Thursday, 06 January 2011 14:00
यशवंत सिंह भड़ास4मीडिया
यशवंत सिंह भड़ास4मीडिया
दैनिक भास्कर के भोपाल संस्करण का अंतिम पेज और गोलांकित दायरे में 'कलिनायक' किताब का विज्ञापन
: ओह! लालची भास्कर वालों ने ये क्या कर डाला!! : रमेश चंद्र अग्रवाल के खिलाफ लिखी गई किताब का विज्ञापन भास्कर के कई संस्करणों में प्रकाशित : विज्ञापन छापने के लिए किताब के लेखकों व प्रकाशकों ने भास्कर समूह को 12 लाख रुपये अदा किए : सैकड़ों से ज्यादा पन्ने वाली यह किताब रमेश चंद्र अग्रवाल और उनके भास्कर ग्रुप के लिए खतरे की घंटी है :
एक अदभुत वाकया घटित हुआ है. दैनिक भास्कर के कई संस्करणों में (राजस्थान को छोड़कर) लास्ट पेज पर एक बड़ा रंगीन विज्ञापन प्रकाशित हुआ है. विज्ञापन जिस किताब से संबंधित है उसका नाम है 'कलिनायक'. अब आप पूछेंगे- 'कलिनायक' बोले तो? तो जनाब, किताब में इसका विस्तार भी है, जो यूं है- 'कलियुग का नायक'. इस किताब के बारे में दैनिक भास्कर में जो विज्ञापन प्रकाशित किया गया है, उसमें लिखा है....
''जो कलियुग के माहौल में सफलता के तमाम फंडे सिखाएगी, जो आपको धोखे से बचाकर जिंदगी को मस्ती से, सही ढंग से जीना सिखाएगी, यह बदलकर रख देगी जिंदगी आपकी, यही पुस्तक आपको करोड़पति भी बना सकती है. किताब पढ़ें और निःशुल्क जीतें- 2 करोड़ रुपये के बंपर इनाम....., मकान कार हीरे का हार, 25, 10 और 5 लाख का, सोने के अंडे 75 प्रतिभागियों को, शिक्षा के लिए 500 छात्रों को 5000 रुपये की स्कालरशिप, दस्तावेज खोजी प्रतियोगिता में 50 लाख और कलिनायक के विषय में नई जानकारी देने पर 25 लाख का पुरस्कार. 1000 प्रतिभागियों को 10 लाख के सांत्वना पुरस्कार. एक अनूठी पुस्तक जिससे सपने होंगे पूरे अब. कलिनायक पढ़कर आपको यूं लगेगा कि जो कुछ पाना चाहते थे, यह सब कुछ, पा लिया, मूल्य 100 रुपये मात्र. साथ में सीडी मुफ्त. इक्कीसवीं सदी की महानतम किताब साबित न होने पर पैसे वापिस. पुस्तक वेबसाइट www.rajsthankalinayak.com से मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं. प्रकाशक- राजस्थान कलिनायक प्रकाशन, राजस्थान.''
तो ये तो था भास्कर में प्रकाशित विज्ञापन का कंटेंट. अब इस किताब के कंटेंट की बात करते हैं. किताब में रमेश चंद्र अग्रवाल के बारे में काफी अभद्र भाषा का इस्तेमाल किया गया है. रमेश चंद्र अग्रवाल के कई कथित-अकथित कारनामों का विस्तार से जिक्र किया गया है. रमेश चंद्र अग्रवाल और उनके क्रियाकलापों के संबंध में ही किताब में एक प्रतियोगिता का ऐलान किया गया है.
पर एक सवाल ये उठता है कि आजकल पैसे लेकर जिस तरह किसी भी चीज के विज्ञापन धड़ल्ले से छापने और चलाने का रिवाज हो गया है, उसमें कोई ऐसा चेकप्वाइंट कैसे डेवलप किया जा सकता है जिससे विज्ञापन छापने से पहले विज्ञापित की जाने वाली चीज के बारे में पता लगाया जा सके. जाहिर है, इसके लिए एक अलग टीम गठित करनी होगी और कैसा भी विज्ञापन तुरत-फुरत छापकर लाभ कमाने की लोभी-लालची मानसिकता को त्यागना होगा. लेकिन क्या हमारे कथित बड़े मीडिया हाउस ऐसा कुछ करने को तैयार होंगे. अभी तक तो जो स्थिति है, उसके हिसाब से तो बड़े मीडिया हाउसों में पैसा देकर चाहे जों छपवा लो, छप जाएगा. लेकिन भास्कर के साथ कलिनायक वाले नायकों ने जो छल किया है, उससे लगता है कि इन मीडिया हाउसों की नींद-चैन छिनेगी.
आइए, नीचे हम किताब के बारे में दैनिक भास्कर में प्रकाशित ओरीजनल विज्ञापन, ओरीजनल विज्ञापन के कंटेंट, किताब के फ्रंट और बैक पेज व किताब के अंदर के कुछ पन्नों को देखें-पढ़ें.... उसके बाद कुछ बात करते हैं....
