माखन लाल चतुर्वेदी पत्रकारिता वि.वि. का मामला
प्रतिनिधि// उदय सिंह पटेल (सिहोरा // टाइम्स ऑफ क्राइम)
प्रतिनिधि से सपर्क:- 9329848072
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जबलपुर मध्यप्रदेश शासन के मुखिया मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की अनुशंसा पर राजधानी भोपाल स्थित माखन लाल चतूर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय में नियम विरूद्ध आठ नियुक्तियों को जनहित याचिका के जरिए कटघरे में रखा गया है। हाईकोर्ट के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश सुशील हरकौली तथा जस्टिस अलोक अराधे की युगल पीठ ने उक्त मामले को गंभीरता से लेते हुए विश्वविद्यालय प्रशासन से जबाब तलब करने के साथ ही नियुक्तियों के संदर्भ में रिकार्ड पेश करने निर्देशित किया है। मामले की प्रारंभिक सुनवाई के दौरान जनहित याचिकाकत्र्ता डॉक्टर आशुतोष मिश्रा का पक्ष वरिष्ठ अधिवक्ता अजय मिश्रा ने रखा। उल्लेखनीय है कि मुख्यमंत्री श्री चौहान एवं माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विवि. भोपाल की जनरल काउंसिल के चेयरमेन ने अपने पद व अधिकार का दुरूपयोग करते हुए उन्होंने विवि. में बैकडोर से अवैधानिक रूप से नियुक्तियाँ कराई है, जो चुनौती के योग्य है। सी.एम. श्री चौहान ने विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के विहित प्रावधानों को बला ए ताक रख नियुक्तियाँ कराई तथा इस प्रकिया में न तो अपेक्षित मेरिट लिस्ट और न ही अर्हता आदि की परवाह की गई। नोट शीट पर की गई नियुक्तियाँ- जनहित याचिकाकत्र्ता की ओर से तर्क दिया गया कि विवि. में छ: प्रोफेसर, एक प्रकाशन अधिकारी और एक विशेष कर्तव्यस्त अधिकारी की बिना विज्ञापित किये नियम विरूद्ध नियुक्ति की गई। उल्लेखनीय है कि विगत 14 अक्टूबर 2010 को अशोक टंडन को सीनियर प्रोफेसर के पद पर सी.एम. की नोटशीट के आधार पर नियुक्ति करा दी गई। अत: इस संदर्भ में विधिवत चयन प्रकिया का पालन नहीं किया गया। आवेदन पत्र आमंत्रित कर स्क्रूटनी करने तथा साक्षात्कार लेने जैसी कोई प्रकिया नहीं अपनाई गई।
विधि विरूद्ध कवायद -
इसी तरह विगत 8 अक्टूबर 2010 को सौरभ मालवीय को सी.एम.की अनुशंसा प्रकाशन अधिकारी के पद पर दो वर्ष के लिए नियुक्ति दी गई। दिलचस्प बात यह है कि उसी दिन रजिस्ट्रार ने श्री मालवीय के हक में 30 हजार रूपए नियमित मासिक वेतन प्रदान किये जाने संबंधी प्रपत्र भी जारी कर दिया। इतना ही नहीं इसके पीछे की कहानी बड़ी रोचक है, मालुम हो कि सी.एम. ने अपने अधिकार का प्रयोग करते हुए पूर्व में विगत 4 अक्टूबर 2010 को प्रकाशन विभाग स्थापित करने के निर्देश दिये। जिसके बाद जनरल बाडी की मीटिंग के एजेंडे में यह बिन्दु जुड़वाया गया। इससे साफ जाहिर है, कि प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री चौहान ने विश्वविद्यालय विधि विरूद्ध कवायद करके श्री मालवीय को उपकृत कर दिया। उल्लेखनीय है कि इसी कड़ी में राघवेन्द्र सिंह नामक व्यक्ति को 8 अक्टूबर 2010 ओ.एस.डी. के पद पर 75 हजार मासिक वेतन पर नियुक्त कराया गया। दिलचस्प बात तो यह है कि इस तरह का कोई पद विश्वविद्यालय में स्वीकृत ही नहीं है।
विधि विरूद्ध कवायद -
इसी तरह विगत 8 अक्टूबर 2010 को सौरभ मालवीय को सी.एम.की अनुशंसा प्रकाशन अधिकारी के पद पर दो वर्ष के लिए नियुक्ति दी गई। दिलचस्प बात यह है कि उसी दिन रजिस्ट्रार ने श्री मालवीय के हक में 30 हजार रूपए नियमित मासिक वेतन प्रदान किये जाने संबंधी प्रपत्र भी जारी कर दिया। इतना ही नहीं इसके पीछे की कहानी बड़ी रोचक है, मालुम हो कि सी.एम. ने अपने अधिकार का प्रयोग करते हुए पूर्व में विगत 4 अक्टूबर 2010 को प्रकाशन विभाग स्थापित करने के निर्देश दिये। जिसके बाद जनरल बाडी की मीटिंग के एजेंडे में यह बिन्दु जुड़वाया गया। इससे साफ जाहिर है, कि प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री चौहान ने विश्वविद्यालय विधि विरूद्ध कवायद करके श्री मालवीय को उपकृत कर दिया। उल्लेखनीय है कि इसी कड़ी में राघवेन्द्र सिंह नामक व्यक्ति को 8 अक्टूबर 2010 ओ.एस.डी. के पद पर 75 हजार मासिक वेतन पर नियुक्त कराया गया। दिलचस्प बात तो यह है कि इस तरह का कोई पद विश्वविद्यालय में स्वीकृत ही नहीं है।
इस तरह जाहिर है कि विवि. अधिनियम के सेक्शन 4 व आर्टिकल 14 एवं 16 का सर्वथा उल्लंघन कर तमाम नियम कायदों को बला ए ताक पर रखतेे हुए बैक डोर नियुक्तियाँ कराई गई। है। अत: इस मामले आरक्षण नीति सहित अन्य बिन्दुओं की भी सरासर अवहेलना की गई। बहस के दौरान कोर्ट के समक्ष वयोवृद्ध डॉ. नंदकिशोर त्रिखा को 87 सत्तासी हजार मासिक वेतन पर सीनियर प्रोफेसर बनाने के अलावा देवेश किशोर, रामजी त्रिपाठी तथा आशीष जोशी को 81 इक्यासी हजार व 71 इकहत्तर हजार मासिक वेतन पर प्रोफेसर तथा अमिताभ भटनागर को प्रोफेसर मैनेजमेन्ट बनाने के बिन्दु भी रेखांकित किये गये। तमाम अवैधानिक नियुक्तियों को शून्य करार दें- याचिका मे आरोप लगाया है कि उक्त सभी नियुक्तियाँ मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री श्री शिवराजसिंह चौहान की विशेष रूचि के कारण हुई है। जिनके संदर्भ में निर्धारित मानदंडों का पालन नहीं किया गया है। लिहाजा उक्त अवैध नियुक्तियों को शून्य करार दे दिया जाय। जनहित याचिका में विश्वविद्यालय के अलावा यूजीसी प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और अवैध नियुक्ति पाने वालों को इस याचिका में पक्षकार बताया है।
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