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भोपाल। मंगलवार को एक बैठक के दौरान प्रदेश के आला अफसर मुख्यमंत्री के एक सवाल पर बगले झांकने लगे। सीएम ने लोकायुक्त के छापों और भ्रष्टाचारियों के पकड़े जाने के बाद भी उन पर अभियोजन की कार्रवाई में हो देरी के बारे में पूछा था।
अकेले लोकायुक्त में ऐसे प्रकरणों की संख्या 400 से ज्यादा है, जो कार्रवाई की सिफारिश के बाद भी सालों से ठंडे बस्ते में पड़े हैं। 22 मामले तो ऐसे हैं जिनमें भ्रष्टाचार साबित होने के बाद भी अभियोजन की अनुमति नहीं मिली और संबंधित अफसर रिटायर हो गए।
मध्यप्रदेश इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट कॉरपोरेशन लिमिटेड में हुए 714 करोड़ रुपए के घोटाले में फंसे एसीएस एसआर मोहंती की ही बात करें तो उनके खिलाफ चार्जशीट पेश करने के लिए ईओडब्ल्यू पांच साल से इजाजत का इंतजार कर रहा है। आलम ये है कि इस मामले में हो रही देरी को लेकर राजधानी के मोहम्मद रियाजुद्दीन ने हाईकोर्ट में जनहित याचिका तक दायर कर दी थी।
इस पर कोर्ट ने सरकार से सवाल पूछा है, लेकिन सरकार अब तक जवाब भी नहीं दे पाई है। मोहंती अकेले ऐसे अधिकारी नहीं हैं, संगीन भ्रष्टाचार के आरोप वाले प्रदेश में तो कई अधिकारी आज भी मजे से नौकरी कर हैं।
इसलिए लटक जाते हैं मामले
लोकायुक्त सूत्रों के मुताबिक छापे की कार्रवाई के बाद पहले तो दस्तावेजों के परीक्षण और विभागीय जांच में ही डेढ़ से दो साल लग जाते हैं, इसके बाद जब आरोपी अधिकारी को अपना पक्ष रखने के लिए बुलाया जाता है तो वे कमियां दिखाकर आवेदन पर आवेदन लगाते रहते हैं।
इससे मामला और ज्यादा लंबित होता जाता है। फिर शासन के नियमों के मुताबिक प्रकरण को विभागीय जांच के लिए भेजना होता है। ऐसा इसलिए कि यदि विभाग ने कोई राशि नकद खर्च करने के लिए संबंधित अफसर या कर्मचारी को दी हो तो उसके लेन-देन के दौरान किसी को गलत ढंग से न फंसा दिया जाए।
इसलिए मूल विभाग से अनुशंसा का नियम है। इस तरह मिलती है अनुमति विभाग से अनुमति के लिए लोकायुक्त चालान की प्रति विभाग को भेजता है तो संबंधित विभाग के पीएस पूरी फाइल पढ़ते हैं। इसके बाद 10 से 20 पेज में लिखे आरोप को पढ़कर अनुमति और अनुशंसा दी जाती है।
जानकारी के अनुसार पहले नियम था कि केवल चालान फाइल पर लिखा जाता था कि अनुशंसा की जाती है लेकिन इसे लेकर आरोपी के वकील आपत्ति लगाते थे कि विभाग बिना पढ़े ही अनुमति दे देते हैं। इससे केस कमजोर हो जाता था।
इन अफसरों के मामले भी लंबित
मयंक जैन : भ्रष्टाचार के आरोप के बाद लोकायुक्त ने छापा मारा। आय से अधिक संपत्ति मिली। मामला दर्ज हुआ। उन्हें सस्पेंड कर दिया गया लेकिन लोकायुक्त को अभी तक अभियोजन की अनुमति नहीं मिली।
बीके सिंह : आईएफएस बीके सिंह पर आय के अधिक संपत्ति के मामले में उज्जैन व भोपाल में लोकायुक्त ने छापा मारा था। मामला दर्ज हुआ और अभियोजन के लिए सरकार के पास आज भी लंबित।
डॉ. डीएन शर्मा : एग्रीकल्चर डायरेक्टर रहते हुए डॉ. डीएन शर्मा के घर लोकायुक्त का छापा पड़ा था। आय से अधिक संपत्ति का मामला दर्ज हुआ लेकिन कोई प्रभावी कार्रवाई नहीं हुई। आखिरकार वे रिटायर हो गए।
