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विचारों का ऊर्जा - चक्र ही निर्धारित करता है व्यक्तित्व
संतुलित, अनुशासित और सकारात्मक जीवन पद्धित से ही समस्याओं का समाधान सम्भव
सहज संवाद / रवीन्द्र अरजरिया
विश्व मंच पर भौतिक सामर्थ का परचम फहराने वालों की नकारात्मकता निरंतर विकासोन्मुख हो रही है। परमाणु क्षमताओं का दंभ, साम्प्रदायिकता की चालें और तानाशाही की नीतियां नित नये गुल खिलाने में लगी हैं। कल्पना में उभरी भविष्य की तस्वीर का खाका भयावह घटनाओं को इंगित करने लगा है। आशंकाओं के बादल गहराने लगे। अस्तित्व की चिन्ता सताने लगी। लाख प्रयासों के बाद भी परिणाम तक पहुंचना सम्भव नहीं हो रहा था। चिंतन को परिणाम तक पहुंचाने में सफल नहीं हो पा रहा था कि तभी फोन की घंटी बज उठी। कल्पनिक उडान थम गई।
शांतिकुंज से आये फोन पर बताया गया कि अखिल विश्व गायत्री परिवार के प्रमुख तथा देव संस्कृति विश्वविद्यालय के कुलाधिपति डा. प्रणव पण्ड्या दिल्ली पहुंचने वाले हैं तथा उन्होंने हमें याद किया है। बीती स्मृतियां का सुखद स्पन्दन वर्तमान की चौखट पर दस्तक देने लगा। सब कुछ सजीव हो उठा। कुलाधिपति का चैम्बर, अन्तर्राष्ट्रीय अध्ययन पद्धतियों पर विचार विमर्श और वाटलिक सेन्टर की स्थापना हेतु चर्चा।
डा. पण्ड्या के सांख्यकीय विश्लेषण के साथ दी जाने वाली कार्य-योजना ने उनकी दूरदर्शिता स्पष्ट झलक रही थी। आगन्तुकों ने एक मत से कार्य योजना स्वीकारी जिसकी परिणति कालान्तर में तीन देशों के बहुआयामी अध्ययन केन्द्र ‘वाटलिक सेन्टर’ की स्थापना के रूप में हुई। शुभारम्भ समारोह मंच पर अनेक राष्ट्रों के राजदूत सहित उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री ने अपनी भागीदारी दर्ज की। घडी ने सुबह के 7 बजने की संकेत दिया। यादों के दायरे से बाहर निकला। दैनिक क्रियाओं से निवृत्त होकर कुलाधिपति से मिलने के लिए निर्धारित स्थान पर पहुंच गये।
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अभिवादन के उपरान्त उन्होंने अखिल विश्व गायत्री परिवार की भावी योजनाओं, उनके क्रियान्वयन तथा सम्भावित परिणामों से अवगत कराया। इस में हमारी भागीदारी पूर्व निर्धारित थी। विश्वस्तरीय मानसिक प्रदूषण दूर करने वाली योजनाओं में स्वयं की भूमिका होने पर सुखद अनुभूति हुई। हमें लगा कि मन में चल रहे झंझावात को शान्त करने के लिए यह एक अच्छा अवसर है। सो वर्तमान में चल रही विश्व की विसम परिस्थियों के विध्वंसात्मक स्वरूप को प्रश्न बनाकर प्रस्तुत कर दिया। चिर परिचित मुस्कुराहट के साथ उन्होंने कहा कि यह विध्वंसात्मक प्रवृत्तियां असहज नहीं हैं।
भौतिक वर्चस्व की जंग में समकक्ष से आगे निकलने की लालसायें जब अनुशासन की मर्यादायें तोड देतीं हैं तब तानाशाही का परचम फहराने लगता है। समाज के प्रत्येक स्तर पर यह युद्ध चल रहा है। इस सब के पीछे देहभान की अन्तहीन आकांक्षायें ही उत्तरदायी हैं। जब तक हम देहभान से बाहर निकल कर आत्मभान तक नहीं पहुंच जाते, तब तक जीवन के सत्य का न तो बोध ही हो सकेगा और न ही उसके वास्तविक कर्तव्यों का सफल निर्वहन ही सम्भव है। विश्व बंधुत्व की भावना आज कहीं खो सी गई है। स्वार्थ ने सहकार का अपहरण कर लिया है।
अपनत्व की परिभाषायें स्वयं के इर्द-गिर्द घूमने वाले लाभकारी तत्वों तक ही सीमित होकर रह गईं हैं। प्रतिष्ठा, सम्पन्नता और आनन्द के साश्वत अर्थ दो गज जमीन के नीचे दफन कर दिये गये हैं। अधीनस्तों की जमात में इजाफा करने वाले, मृगमारीचिका के पीछे दौड रहे हैं। आगे के शब्दों ने गूढ संकेतों का आवरण ओढ लिया। उनके ललाट पर उभरने वाली चिन्ता की लकीरों ने कुलाधिपति की मानसिक पीडा की चुगली करना शुरू कर दी। विभिन्न भविष्यवक्ताओं से लेकर युगऋषि पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य तक के उदघोषों की रोशनी मे की जाने वाली व्याख्याओं के कुछ अंश ही हमारी समझ में आ रहे थे। सो उनके अल्प विराम लेते ही हमने सीधा सा प्रश्न कर दिया।
तो क्या इन समस्याओं का समाधान नहीं है। उन्होंने सहज होने का प्रयास करते हुए कहा कि इन समस्याओं के समाधान के लिए अखिल विश्व गायत्री परिवार के संस्थापक परमपूज्य गुरूदेव पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य ने विचार क्रान्ति अभियान का बिगुल फूंका था जिसकी ध्वनि-प्रतिध्वनियां करोडों परिजनों के माध्यम से सम्पूर्ण विश्व को झकझोरने में लगी हुई है। सकारात्मक विचारों के माध्यम से व्यक्ति परिवर्तन, फिर सामाजिक परिवर्तन और उसके बाद विश्व परिवर्तन सम्भव होगा।
विचारों का ऊर्जा-चक्र ही निर्धारित करता है व्यक्तित्व। चिन्तन बदलेगा तो कार्य करने का ढंग बदलेगा। कार्य करने की पद्धति में होने वाला धनात्मक परिवर्तन ही नकारात्मकता को समाप्त करेगा। संतुलित, अनुशासित और सकारात्मक जीवन पद्धित से ही समस्याओं का समाधान सम्भव है। बातचीत चल ही रही था कि एक पीली धोती कुर्ता वाले सज्जन ने आकर धीरे से कुलाधिपति जी के सामने एक कार्ड रख दिया। उन्होंने कार्ड पर नजर डाली और हाथ से संकेत किया। वे सज्जन बाहर चले गये।
हम समझ गये थे कि आगन्तुक कोई अतिविशिष्ट व्यक्ति है जो कुलाधिपति से मिलने के लिए पधार चुके हैं। दीवाल पर लगी घडी पर नजर डाली तो उसने हमारी चर्चा में व्यतीत हुए डेढ घंटे का इशारा किया। हमारे मन में चल रहा झंझावात काफी हद तक शान्त हो चुका था। सो पुनः मिलने के आश्वसन के साथ जाने की अनुमति मांगी। उन्होंने मुस्कुराकर हमें एक बार फिर दिये गये दायित्व का स्मरण कराया और ढेर सारी शुभकामनायें दीं। इस बार बस इतना ही। अगले सप्ताह एक नये मुद्दे के साथ फिर मुलाकात होगी तब तक के लिए खुदा हाफिज।
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