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नई दिल्ली । सुप्रीम कोर्ट ने एक विज्ञापन एजेंसी की शिकायत पर सुपरस्टार रजनीकांत की पत्नी लता रजनीकांत के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही का रास्ता साफ कर दिया है। इसके साथ ही शीर्ष अदालत ने कर्नाटक हाई कोर्ट का आदेश भी निरस्त कर दिया है।
इस विज्ञापन एजेंसी ने अपनी निजी शिकायत में आरोप लगाया था कि वे 2014 में ‘कोचादायीयान ’ के निर्माण के बाद के कारोबार में शामिल हुए थे। इस फिल्म का निर्माण मेसर्स मीडियावन ग्लोबल इंटरटेनमेंट लिमिटेड ने किया था और लता की व्यक्तिगत गारंटी पर उसने इसके लिए 10 करोड़ रुपये दिए थे। वह इस निर्माण कंपनी की एक निदेशक थीं।
जस्टिस रंजन गोगोई , जस्टिस आर भानुमति और जस्टिस नवीन सिन्हा की खंडपीठ ने कहा कि लता के खिलाफ कार्यवाही रद्द करने की हाई कोर्ट की कार्यवाही न्यायोचित नहीं थी। विज्ञापन एजेंसी एडी-ब्यूरो एडवर्टाइजिंग प्रा लि की शिकायत पर निचली कोर्ट ने लता के खिलाफ कार्यवाही शुरू करने का आदेश दिया था।
पीठ ने कहा, 'यह ऐसा केस है जिसकी सुनवाई होनी चाहिए थी। आप (लता) उचित मौके पर इससे आरोप मुक्त करने के लिए आवेदन कर सकती हैं।' शीर्ष अदालत ने हाई कोर्ट के 10 मार्च, 2016 के आदेश के खिलाफ विज्ञापन एजेंसी की अपील पर यह आदेश दिया। विज्ञापन एजेंसी का दावा था कि मीडियावन ग्लोबल एंटरटेनमेन्ट को उसे 10 करोड़ रुपये और 1.2 करोड़ रुपये ‘ गारंटी लाभ ’ की रकम वापस करनी थी, लेकिन यह धन नहीं लौटाया गया है।
इस मामले में आज सुनवाई के दौरान लता के वकील ने कहा कि एजेंसी 20 करोड़ रुपये देने पर राजी हुई थी, लेकिन उसने बाद में सिर्फ 10 करोड़ रुपये का ही भुगतान किया था। इस पर पीठ ने कहा, 'क्योंकि उन्होंने आपको 20 करोड़ रुपये नहीं दिए, इसलिए आप वह रकम भी रोक लेंगी, जो उसने आपको दी थी।'
इससे पहले, सुनवाई शुरु होते ही विज्ञापन एजेंसी के वकील ने कहा कि लता रजनीकांत ने सुप्रीम कोर्ट को दिए गए आश्वासन के बाद भी उसे रकम का भुगतान नहीं किया। इस पर पीठ ने कहा, 'हमने इस अध्याय को बंद कर दिया है। हम अब गुण-दोष पर फैसला करेंगे। आप बताएं कि क्या शिकायत थी और किस आधार पर हाई कोर्ट ने इसे रद्द किया था।'
विज्ञापन एजेन्सी के वकील ने हाई कोर्ट का आदेश पढ़कर सुनाया और कहा कि कार्यवाही इस आधार पर निरस्त कर दी गई कि यह दीवानी सरीखा विवाद था। पीठ ने हाई कोर्ट का आदेश निरस्त करते हुए लता के वकील से कहा कि दंड प्रक्रिया संहित के तहत मामले की अलग-अलग राह होते हैं और उन्हें उचित राहत के लिए कोर्ट जाने का अधिकार है।
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