राघव चंद्रा : गृह निर्माण मंडल के आयुक्त रहते समय भ्रष्टाचार के आरोप लगे। मामला अभी न्यायालय में विचाराधीन है।
पीयूष त्रिवेदी : तकनीकी विश्वविद्यालय के कुलपति पद पर काबिज हैं। व्यापमं फर्जीवाड़े के आरोप इन पर लगे। गलत नियुक्ति को लेकर कई शिकायतें।
बीके मंदोरिया : गंजबासौदा के तहसीलदार रहते हुए बीके मंदोरिया पर 50 हजार रुपए की रिश्वत लेने का आरोप। शासन ने निलंबित करने की जगह उनका भोपाल तबादला कर दिया।
रमाकांत तिवारी : प्रमुख सचिव पीडब्ल्यूडी प्रमोद अग्रवाल के नाम पर एसडीओ अनिल मिश्रा और असिस्टेंट इंजीनियर आरपी शुक्ला से रिश्वत मांगने का आरोप।
डॉ. अजीत श्रीवास्तव : आईएफएस डॉ अजीत श्रीवास्तव द्वारा 55 लाख रुपए की रिश्वत मांगने का ऑडियो आया। उनका सिर्फ तबादला किया। मामले की विभागीय जांच चल रही है।
एएन मित्तल : स्वास्थ्य संचालक रहते हुए इन पर भी भ्रष्टाचार का आरोप लगा। लोकायुक्त ने छापे मारे तो लाखों रुपए नकद और संपत्ति मिली। मामले में उन्हें सस्पेंड किया गया।
ये हैं लंबित मामले
राजस्व विभाग 146 सामान्य प्रशासन 25 नगरीय निकाय 16 पंचायत विभाग 45 सहकारिता 49
s@d_news
इनका कहना है
हमारी तरफ देर नहीं होती है। छापे की कार्रवाई के बाद अभियोजन की अनुमति के लिए संबंधित विभागों को प्रकरण भेज दिया जाता है। अब ये सरकार को देखना होगा की उनकी आंतरिक व्यवस्था कैसी है। सरकार को अपने संसाधन बढ़ाने चाहिए, ताकि इस तरह के मामलों में देरी न हो।
-यूसी माहेश्वरी, उप लोकायुक्त, मध्यप्रदेश
भोपाल। मंगलवार को एक बैठक के दौरान प्रदेश के आला अफसर मुख्यमंत्री के एक सवाल पर बगले झांकने लगे। सीएम ने लोकायुक्त के छापों और भ्रष्टाचारियों के पकड़े जाने के बाद भी उन पर अभियोजन की कार्रवाई में हो देरी के बारे में पूछा था।
अकेले लोकायुक्त में ऐसे प्रकरणों की संख्या 400 से ज्यादा है, जो कार्रवाई की सिफारिश के बाद भी सालों से ठंडे बस्ते में पड़े हैं। 22 मामले तो ऐसे हैं जिनमें भ्रष्टाचार साबित होने के बाद भी अभियोजन की अनुमति नहीं मिली और संबंधित अफसर रिटायर हो गए।
मध्यप्रदेश इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट कॉरपोरेशन लिमिटेड में हुए 714 करोड़ रुपए के घोटाले में फंसे एसीएस एसआर मोहंती की ही बात करें तो उनके खिलाफ चार्जशीट पेश करने के लिए ईओडब्ल्यू पांच साल से इजाजत का इंतजार कर रहा है। आलम ये है कि इस मामले में हो रही देरी को लेकर राजधानी के मोहम्मद रियाजुद्दीन ने हाईकोर्ट में जनहित याचिका तक दायर कर दी थी।
इस पर कोर्ट ने सरकार से सवाल पूछा है, लेकिन सरकार अब तक जवाब भी नहीं दे पाई है। मोहंती अकेले ऐसे अधिकारी नहीं हैं, संगीन भ्रष्टाचार के आरोप वाले प्रदेश में तो कई अधिकारी आज भी मजे से नौकरी कर हैं।
इसलिए लटक जाते हैं मामले
लोकायुक्त सूत्रों के मुताबिक छापे की कार्रवाई के बाद पहले तो दस्तावेजों के परीक्षण और विभागीय जांच में ही डेढ़ से दो साल लग जाते हैं, इसके बाद जब आरोपी अधिकारी को अपना पक्ष रखने के लिए बुलाया जाता है तो वे कमियां दिखाकर आवेदन पर आवेदन लगाते रहते हैं।
