प्रस्तुति - टी ओ सी न्यूज ( toc news)
पिछले 48 घंटो से पूरे मीडिया में ‘‘मोदी’’ ही छाए हुये है। फिर चाहे वह ललित मोदी हो या कुछ अंशो में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी। विदेश मंत्री सुषमा स्वराज का मानवीय संवेदनाओं के आधार पर अपने विशेषाधिकार का प्रयोग कर एक फरार घोषित (वांटेड) आरोपी जिसके विरूद्ध एक तथाकथित लुक आउट वांरट जारी किया गया है (ऐसा कुछ क्षेत्रों में कहा गया है) कि उनकी केसर पीडित पत्नी की सहायता के लिए दी गई सुविधा पर प्रश्न उठना स्वाभाविक है। इसलिये की वे भारत सरकार के लिये आर्थिक व आपराधिक मामले में एक वांटेड आरोपी है जिस पर कोई विवाद नहीं है। जिस तरह की परिस्थितियॉं ,घटनाएॅ इस मामले में अभी तक सामने आयी है, क्या वह सिर्फ मानवीय संवेदनाओं या अन्य तथ्यों.....के आधार पर उत्पन्न हुई है, इस पर एक प्रश्न चिन्ह अवश्य लगता है।
जहॉं तक मानवीय संवेदनाओं का प्रश्न है एक मानव व नागरिक होने के नाते मानवीय संवेदनाओं का होना न केवल स्वाभाविक है बल्कि यह अत्यन्त आवश्यक भी है। इससे कोई इनकार भी नहीं कर सकता है। जब हम एक घोषित सजायाफ्ता आरोपी के मानवाधिकार को जो कि मानवीय संवेदनाओं पर ही आधारित होता है, का न केवल नैतिक रूप से सर्मथन करते है बल्कि अंतराष्ट्रीय न्यायालय एवं हमारे उच्चतम न्यायालय भी इसको मान्यता प्रदान करते है।
यद्यपि मानवाधिकार का कोई लिखित काूनन हमारे संविधान में नहीं है। तब फिर भारतीय नागरिक की की पत्नी के विदेश में इलाज और उसका जीवन बचाने के लिए एक भारतीय महिला द्वारा स्वास्थ लाभ प्रदान करने के लिये मानवीय संवेदना के आधार पर सुविधा उपलब्ध कराने पर इतना हाहाकार क्यों ?
प्रश्न यही से उत्पन्न होता है लेकिन उत्तर निरूत्तर होकर आरोप व प्रत्यारोप में उलझ सा गया है। क्या सुषमा स्वराज ने सिर्फ और सिर्फ मानवीय संवेदनाओं के आधार पर ही ललित मोदी को सहायता दी थी या फिर इसमें अन्य कोई तथ्य परस्पर - स्वार्थ पूर्ति व नैतिकता पर प्रश्न चिन्ह नहीं लगे हुए है, इस बात की राजनैतिक आरोप - प्रत्यारोप से परे गहरी विवेचना किया जाना आवश्यक है, ताकि भविष्य में इस तरह की घटनाओं पर रोक लग सके।
किसी की जान बचाने के लिए छोडा जाने के पीछे मानवीय संवेदना का आधार ही होता है जब पूर्व में केन्द्रीय मंत्री मुफ्ती मोहम्मद (वर्तमान में जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री) की बिटिया को छुडाने के लिए पाकिस्तानी आंतकियों द्वारा किये गए विमान के अपहरण को छुडाने के लिए देश की संप्रभुता एवं आंतरिक स्थिति पर गहरा आघात करने वाले खुंखार आंतकवादियों को मानवीय आधार पर छोडा जा सकता है। तब इसी परिप्रेक्ष्य में सुषमा स्वराज द्वारा की गई कार्यवाही को देखे तो इसकी चर्चा भी मीडिया में नहीं होनी चाहिए। लेकिन यदि इस घटना के सिक्के के तो इसकी चर्चा भी मीडिया में नहीं होनी चाहिएा। लेकिन यदि इस घटना के सिक्के के दूसरे पहलू को देखा जाए जो स्थिति कुछ और ही नजर आती है।
