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राज्यसभा के उपसभापति पद के लिए विपक्ष का साझा उम्मीदवार कौन हो, इस पर अब तक कोई सहमति नहीं बन पाई है. संसद के मॉनसून सत्र से पहले सोमवार को कांग्रेस समेत 13 विपक्षी पार्टियों की बैठक हुई थी, लेकिन किसी एक नाम पर बात नहीं बनी. हालांकि सूत्रों के मुताबिक विपक्ष साझा उम्मीदवार पर सहमत है. कांग्रेस के वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आजाद के नेतृत्व वाली इस बैठक में कुल 14 पार्टियां बुलाई गई थीं. इनमें से आम आदमी पार्टी को छोड़कर सभी इसमें शामिल हुईं.
अगले साल होने वाले आम चुनाव के मद्देनजर विपक्ष की इस कवायद को काफी अहम माना जा रहा है. जानकारों के मुताबिक इससे संकेत मिलेगा कि भाजपा को टक्कर देने के लिए आपस में जिस एकता की वह कोशिश कर रहा है वह किस हद तक संभव है. बीते साल राष्ट्रपति और उप-राष्ट्रपति चुनाव में तमाम दावों के बावजूद विपक्षी एकता धराशायी होती हुई दिखी थी.
बीती एक जुलाई को पीजे कुरियन का कार्यकाल पूरा होने के बाद राज्यसभा में उपसभापति का पद खाली है. माना जा रहा है कि 18 जुलाई से शुरू हो रहे संसद के मानसून सत्र के दौरान इसके लिए चुनाव करवाया जा सकता है. संसद के उच्च सदन के उप-सभापति के लिए आखिरी बार चुनाव 1992 में हुआ था. इसके बाद अब तक इस पद पर किसी उम्मीदवार को सर्वसम्मति से चुना जाता रहा है. यही वजह है कि उपराष्ट्रपति और राज्य सभा के पदेन सभापति वेंकैया नायडू ने तमाम राजनीतिक दलों से किसी एक नाम को सर्वसम्मति से इस पद के लिए चुनने की अपील की है.
हालांकि, जिस तरह की खटास सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच दिख रही है उसमें ऐसा लगता नहीं कि उनकी सुनी जाएगी. विशेषकर 2019 के आम चुनाव के नौ महीने पहले जब विपक्षी एकता के रूप में भाजपा को बड़ी चुनौती देने की बात कही जा रही है. उधर, भाजपा के नेतृत्व वाला राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) कुछ सहयोगियों के अलग होने के बाद अपना कुनबा संभालने और बढ़ाने में जुटा हुआ है. ऐसे में माना जा रहा है कि भाजपा और कांग्रेस, दोनों अपने सहयोगी दलों में से किसी उम्मीदवार को इस पद के लिए आगे कर सकते हैं.
सोमवार को विपक्ष दलों की बैठक में शामिल हुए 13 दल अपने बूते उपसभापति नहीं बनवा सकते. इन 13 पार्टियों की राज्यसभा में कुल ताकत 102 सीटों की है. भाजपा विरोधी अन्य दलों के सांसदों को मिला दें तो यह आंकड़ा 116 तक पहुंचता है जबकि बहुमत का आंकड़ा 123 है. बताया जा रहा है कि ऐसे में अंदरखाने बीजेडी और टीआरएस जैसे कुछ और दलों को भी मनाने की कोशिश जारी है.
उधर, राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) की बात करें तो इसमें सबसे बड़े दल भाजपा के सांसदों की संख्या 69 है. शिरोमणि अकाली सहित एनडीए में शामिल अन्य दलों और इससे बाहर भाजपा समर्थक बाकी पार्टियों के सांसदों को मिलाकर यह आंकड़ा 107 के करीब पहुंचता है. इनमें अन्नाद्रमुक के 13 सांसद शामिल हैं. माना जा रहा है कि भाजपा भी बीजेडी और टीआरएस को अपनी ओर लाने की पुरजोर कोशिश करेगी. इन दोनों के पास 15 सांसद हैं. टीडीपी के विपक्षी खेमे में शामिल होने के बाद शिवसेना और जदयू का रुख भाजपा को झटका दे सकता है. शिवसेना के पास तीन और जदयू के पास छह सांसद हैं.
इन स्थितियों में माना जा रहा है कि नवीन पटनायक की बीजेडी इस चुनाव में निर्णायक भूमिका निभा सकती है. हालांकि, अब तक उसने अपना रुख साफ नहीं किया है. राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि भाजपा बीजेडी को अपनी ओर लाने की कोशिश कर रही है. लेकिन, ओडिशा में दोनों के बीच आपसी लड़ाई इसके आड़े आ सकती है. दूसरी ओर, बीजेडी को साथ लाने के लिए कांग्रेस तृणमूल कांग्रेस के उम्मीदवार को आगे कर सकती है. बताया जाता है कि नवीन पटनायक और ममता बनर्जी के बीच अच्छे राजनीतिक संबंध हैं. तृणमूल कांग्रेस के उम्मीदवार को आम आदमी पार्टी और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी की ओर से भी समर्थन मिल सकता है.
हालांकि, इसमें एक पेंच भी है. सात सांसद रखने वाले वाम दल तृणमूल कांग्रेस के उम्मीदवार का विरोध कर सकते हैं. इसके अलावा पीडीपी, टीआरएस और आईएनएलडी - जिनके पास कुल नौ सांसद हैं - को अपने पाले में करना विपक्ष के लिए बड़ी चुनौती है.
यानी 2019 से पहले यह विपक्षी एकता का बड़ा इम्तहान है. अगर राज्यसभा उपसभापति चुनाव के बहाने कांग्रेस भाजपा विरोधी दलों को एक साथ लाने में सफल होती है तो 2019 से पहले उसकी एक बड़ी जीत के रूप में देखा जा सकता है. वहीं, भाजपा की कामयाबी विपक्षी एकता को लेकर संशय की स्थिति को और बढ़ाने का ही काम करेगी.
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