इससे मामला और ज्यादा लंबित होता जाता है। फिर शासन के नियमों के मुताबिक प्रकरण को विभागीय जांच के लिए भेजना होता है। ऐसा इसलिए कि यदि विभाग ने कोई राशि नकद खर्च करने के लिए संबंधित अफसर या कर्मचारी को दी हो तो उसके लेन-देन के दौरान किसी को गलत ढंग से न फंसा दिया जाए।
इसलिए मूल विभाग से अनुशंसा का नियम है। इस तरह मिलती है अनुमति विभाग से अनुमति के लिए लोकायुक्त चालान की प्रति विभाग को भेजता है तो संबंधित विभाग के पीएस पूरी फाइल पढ़ते हैं। इसके बाद 10 से 20 पेज में लिखे आरोप को पढ़कर अनुमति और अनुशंसा दी जाती है।
जानकारी के अनुसार पहले नियम था कि केवल चालान फाइल पर लिखा जाता था कि अनुशंसा की जाती है लेकिन इसे लेकर आरोपी के वकील आपत्ति लगाते थे कि विभाग बिना पढ़े ही अनुमति दे देते हैं। इससे केस कमजोर हो जाता था।
इन अफसरों के मामले भी लंबित
मयंक जैन : भ्रष्टाचार के आरोप के बाद लोकायुक्त ने छापा मारा। आय से अधिक संपत्ति मिली। मामला दर्ज हुआ। उन्हें सस्पेंड कर दिया गया लेकिन लोकायुक्त को अभी तक अभियोजन की अनुमति नहीं मिली।
बीके सिंह : आईएफएस बीके सिंह पर आय के अधिक संपत्ति के मामले में उज्जैन व भोपाल में लोकायुक्त ने छापा मारा था। मामला दर्ज हुआ और अभियोजन के लिए सरकार के पास आज भी लंबित।
डॉ. डीएन शर्मा : एग्रीकल्चर डायरेक्टर रहते हुए डॉ. डीएन शर्मा के घर लोकायुक्त का छापा पड़ा था। आय से अधिक संपत्ति का मामला दर्ज हुआ लेकिन कोई प्रभावी कार्रवाई नहीं हुई। आखिरकार वे रिटायर हो गए।
राघव चंद्रा : गृह निर्माण मंडल के आयुक्त रहते समय भ्रष्टाचार के आरोप लगे। मामला अभी न्यायालय में विचाराधीन है।
पीयूष त्रिवेदी : तकनीकी विश्वविद्यालय के कुलपति पद पर काबिज हैं। व्यापमं फर्जीवाड़े के आरोप इन पर लगे। गलत नियुक्ति को लेकर कई शिकायतें।
बीके मंदोरिया : गंजबासौदा के तहसीलदार रहते हुए बीके मंदोरिया पर 50 हजार रुपए की रिश्वत लेने का आरोप। शासन ने निलंबित करने की जगह उनका भोपाल तबादला कर दिया।
रमाकांत तिवारी : प्रमुख सचिव पीडब्ल्यूडी प्रमोद अग्रवाल के नाम पर एसडीओ अनिल मिश्रा और असिस्टेंट इंजीनियर आरपी शुक्ला से रिश्वत मांगने का आरोप।
डॉ. अजीत श्रीवास्तव : आईएफएस डॉ अजीत श्रीवास्तव द्वारा 55 लाख रुपए की रिश्वत मांगने का ऑडियो आया। उनका सिर्फ तबादला किया। मामले की विभागीय जांच चल रही है।
एएन मित्तल : स्वास्थ्य संचालक रहते हुए इन पर भी भ्रष्टाचार का आरोप लगा। लोकायुक्त ने छापे मारे तो लाखों रुपए नकद और संपत्ति मिली। मामले में उन्हें सस्पेंड किया गया।
ये हैं लंबित मामले
राजस्व विभाग 146 सामान्य प्रशासन 25 नगरीय निकाय 16 पंचायत विभाग 45 सहकारिता 49
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इनका कहना है
हमारी तरफ देर नहीं होती है। छापे की कार्रवाई के बाद अभियोजन की अनुमति के लिए संबंधित विभागों को प्रकरण भेज दिया जाता है। अब ये सरकार को देखना होगा की उनकी आंतरिक व्यवस्था कैसी है। सरकार को अपने संसाधन बढ़ाने चाहिए, ताकि इस तरह के मामलों में देरी न हो।
-यूसी माहेश्वरी, उप लोकायुक्त, मध्यप्रदेश
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