सुषमा स्वराज पिछली लोकसभा में विपक्ष की नेता रहने से लेकर वर्तमान में भारत सरकार की विदेश मंत्री है जिनके ललित मोदी से पारिवारिक संबंध है , इस पर कोई विवाद नहीं हो सकता है। ललित मोदी के आपराधिक प्रकरण को सुषमा स्वराज की पुत्री बांसुरी द्वारा मुख्य वकील यू यू ललित के साथ केस लडने से लेकर सुषमा स्वराज के पति स्वराज कौेशल जो कि ललित मोदी के 22 साल से वकील है द्वारा अपने भतीजे के संबंध में यू.के. में यूनिर्वसिटी में प्रवेश के लिए ललित मोदी से मांगी गई सहायता (जो उनको मिली भी) से उनके पारिवरिक संबंध व आर्थिक हित सिद्ध होते है।
यदि एक नागरिक को किसी घोषित भगोडा आरोपी के संबंध में कोई जानकारी मिलती है तो उसका यह नागरिक दायित्व होता है कि वह पुलिस को तुरंत उसकी जानकारी दे कर गिरफ्तारी करने में सहयोग करे। जब सुषमा स्वराज का घोषित अपराधी ललित मोदी से लगातार संपर्क रहा हैं और पारिवारिक संबंध रहे है तब उन्होनें उसी समय ललित मोदी को स्वदेश आकर समर्पण कर देश के कानून का सामना करने की सलाह क्योें नहीं दी (फिर चाहे भले ही वे उसे नहीं मानते ?) यह एक प्रासंगिक प्रश्न है। यदि उन्होने ऐसी कोई सलाह दी है तो ऐसा कोई कथन इस संबंध में पिछले 48 घंटो में सुषमा जी का नहीं आया है।
मेैं यह सोचता हूॅ कि मुद्दे का यही टर्निग पांईन्ट है। या तो उनसे सलाह न देने में चूक हुई है जो उनका एक संवैधानिक दायित्व था या उन्होनें एक पारिवारिक मित्र की हैसियत से व पूर्व से ही अनुग्रहित होने के कारण व उनके परिवारक आर्थिक (लाभ) के संबंधों के मंद्देनजर पद का उपयोग कर उन्हे फायदा पहुॅचाया। मैं इसे पद का दुरूपयोग नहीं कहूॅगा क्योंकि सुषमा जी की छवि अभी तक इस तरह की नहीं रही है। वीजा की समयावधि और सीमा को लेकर अनेक प्रश्न दिनभर चर्चित रहे जिसे दोहराने की आवश्यता नहीं है।
लेकिन स्वयं सुषमा जी का बचाव निश्चित रूप से उन्हें कमजोर सीढी पर ही खड़ा करता है क्याेंकि जिस चिकित्सकीय आवश्यकता के आधार पर ललित मोदी की व्यक्तिगत उपस्थिति उनकी पत्नी के इलाज के समय सहमति देने के लिये पुर्तगाल में जरूरी थी जिस आधार पर उन्होंने हस्तक्षेप किया, लेकिन पुर्तगाल का कानून ऐसा नहीं कहता है। जिस नैतिकता को लेकर उन्होंने सार्वजनिक जीवन की जिन उचाईयों को अभी तक पाया है उनके समान बिरले ही मंत्री होगें। अतः उन्हें अपनी असावधानी पूर्वक हो गई गलती को स्वीकार कर नैतिक मूल्यों के आधार पर इस्तीफा देकर लाल बहादुर शास्त्री जी की लाईन में खडे हो जाना चाहिए, जनता उन्हे अपने सिर पर बैठाईगी।
अन्त में लेख लिखते समय ललित मोदी ने राजस्थान की मुख्यमंत्री वंसुधरा राजे सिंधिया को भी लपेटे में ले लिया जैसा कि ब्रेकिंग न्यूज में आ रहा है जिस पर प्रथक से चर्चा आगे की जायेगी।
राजीव खंडेलवाल
(लेखक वरिष्ठ कर सलाहकार एवं पूर्व नगर सुधार न्यास अध्यक्ष हैं)
