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नई दिल्ली : राजद के पूर्व बाहुबली सांसद शहाबुदीन की जमानत रद्द कराने सुप्रीम कोर्ट पहुंची बिहार सरकार को बुधवार को अदालत के तीखे और असहज सवालों का सामना करना पड़ा। वहीं, जब शहाबुद्दीन की ओर से कहा गया कि उन्हें बार-बार हिस्ट्रीशीटर कहा जाता है लेकिन इसके कोई साक्ष्य नहीं हैं तो उन्हें भी जमकर फटकार पड़ी।पीठ की अध्यक्षता कर रहे जस्टिस पीसी घोष ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के दो आदेश हैं जिनमें उन्हें हिस्ट्रीशीटर माना गया है। क्या ये गलत कहे जा सकते हैं। कोर्ट ने आगे कहा, हम इस बारे में बहुत स्पष्ट हैं कि हिस्ट्रीशीटर को जमानत नहीं दी जा सकती। यह कहकर कोर्ट ने सुनवाई गुरुवार तक स्थगित कर दी।इससे पहले सुनवाई के दौरान जस्टिस घोष और जस्टिस अमिताव रॉय की पीठ ने बिहार सरकार से पूछा कि क्या शहाबुदीन की जमानत अर्जी की सुनवाई के समय अभियोजन अधिकारी कोर्ट में गए थे। हाईकोर्ट को क्या यह बताया गया था कि ट्रायल शुरू होने में नौ माह की देरी शहाबुद्दीन के कारण ही हुई है। क्योंकि उन्होंने हत्या के मामले में संज्ञान लेने के फैसले को रिवीजन कोर्ट में चुनौती दे दी थी जिससे पूरा रिकॉर्ड वहां चला गया और ट्रायल शुरू नहीं हो पाया। सरकारी वकील ने कोर्ट को बताया था कि अगस्त में दाखिल जमानत अर्जी 7 सितंबर को सुनवाई के लिए लगी और उसी दिन हाईकोर्ट ने जमानत का आदेश पारित कर दिया।
पूछा-राज्य अशक्त कैसे हो सकता है
बिहार सरकार के वकील दिनेश द्विवेदी ने कहा कि इस मामले में वह अशक्त थे। इस पर कोर्ट ने कहा, आप राज्य है आप अशक्त कैसे हो सकते हैं। साथ ही राज्य सरकार से पूछा, क्या हाईकोर्ट ने आपको जमानत की याचिका पर नोटिस नहीं दिया था। जब आपको नोटिस मिला था तो आपने पूरा प्रकरण कोर्ट के सामने क्यों नहीं रखा। आप यह नहीं कह सकते कि हाईकोर्ट ने आपको नहीं सुना। आप हमें दिखाइये कि आपने सुनवाई के लिए समय मांगा था और उच्च अदालत ने उसे खारिज कर दिया था।
मामला गंभीरता से नहीं लिया गया
पीठ ने कहा कि यह इतना महत्वपूर्ण केस है और कई बार सुप्रीम कोर्ट भी आया है क्या अभियोजन अधिकारी को यह जानकारी नहीं होनी चाहिए। कोर्ट को यह कहना पड़ रहा है कि इस मामले को गंभीरता से नहीं लिया गया। पीठ ने कहा कि आश्चर्य की बात यह है कि शहाबुद्दीन के खिलाफ 45 आपराधिक केस लंबित हैं और इससे पूर्व सभी मामलों में उन्हें जमानत मिली लेकिन राज्य नींद से तभी जागा जबकि हत्या के इस केस में उन्हें जमानत मिली।
कोर्ट स्थिति को सुधारे
राज्य सरकार के वकील ने कहा कि वह किसी भी गलती को उचित नहीं ठहरा रहे हैं। जो हो गया वह हो गया अब सुप्रीम कोर्ट इसमें उचित आदेश पारित कर स्थिति को दुरुस्त करे। सुनवाई के दौरान चंद्रकेश्वर प्रसाद की ओर से प्रशांत भूषण ने बहस की और उन्होंने शहाबुदीन की जमानत रद्द करने का आग्रह किया। उन्होंने 2010 और 2015 के फैसले कोर्ट को बताए जिसमें सुप्रीमकोर्ट ने शहाबुदीन की जमानत रद्द करने के आदेश दिए थे।
‘बिहार का पंचिंग बैग बना’
शहाबुदीन की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता शेखर नफडे़ और शुएबआलम ने बहस की। उन्होंने कहा कि उनके खिलाफ हत्या के पांच मामलों में शामिल किया गया है लेकिन चार चार्जशीटों में उनका नाम नहीं है। यह बात राज्य और प्रशांत भूषण कोर्ट को क्यों नही बता रहे हैं। उन्होंने कहा कि यहां तक कि सीवान से भागलपुर जेल से शिफ्ट करते समय उनकी सुनवाई नहीं हुई जबकि कानूनन यह जरूरी है। उन्होंने कहा कि उन्हें बार बार हिस्ट्रीशीटर कहा जा रहा है लेकिन इसके बारे में उनके पास सबूत नहीं हैं। उन्होंने कहा कि मैं पंचिंग बैग बन गया हूं जब भी बिहार में कुछ होता है मेरे नाम पर मढ़ दिया जाता है।
