प्रतीक चित्र |
जबलपुर। अपने खिलाफ थाने में धारा-376 का केस दर्ज होने के बाद से अरेस्ट होने की आशंका से घबराए एक युवक ने हाईकोर्ट की शरण ली। उसके वकील ने दलील दी कि मायलॉर्ड यह मामला शादी का प्रलोभन देकर दैहिक शोषण करने का नहीं है।
ऐसा इसलिए क्योंकि युवती ने एक-दो दिन या माह बाद नहीं बल्कि पूरे 5 वर्ष बाद एफआईआर दर्ज कराई है। इस बीच दोनों के बीच परस्पर सहमति से दैहिक संबंध बनते रहे। यही नहीं दो बार गर्भपात भी कराया गया। इससे साफ है कि मामला शादी का प्रलोभन देकर दैहिक शोषण करने का नहीं बल्कि लिव-इन-रिलेशनशिप का था, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने मान्यता दी हुई है।
मध्यप्रदेश हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति सीबी सिरपुरकर की एकलपीठ ने अधिवक्ता सुशील कुमार तिवारी के तर्कों से सहमत होकर युवक को अग्रिम जमानत का लाभ दे दिया। इससे पूर्व युवक की अग्रिम जमानत अर्जी सेशन कोर्ट से खारिज कर दिए जाने के कारण वह बेहद परेशान था। उसने अपने वकील को सारी हकीकत बताई। जिसमें साफ किया गया कि 2012 में उसके उमरिया स्थित मकान में देहात की एक युवती किराए से रहने आई।
वह कॉम्पटीटिव एग्जाम की तैयारी कर रही है। सुंदर थी, इसलिए जब वह नौकरी से छुट्टी लेकर उमरिया आता, तो उससे अक्सर बातचीत होने लगी। कई बार उसे मार्गदर्शन भी दिया। इसी दौरान दोनों की घनिष्ठता हो गई। वे सहमति से पति-पत्नी की तरह लिव-इन-रिलेशनशिप में रहने लगे। पांच वर्ष के दौरान कभी भी युवक की ओर से दैहिक संबंध बनाने युवती को कभी विवश नहीं किया गया, जो भी हुई एक-दूसरे की मर्जी से हुआ। इस दौरान युवती दो बार प्रग्नेंट हो गई, लिहाजा एबॉर्शन भी कराया गया। ऐसे में रेप का केस भला कैसे बनता है?
शादी से मुकरा इसलिए रिपोर्ट- युवती ने युवक के खिलाफ 2017 के जनवरी माह में जो रिपोर्ट दर्ज कराई है, उसमें लिखवाया गया है कि 2012 से मकान मालिक युवक लगातार शादी का प्रलोभन देकर शोषण करता चला आ रहा था। एक रात्रि मकान मालिक युवक कमरे में जबरन घुस आया और शिकार बना लिया। इसके बाद से पांच वर्ष तक बहला-फुलसाकर अपनी मनमानी करता चला आ रहा था।
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