पिछले 48 घंटो से पूरे मीडिया में ‘‘मोदी’’ ही छाए हुये है। फिर चाहे वह ललित मोदी हो या कुछ अंशो में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी। विदेश मंत्री सुषमा स्वराज का मानवीय संवेदनाओं के आधार पर अपने विशेषाधिकार का प्रयोग कर एक फरार घोषित (वांटेड) आरोपी जिसके विरूद्ध एक तथाकथित लुक आउट वांरट जारी किया गया है (ऐसा कुछ क्षेत्रों में कहा गया है) कि उनकी केसर पीडित पत्नी की सहायता के लिए दी गई सुविधा पर प्रश्न उठना स्वाभाविक है। इसलिये की वे भारत सरकार के लिये आर्थिक व आपराधिक मामले में एक वांटेड आरोपी है जिस पर कोई विवाद नहीं है। जिस तरह की परिस्थितियॉं ,घटनाएॅ इस मामले में अभी तक सामने आयी है, क्या वह सिर्फ मानवीय संवेदनाओं या अन्य तथ्यों.....के आधार पर उत्पन्न हुई है, इस पर एक प्रश्न चिन्ह अवश्य लगता है।
जहॉं तक मानवीय संवेदनाओं का प्रश्न है एक मानव व नागरिक होने के नाते मानवीय संवेदनाओं का होना न केवल स्वाभाविक है बल्कि यह अत्यन्त आवश्यक भी है। इससे कोई इनकार भी नहीं कर सकता है। जब हम एक घोषित सजायाफ्ता आरोपी के मानवाधिकार को जो कि मानवीय संवेदनाओं पर ही आधारित होता है, का न केवल नैतिक रूप से सर्मथन करते है बल्कि अंतराष्ट्रीय न्यायालय एवं हमारे उच्चतम न्यायालय भी इसको मान्यता प्रदान करते है।
यद्यपि मानवाधिकार का कोई लिखित काूनन हमारे संविधान में नहीं है। तब फिर भारतीय नागरिक की की पत्नी के विदेश में इलाज और उसका जीवन बचाने के लिए एक भारतीय महिला द्वारा स्वास्थ लाभ प्रदान करने के लिये मानवीय संवेदना के आधार पर सुविधा उपलब्ध कराने पर इतना हाहाकार क्यों ?
प्रश्न यही से उत्पन्न होता है लेकिन उत्तर निरूत्तर होकर आरोप व प्रत्यारोप में उलझ सा गया है। क्या सुषमा स्वराज ने सिर्फ और सिर्फ मानवीय संवेदनाओं के आधार पर ही ललित मोदी को सहायता दी थी या फिर इसमें अन्य कोई तथ्य परस्पर - स्वार्थ पूर्ति व नैतिकता पर प्रश्न चिन्ह नहीं लगे हुए है, इस बात की राजनैतिक आरोप - प्रत्यारोप से परे गहरी विवेचना किया जाना आवश्यक है, ताकि भविष्य में इस तरह की घटनाओं पर रोक लग सके।
किसी की जान बचाने के लिए छोडा जाने के पीछे मानवीय संवेदना का आधार ही होता है जब पूर्व में केन्द्रीय मंत्री मुफ्ती मोहम्मद (वर्तमान में जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री) की बिटिया को छुडाने के लिए पाकिस्तानी आंतकियों द्वारा किये गए विमान के अपहरण को छुडाने के लिए देश की संप्रभुता एवं आंतरिक स्थिति पर गहरा आघात करने वाले खुंखार आंतकवादियों को मानवीय आधार पर छोडा जा सकता है। तब इसी परिप्रेक्ष्य में सुषमा स्वराज द्वारा की गई कार्यवाही को देखे तो इसकी चर्चा भी मीडिया में नहीं होनी चाहिए। लेकिन यदि इस घटना के सिक्के के तो इसकी चर्चा भी मीडिया में नहीं होनी चाहिएा। लेकिन यदि इस घटना के सिक्के के दूसरे पहलू को देखा जाए जो स्थिति कुछ और ही नजर आती है।
