(एस.पी. मित्तल)
23 सितम्बर को महाराष्ट्र नव निर्माण सेना (एमएनएस) ने धमकी दी है कि अगले 48 घंटे में मुम्बई में पाक कलाकारों ने भारत नहीं छोड़ा तो घरों में घुसकर पिटाई करेंगे। यह भी कहा है कि मुम्बई फिल्म उद्योग के निर्देशक और निर्माता पाकिस्तानी कलाकारों को काम दे रहे हैं, उनकी भी पिटाई की जाएगी। हालांकि मैं एमएनएस की इस धमकी से सहमत नहीं हंू, लेकिन मेरा इतना कहना है कि जो निर्देशक और निर्माता पाकिस्तानी कलाकारों से कमाने का लालच रख रहे हैं, उन्हें अब ऐसा लालच छोड़ देना चाहिए।
हमारे निर्देशक और निर्माता यह अच्छी तरह समझ लें कि मुम्बई में पाक कलाकार जिस सुकून के साथ काम कर रहे हैं, उसके पीछे सीमा पर तैनात जवान हैं। यदि हमारे जवान अपने सीने पर गोली न खाएं तो फिर मुम्बई में भी पाक कलाकार शूटिंग का कोई काम नहीं कर सकते हैं। ऐसा नहीं हो सकता कि पाकिस्तान से आए आतंकवादी हमारे 18-18 जवानों को शहीद कर दें और मुम्बई के कुछ लालची स्वार्थी, धंधेबाज निर्देशक निर्माता पाकिस्तान से ही आए कलाकारों को लाखों करोड़ों रुपए का भुगतान करें।
कश्मीर में उरी की घटना के बाद देशभर में पाकिस्तान और आतंकवादियों के खिलाफ जो गुस्सा है, उसे देखेते हुए फिल्म उद्योग को पाकिस्तान के कलाकारों को काम नहीं देना चाहिए। कुछ लोग बेतुके तर्क देते हैं कि इससे कला और साहित्य का आदान-प्रदान होता है। मैं ऐसे तर्क देने वालों से यह पूछना चाहता हंू कि भारत में कितने कलाकार और साहित्यकार पाकिस्तान में जाकर काम करते हैं? एक तरफ जब केन्द्र सरकार कई मोर्चों पर पाकिस्तान को सबक सीखाने का काम कर रही है तो फिर फिल्म जगत को भी सहयोग करना चाहिए। शर्मनाक बात तो यह है कि मुम्बई में रहकर जो पाक कलाकार लाखों करोड़ों रुपए काम रहे हैं उन्होंने अभी तक भी उरी की घटना की निंदा नहीं की है। सवाल उठता है कि क्या ऐसे कलाकारों से हमदर्दी दिखाना उचित है?
चैनल वाले भी बंद करे:
देश के ताजा हालातों में न्यूज चैनल वालों से भी में यह कहना चाहता हंू कि बहस के दौरान पाकिस्तान के किसी भी राजनेता अथवा रिटायर्ड फौजी अफसार को न बैठाएं। सब देखते हैं कि लाहौर या इस्लामाबाद में बैठा पाकिस्तानी भारत के खिलाफ जहर ही उगलता है। बेशर्मी तब होती है, जब हमारे सैनिकों की शाहदत पर भी पाकिस्तानी हंसते हैं। समझ में नहीं आता ऐसे पाकिस्तानियों को हमारे देश में जहर उगलने का मौका क्यों दिया जाता है।
23 सितम्बर को महाराष्ट्र नव निर्माण सेना (एमएनएस) ने धमकी दी है कि अगले 48 घंटे में मुम्बई में पाक कलाकारों ने भारत नहीं छोड़ा तो घरों में घुसकर पिटाई करेंगे। यह भी कहा है कि मुम्बई फिल्म उद्योग के निर्देशक और निर्माता पाकिस्तानी कलाकारों को काम दे रहे हैं, उनकी भी पिटाई की जाएगी। हालांकि मैं एमएनएस की इस धमकी से सहमत नहीं हंू, लेकिन मेरा इतना कहना है कि जो निर्देशक और निर्माता पाकिस्तानी कलाकारों से कमाने का लालच रख रहे हैं, उन्हें अब ऐसा लालच छोड़ देना चाहिए।
हमारे निर्देशक और निर्माता यह अच्छी तरह समझ लें कि मुम्बई में पाक कलाकार जिस सुकून के साथ काम कर रहे हैं, उसके पीछे सीमा पर तैनात जवान हैं। यदि हमारे जवान अपने सीने पर गोली न खाएं तो फिर मुम्बई में भी पाक कलाकार शूटिंग का कोई काम नहीं कर सकते हैं। ऐसा नहीं हो सकता कि पाकिस्तान से आए आतंकवादी हमारे 18-18 जवानों को शहीद कर दें और मुम्बई के कुछ लालची स्वार्थी, धंधेबाज निर्देशक निर्माता पाकिस्तान से ही आए कलाकारों को लाखों करोड़ों रुपए का भुगतान करें।
कश्मीर में उरी की घटना के बाद देशभर में पाकिस्तान और आतंकवादियों के खिलाफ जो गुस्सा है, उसे देखेते हुए फिल्म उद्योग को पाकिस्तान के कलाकारों को काम नहीं देना चाहिए। कुछ लोग बेतुके तर्क देते हैं कि इससे कला और साहित्य का आदान-प्रदान होता है। मैं ऐसे तर्क देने वालों से यह पूछना चाहता हंू कि भारत में कितने कलाकार और साहित्यकार पाकिस्तान में जाकर काम करते हैं? एक तरफ जब केन्द्र सरकार कई मोर्चों पर पाकिस्तान को सबक सीखाने का काम कर रही है तो फिर फिल्म जगत को भी सहयोग करना चाहिए। शर्मनाक बात तो यह है कि मुम्बई में रहकर जो पाक कलाकार लाखों करोड़ों रुपए काम रहे हैं उन्होंने अभी तक भी उरी की घटना की निंदा नहीं की है। सवाल उठता है कि क्या ऐसे कलाकारों से हमदर्दी दिखाना उचित है?
चैनल वाले भी बंद करे:
देश के ताजा हालातों में न्यूज चैनल वालों से भी में यह कहना चाहता हंू कि बहस के दौरान पाकिस्तान के किसी भी राजनेता अथवा रिटायर्ड फौजी अफसार को न बैठाएं। सब देखते हैं कि लाहौर या इस्लामाबाद में बैठा पाकिस्तानी भारत के खिलाफ जहर ही उगलता है। बेशर्मी तब होती है, जब हमारे सैनिकों की शाहदत पर भी पाकिस्तानी हंसते हैं। समझ में नहीं आता ऐसे पाकिस्तानियों को हमारे देश में जहर उगलने का मौका क्यों दिया जाता है।
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