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म•प्र•तृतीय वर्ग शासकीय कर्मचारी संघ के प्रांतीय उपाध्यक्ष कन्हैयालाल लक्षकार ने बताया कि एक परिसर एक शाला योजना के दायरे में आने वाली शालाओं में आरटीई के तहत प्राथमिक / माध्यमिक व उमावि शालाओं के संचालन का समय एक हो गया, जो अलग-अलग होना चाहिए । छात्र संख्या के मान से प्रावि में 150 व मावि में 100 छात्र-छात्राओं पर प्रधानाध्यापक पद स्वीकृत है ।
उमावि के अधिन होने पर इनका अस्तित्व ही समाप्त हो गया है । प्रावि के बच्चों का मावि/उमावि के साथ एक समय विभाग चक्र से शाला संचालन असहज अव्यवहारिक है । पीरियड का ठोका लगते ही छोटे बच्चे असहज होकर शोर मचाने लगते है । विकेंद्रीकरण से केंद्रीकरण की ओर गमन अव्यवहारिक व टकराव पैदा करेगा । पदीय संरचना के कारण मनमुटाव व वरिष्ठ कनिष्ठ के मान सम्मान में टकराव आम बात है । एक परिसर एक शाला तू-तू मैं-मैं को बढ़ावा देकर आपसी सौहार्द बिगाड़ने में अहम भूमिका अदा करेगा ।
इसका दुष्प्रभाव बच्चों की पढ़ाई पर होगा । यह सभी बिंदु आरटीई की विभिन्न धाराओं का उल्लंघन करते है । विद्यालयों में "सफाई कर्मचारी" न होने से बड़े बच्चे, छोटे बच्चों को दबाव से शाला सफाई को बाध्य कर सकते है ; इस कारण रोजाना पालकों व शिक्षकों में तनाव की स्थिति निर्मित हो सकती है ! वैसे भी शिक्षा विभाग में आजीवन पदोन्नति नहीं होती है, जो नगण्य पदोन्नति हुई वह भी इस योजना की भेंट चढ़ गये । यह स्थिति शिक्षकों में आक्रोश व निराशा के भाव पैदा कर रहे है । इसका सीधा असर शिक्षकों की कार्यक्षमता पर पड़े बगैर नहीं रहेगा ।
शाला निधि व आकस्मिक निधि अलग-अलग आने से इसका समुचित उपयोग शाला संचालन में सही ढंग से होता रहा है । अब इस मद में कटौती कर अपर्याप्त राशि "ऊंट के मुंह में जीरा" साबित होगी । इससे शाला संचालन व रखरखाव व स्वच्छ भारत अभियान प्रभावित हुए बगैर नहीं रहेगा । इस योजना से संस्था प्रधान को मानसिक तनाव की संभावना बलवती होती है; अतः एक परिसर एक शाला अवधारणा वापस लिया जाना ही श्रेयस्कर होकर छात्र-शिक्षक, समाज व शासन हीत में होगा !
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