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छत्तीसगढ़ पुलिस मुख्यालय में पदस्थ एडीजी पवन देव के पक्ष में दिए गए केंद्रीय प्रशासनिक अभिकरण बोर्ड अर्थात कैट के आदेश पर छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने रोक लगा दी है. इसके साथ ही केंद्र और राज्य सरकार को नोटिस जारी कर हाईकोर्ट ने उनके खिलाफ की गई वैधानिक कार्रवाई को लेकर जवाब मांगा है.
दरअसल एक लेडी कॉन्स्टेबल ने आईजी पर शारीरिक शोषण का आरोप लगाया था. इसकी जांच के लिए गठित विशाखा कमेटी ने पीड़ित लेडी कॉन्स्टेबल के आरोपों को सही पाया था. हाईकोर्ट ने 27 फरवरी 2018 को आईजी पवन देव के खिलाफ 45 दिनों के भीतर वैधानिक कार्रवाई करने के निर्देश दिए थे. लेकिन आईपीएस लॉबी के दबाव में राज्य की बीजेपी सरकार ने कोई कार्रवाई नहीं की.
उधर संभावित कार्रवाई से बचने के लिए आईजी पवन देव ने कैट की शरण ली. पीड़ित लेडी कॉन्स्टेबल ने दोबारा अदालत का रुख कर इंसाफ की गुहार लगाई थी. घटना उस समय की है जब पवन देव बिलासपुर पुलिस रेंज में बतौर आईजी पदस्थ थे.
विशाखा कमेटी की जांच में दोषी पाए जाने के बावजूद आईपीएस लॉबी के दबाव में उन्हें प्रमोशन देकर एडीजी बना दिया गया था. आमतौर पर ऐसे गंभीर मामलों में सरकारी कर्मचारियों की पदोन्नति पर रोक लगा दी जाती है.
छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के इस फैसले से पुलिस मुख्यालय में गहमा-गहमी मची है. यौन उत्पीड़न मामले में एडीजी पवन देव को कैट से मिली राहत पर हाईकोर्ट की रोक की उम्मीद आईपीएस अधिकारीयों को नहीं थी.
पीड़ित महिला कांस्टेबल के साथ हुई यौन उत्पीड़न की घटना की शिकायत की जांच सीनियर महिला आईएएस अधिकारी रेणु पिल्लई की अध्यक्षता में गठित विशाखा कमेटी ने की थी. इस कमेटी में तीन महिला आईपीएस अधिकारी शामिल थीं.
विशाखा कमेटी ने आईजी पवन देव को दोषी मानते हुए अपनी रिपोर्ट डेढ़ साल पहले शासन को भेज दी थी. लेकिन आईपीएस अधिकारीयों के संगठन के दबाव में पुलिस मुख्यालय वैधानिक कार्रवाई को लेकर कोई फैसला नहीं ले पाया था. मामले को उलझाने के लिए शासन ने इस रिपोर्ट के आधार पर कोई कार्रवाई नहीं की, बल्कि अप्रैल 2018 में पवन देव के खिलाफ राज्य सरकार की ओर से एक नया चार्जशीट तैयार कर दिया गया.
पवन देव ने सरकार द्वारा तैयार की गई चार्जशीट को खारिज किए जाने की मांग को लेकर कैट में अपील दायर की थी, जहां से उन्हें स्टे मिल गया था. कैट से मिले स्टे को ख़ारिज कराने के लिए पीड़िता ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया. मामले की सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने केंद्र और राज्य सरकार को नोटिस जारी करते हुए शपथ पत्र के माध्यम से जवाब देने का आदेश पारित किया है.
इसके साथ ही आईजी पवन देव को भी नोटिस जारी किया गया है. छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने 11 जुलाई तक प्रदेश के गृह सचिव और डीजीपी को भी पवन देव के विरूद्ध की गई कार्रवाई से अवगत कराने के लिए शपथ पत्र के साथ अपना जवाब दाखिल करने के निर्देश दिए हैं.
इस संबंध में हाईकोर्ट में पीड़िता के अधिवक्ता सौरभ डांगी ने बताया कि विशाखा कमेटी की रिपोर्ट पर राज्य शासन और पुलिस मुख्यालय ने कोई कार्रवाई न कर अप्रैल 2018 में पवन देव के खिलाफ नया चार्जशीट जारी कर दिया. जबकि विशाखा कमेटी की रिपोर्ट के आधार पर ही पवन देव के खिलाफ कार्रवाई की जानी थी. अधिवक्ता सौरभ डांगी के मुताबिक पवनदेव ने कैट में दायर की गई अपनी याचिका में पीड़िता को पक्षकार नहीं बनाया था, जो कि गलत था.
उन्होंने बताया कि सीनियर आईपीएस अधिकारी पवन देव को बचाने के लिए आईपीएस लॉबी ने यह दांव पेंच खेला था. फ़िलहाल पुलिस मुख्यालय और मुख्यमंत्री रमन सिंह सरकार आईजी पवन देव के खिलाफ क्या वैधानिक कदम उठाएगी यह देखना होगा.
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