नई दिल्ली : राजद के पूर्व बाहुबली सांसद शहाबुदीन की जमानत रद्द कराने सुप्रीम कोर्ट पहुंची बिहार सरकार को बुधवार को अदालत के तीखे और असहज सवालों का सामना करना पड़ा। वहीं, जब शहाबुद्दीन की ओर से कहा गया कि उन्हें बार-बार हिस्ट्रीशीटर कहा जाता है लेकिन इसके कोई साक्ष्य नहीं हैं तो उन्हें भी जमकर फटकार पड़ी।पीठ की अध्यक्षता कर रहे जस्टिस पीसी घोष ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के दो आदेश हैं जिनमें उन्हें हिस्ट्रीशीटर माना गया है। क्या ये गलत कहे जा सकते हैं। कोर्ट ने आगे कहा, हम इस बारे में बहुत स्पष्ट हैं कि हिस्ट्रीशीटर को जमानत नहीं दी जा सकती। यह कहकर कोर्ट ने सुनवाई गुरुवार तक स्थगित कर दी।इससे पहले सुनवाई के दौरान जस्टिस घोष और जस्टिस अमिताव रॉय की पीठ ने बिहार सरकार से पूछा कि क्या शहाबुदीन की जमानत अर्जी की सुनवाई के समय अभियोजन अधिकारी कोर्ट में गए थे। हाईकोर्ट को क्या यह बताया गया था कि ट्रायल शुरू होने में नौ माह की देरी शहाबुद्दीन के कारण ही हुई है। क्योंकि उन्होंने हत्या के मामले में संज्ञान लेने के फैसले को रिवीजन कोर्ट में चुनौती दे दी थी जिससे पूरा रिकॉर्ड वहां चला गया और ट्रायल शुरू नहीं हो पाया। सरकारी वकील ने कोर्ट को बताया था कि अगस्त में दाखिल जमानत अर्जी 7 सितंबर को सुनवाई के लिए लगी और उसी दिन हाईकोर्ट ने जमानत का आदेश पारित कर दिया।
पूछा-राज्य अशक्त कैसे हो सकता है
बिहार सरकार के वकील दिनेश द्विवेदी ने कहा कि इस मामले में वह अशक्त थे। इस पर कोर्ट ने कहा, आप राज्य है आप अशक्त कैसे हो सकते हैं। साथ ही राज्य सरकार से पूछा, क्या हाईकोर्ट ने आपको जमानत की याचिका पर नोटिस नहीं दिया था। जब आपको नोटिस मिला था तो आपने पूरा प्रकरण कोर्ट के सामने क्यों नहीं रखा। आप यह नहीं कह सकते कि हाईकोर्ट ने आपको नहीं सुना। आप हमें दिखाइये कि आपने सुनवाई के लिए समय मांगा था और उच्च अदालत ने उसे खारिज कर दिया था।
मामला गंभीरता से नहीं लिया गया
पीठ ने कहा कि यह इतना महत्वपूर्ण केस है और कई बार सुप्रीम कोर्ट भी आया है क्या अभियोजन अधिकारी को यह जानकारी नहीं होनी चाहिए। कोर्ट को यह कहना पड़ रहा है कि इस मामले को गंभीरता से नहीं लिया गया। पीठ ने कहा कि आश्चर्य की बात यह है कि शहाबुद्दीन के खिलाफ 45 आपराधिक केस लंबित हैं और इससे पूर्व सभी मामलों में उन्हें जमानत मिली लेकिन राज्य नींद से तभी जागा जबकि हत्या के इस केस में उन्हें जमानत मिली।
कोर्ट स्थिति को सुधारे
राज्य सरकार के वकील ने कहा कि वह किसी भी गलती को उचित नहीं ठहरा रहे हैं। जो हो गया वह हो गया अब सुप्रीम कोर्ट इसमें उचित आदेश पारित कर स्थिति को दुरुस्त करे। सुनवाई के दौरान चंद्रकेश्वर प्रसाद की ओर से प्रशांत भूषण ने बहस की और उन्होंने शहाबुदीन की जमानत रद्द करने का आग्रह किया। उन्होंने 2010 और 2015 के फैसले कोर्ट को बताए जिसमें सुप्रीमकोर्ट ने शहाबुदीन की जमानत रद्द करने के आदेश दिए थे।
‘बिहार का पंचिंग बैग बना’
शहाबुदीन की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता शेखर नफडे़ और शुएबआलम ने बहस की। उन्होंने कहा कि उनके खिलाफ हत्या के पांच मामलों में शामिल किया गया है लेकिन चार चार्जशीटों में उनका नाम नहीं है। यह बात राज्य और प्रशांत भूषण कोर्ट को क्यों नही बता रहे हैं। उन्होंने कहा कि यहां तक कि सीवान से भागलपुर जेल से शिफ्ट करते समय उनकी सुनवाई नहीं हुई जबकि कानूनन यह जरूरी है। उन्होंने कहा कि उन्हें बार बार हिस्ट्रीशीटर कहा जा रहा है लेकिन इसके बारे में उनके पास सबूत नहीं हैं। उन्होंने कहा कि मैं पंचिंग बैग बन गया हूं जब भी बिहार में कुछ होता है मेरे नाम पर मढ़ दिया जाता है।
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