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लेखक : डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'
सर्वविदित है कि जनसंख्या की दृष्टि से सबसे बड़ा राज्य—उत्तर प्रदेश।
लोकसभा और विधानसभा की सीटों की संख्या की दृष्टि से सबसे बड़ा राज्य—उत्तर प्रदेश।
इस सबसे बड़े राज्य में बहुजन समाज पार्टी बहुजनों की सरकार बनाने के लिये बसपा सुप्रीमों मायावती ने विधानसभा की कुल 403 सीटें पर अपनी पार्टी के प्रत्याशियों की घोषणा की है।
जो इस प्रकार है :—
1. अजा/एससी को 87,
2. मुस्लिम को 97,
3. ओबीसी को 106 और
4. अगड़ी जाति के 113 उम्मीदवार हैं.
अगड़ी जातियों में 66 टिकट ब्राह्मणों को, 36 कायस्थ और 11 वैश्य और पंजाबी समाज के लोगों को दिए गए हैं।
मायावती द्वारा किये गये टिकट वितरण से मेरे मन में कुछ सवाल कौंध रहे हैं :—
1. क्या उत्तर प्रदेश में एक भी आदिवासी ऐसा नहीं, जिसको बसपा का प्रत्याशी घोषित किया जा सके?
2. क्या उत्तर प्रदेश विधानसभा में शुरू में अजजा/आदिवासियों के लिये सुरक्षित निर्वाचन क्षेत्र हुआ करते थे?
3. वर्तमान उत्तर प्रदेश विधानसभा में अजजा/आदिवासियों के लिये सुरक्षित निर्वाचन क्षेत्र क्यों नहीं हैं?
4. उत्तर प्रदेश में आदिवासियों का प्रतिनिधित्व कौन करता है?
5. क्या मायावती को आदिवासियों की जरूरत नहीं होगी? इसे भी पढ़ें : -
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उम्मीद करता हूँ कि सामाजिक न्याय और बहुजन की अवधारणा से सम्बद्ध भारत के प्रबुद्धजन जनहित में उक्त सवालों के जवाब अवश्य तलाशेंगे। क्योंकि उत्तर प्रदेश में एक अनुमान के अनुसार 11 लाख से अधिक आदिवासी हैं। इसके बावजूद भी मायावती द्वारा किये गये उक्त टिकट वितरण से ऐसा लग रहा है कि मायावती के नेतृत्व में बसपा आदिवासी विहीन बहुजनों की सत्ता के संघर्ष के लिये राजनीति कर रही है। क्या मायावती को उत्तर प्रदेश से बाहर भी आदिवासियों की जरूरत नहीं होगी? क्या मायावती का बहुजन समाज पार्टी आदिवासी विहीन है?
उत्तर प्रदेश में एक भी आदिवासी को विधानसभा चुनाव में प्रत्याशी नहीं बनाकर मायावती द्वारा भारतभर के 12 करोड़ आदिवासियों का सार्वजनिक रूप से अपमान किया गया है। ऐसे में देश के सभी आदिवासियों को बहुजन समाज पार्टी के प्रत्येक समर्थक से आँखों में आँख डालकर जवाब मांगने का वक्त है।
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