सुषमा स्वराज पिछली लोकसभा में विपक्ष की नेता रहने से लेकर वर्तमान में भारत सरकार की विदेश मंत्री है जिनके ललित मोदी से पारिवारिक संबंध है , इस पर कोई विवाद नहीं हो सकता है। ललित मोदी के आपराधिक प्रकरण को सुषमा स्वराज की पुत्री बांसुरी द्वारा मुख्य वकील यू यू ललित के साथ केस लडने से लेकर सुषमा स्वराज के पति स्वराज कौेशल जो कि ललित मोदी के 22 साल से वकील है द्वारा अपने भतीजे के संबंध में यू.के. में यूनिर्वसिटी में प्रवेश के लिए ललित मोदी से मांगी गई सहायता (जो उनको मिली भी) से उनके पारिवरिक संबंध व आर्थिक हित सिद्ध होते है।
यदि एक नागरिक को किसी घोषित भगोडा आरोपी के संबंध में कोई जानकारी मिलती है तो उसका यह नागरिक दायित्व होता है कि वह पुलिस को तुरंत उसकी जानकारी दे कर गिरफ्तारी करने में सहयोग करे। जब सुषमा स्वराज का घोषित अपराधी ललित मोदी से लगातार संपर्क रहा हैं और पारिवारिक संबंध रहे है तब उन्होनें उसी समय ललित मोदी को स्वदेश आकर समर्पण कर देश के कानून का सामना करने की सलाह क्योें नहीं दी (फिर चाहे भले ही वे उसे नहीं मानते ?) यह एक प्रासंगिक प्रश्न है। यदि उन्होने ऐसी कोई सलाह दी है तो ऐसा कोई कथन इस संबंध में पिछले 48 घंटो में सुषमा जी का नहीं आया है।
मेैं यह सोचता हूॅ कि मुद्दे का यही टर्निग पांईन्ट है। या तो उनसे सलाह न देने में चूक हुई है जो उनका एक संवैधानिक दायित्व था या उन्होनें एक पारिवारिक मित्र की हैसियत से व पूर्व से ही अनुग्रहित होने के कारण व उनके परिवारक आर्थिक (लाभ) के संबंधों के मंद्देनजर पद का उपयोग कर उन्हे फायदा पहुॅचाया। मैं इसे पद का दुरूपयोग नहीं कहूॅगा क्योंकि सुषमा जी की छवि अभी तक इस तरह की नहीं रही है। वीजा की समयावधि और सीमा को लेकर अनेक प्रश्न दिनभर चर्चित रहे जिसे दोहराने की आवश्यता नहीं है।
लेकिन स्वयं सुषमा जी का बचाव निश्चित रूप से उन्हें कमजोर सीढी पर ही खड़ा करता है क्याेंकि जिस चिकित्सकीय आवश्यकता के आधार पर ललित मोदी की व्यक्तिगत उपस्थिति उनकी पत्नी के इलाज के समय सहमति देने के लिये पुर्तगाल में जरूरी थी जिस आधार पर उन्होंने हस्तक्षेप किया, लेकिन पुर्तगाल का कानून ऐसा नहीं कहता है। जिस नैतिकता को लेकर उन्होंने सार्वजनिक जीवन की जिन उचाईयों को अभी तक पाया है उनके समान बिरले ही मंत्री होगें। अतः उन्हें अपनी असावधानी पूर्वक हो गई गलती को स्वीकार कर नैतिक मूल्यों के आधार पर इस्तीफा देकर लाल बहादुर शास्त्री जी की लाईन में खडे हो जाना चाहिए, जनता उन्हे अपने सिर पर बैठाईगी।
अन्त में लेख लिखते समय ललित मोदी ने राजस्थान की मुख्यमंत्री वंसुधरा राजे सिंधिया को भी लपेटे में ले लिया जैसा कि ब्रेकिंग न्यूज में आ रहा है जिस पर प्रथक से चर्चा आगे की जायेगी।
राजीव खंडेलवाल
(लेखक वरिष्ठ कर सलाहकार एवं पूर्व नगर सुधार न्यास अध्यक्ष हैं)
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