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किसी के खिलाफ एससी/एसटी उत्पीड़न का मामला दर्ज होता है, तो वो अग्रिम जमानत के लिए आवेदन कर सकेगा. अगर कोर्ट को पहली नज़र में लगता है कि मामला आधारहीन है या गलत नीयत से दर्ज कराया गया है, तो वो अग्रिम जमानत दे सकता है.
कानूनों के गलत इस्तेमाल को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति (एससी/एसटी) एक्ट के प्रावधानों में बदलाव किया है. सुप्रीम कोर्ट ने एससी/एसटी एक्ट के तहत दर्ज हुए मामलों में तत्काल गिरफ्तारी पर रोक लगा दी है. उच्चतम न्यायालय ने गिरफ्तारी से पहले प्राथमिक जांच-पड़ताल के आदेश दिए हैं. सुप्रीम कोर्ट ने गिरफ्तारी से पहले मिलने वाली जमानत की रुकावट को भी खत्म कर दिया है. ऐसे में दुर्भावना के तहत दर्ज कराए गए मामलों में अब अग्रिम जमानत भी मिल सकेगी.
सुप्रीम कोर्ट के नए दिशा निर्देशों के अनुसार पहले जांच की जाएगी उसके बाद ही कार्रवाई होगी. मामले में गिरफ्तारी से पहले उच्चाधिकारी से अनुमति लेनी होगी. सर्वोच्च न्यायालय ने इस अधिनियम के बड़े पैमाने पर दुरुपयोग की बात को मानते हुए कहा कि इस मामले में सरकारी कर्मचारी अग्रिम जमानत के लिए आवेदन कर सकते हैं.
आपको बता दें कि इससे पहले इस अधिनियम के तहत सरकारी कर्मचारी पर तुरंत कारवाई करते हुए गिरफ्तारी का प्रावधान था.
गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार द्वारा दायर याचिका पर यह अहम फैसला सुनाया है. इससे पहले बेंच ने सवाल उठाते हुए कहा था कि क्या अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम 1989 के लिए प्रक्रियात्मक सुरक्षा उपाय किए जा सकते हैं ताकि बाहरी तरीकों का इस्तेमाल ना हो? सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और एमिक्स क्यूरी अमरेंद्र शरण की दलीलों को सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया था.
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