवर ठंडे पड़ गए है लेकिन ईसाई मिशनरियों के बारे में ऐसे समाचार लगातार आते रहते है। अधिक्तर ईसाई कार्यकर्ता दलित ईसाइयों के प्रति चर्च द्वारा अपनाए जा रहे नकरात्मक रवैये से निराश है।
धर्मांतरण से न केवल धर्म बल्कि भाषा और सामाजिक व्यवस्था भी पूरी तरह बदल जाती है अंततः जिसका परिणाम सांस्कृति परिवेश के परिवर्तन के रुप में होता है। मध्य एशिया में धर्मांतरण राजनीति का आधार बनता जा रहा है। इस्लामी व्यवस्था भी इसकी पक्षधर है लेकिन जिस रफ्तार से ईसाइयत फैल रही है और अपने पंथ को आधार बनाकर वे जिस तरह से दुनियां को चलाना चाहते हैं यह आज के समाज-दुनियां के लिए बड़ी चुनौती है। जनसंख्या के आकड़े देश और दुनिया को बदलते हैं इसलिए धार्मिक उन्माद समस्त मानवता के लिए चुनौती है।
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