एक अदभुत वाकया घटित हुआ है. दैनिक भास्कर के कई संस्करणों में (राजस्थान को छोड़कर) लास्ट पेज पर एक बड़ा रंगीन विज्ञापन प्रकाशित हुआ है. विज्ञापन जिस किताब से संबंधित है उसका नाम है 'कलिनायक'. अब आप पूछेंगे- 'कलिनायक' बोले तो? तो जनाब, किताब में इसका विस्तार भी है, जो यूं है- 'कलियुग का नायक'. इस किताब के बारे में दैनिक भास्कर में जो विज्ञापन प्रकाशित किया गया है, उसमें लिखा है....
''जो कलियुग के माहौल में सफलता के तमाम फंडे सिखाएगी, जो आपको धोखे से बचाकर जिंदगी को मस्ती से, सही ढंग से जीना सिखाएगी, यह बदलकर रख देगी जिंदगी आपकी, यही पुस्तक आपको करोड़पति भी बना सकती है. किताब पढ़ें और निःशुल्क जीतें- 2 करोड़ रुपये के बंपर इनाम....., मकान कार हीरे का हार, 25, 10 और 5 लाख का, सोने के अंडे 75 प्रतिभागियों को, शिक्षा के लिए 500 छात्रों को 5000 रुपये की स्कालरशिप, दस्तावेज खोजी प्रतियोगिता में 50 लाख और कलिनायक के विषय में नई जानकारी देने पर 25 लाख का पुरस्कार. 1000 प्रतिभागियों को 10 लाख के सांत्वना पुरस्कार. एक अनूठी पुस्तक जिससे सपने होंगे पूरे अब. कलिनायक पढ़कर आपको यूं लगेगा कि जो कुछ पाना चाहते थे, यह सब कुछ, पा लिया, मूल्य 100 रुपये मात्र. साथ में सीडी मुफ्त. इक्कीसवीं सदी की महानतम किताब साबित न होने पर पैसे वापिस. पुस्तक वेबसाइट www.rajsthankalinayak.com से मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं. प्रकाशक- राजस्थान कलिनायक प्रकाशन, राजस्थान.''
तो ये तो था भास्कर में प्रकाशित विज्ञापन का कंटेंट. अब इस किताब के कंटेंट की बात करते हैं. किताब में रमेश चंद्र अग्रवाल के बारे में काफी अभद्र भाषा का इस्तेमाल किया गया है. रमेश चंद्र अग्रवाल के कई कथित-अकथित कारनामों का विस्तार से जिक्र किया गया है. रमेश चंद्र अग्रवाल और उनके क्रियाकलापों के संबंध में ही किताब में एक प्रतियोगिता का ऐलान किया गया है.
पर एक सवाल ये उठता है कि आजकल पैसे लेकर जिस तरह किसी भी चीज के विज्ञापन धड़ल्ले से छापने और चलाने का रिवाज हो गया है, उसमें कोई ऐसा चेकप्वाइंट कैसे डेवलप किया जा सकता है जिससे विज्ञापन छापने से पहले विज्ञापित की जाने वाली चीज के बारे में पता लगाया जा सके. जाहिर है, इसके लिए एक अलग टीम गठित करनी होगी और कैसा भी विज्ञापन तुरत-फुरत छापकर लाभ कमाने की लोभी-लालची मानसिकता को त्यागना होगा. लेकिन क्या हमारे कथित बड़े मीडिया हाउस ऐसा कुछ करने को तैयार होंगे. अभी तक तो जो स्थिति है, उसके हिसाब से तो बड़े मीडिया हाउसों में पैसा देकर चाहे जों छपवा लो, छप जाएगा. लेकिन भास्कर के साथ कलिनायक वाले नायकों ने जो छल किया है, उससे लगता है कि इन मीडिया हाउसों की नींद-चैन छिनेगी.
आइए, नीचे हम किताब के बारे में दैनिक भास्कर में प्रकाशित ओरीजनल विज्ञापन, ओरीजनल विज्ञापन के कंटेंट, किताब के फ्रंट और बैक पेज व किताब के अंदर के कुछ पन्नों को देखें-पढ़ें.... उसके बाद कुछ बात करते हैं....
गोलांकित दायरे में प्रकाशित विज्ञापन का वृहद रूप, ताकि पढ़ने में आ सके
कलिनायक किताब का एक पेज जिसमें किताब लेखकों-प्रकाशक के नाम, पते, नंबर दिए गए हैं.
कलिनायक किताब का एक पेज जिसमें किताब लेखकों-प्रकाशक के नाम, पते, नंबर दिए गए हैं.
कलिनायक किताब का पेज नंबर 14
बचपन में सभी ने पढ़ा होगा, लालच बुरी बला है. लेकिन आज बाजारू दौर में ज्यादातर लोग कथित बाजारू सफलता के लिए, पैसे बटोरने के लिए इज्जत-स्वाभिमान सब कुछ बेच-फेंक दे रहे हैं. ऐसा ही काम भास्कर समेत कई बड़े मीडिया घराने करने लगे हैं. पैसे लेकर खबर छापने का सिलसिला इसी कारण है. पैसे लेकर खबर रोकने का सिलसिला इसी कारण है. पैसे लेकर अनाप-शनाप विज्ञापन छापने का सिलसिला इसी कारण है. अब पैसे के चक्कर में खुद के खानदान की भी ऐसी-तैसी कराने में गुरेज नहीं है, बिलकुल कोठेवालियों की तरह.
कोठेवालियों तो फिर भी ईमानदार होती हैं. उनकी कथनी-करनी एक होती है. वे ईमानदारी से कहती हैं कि वे धंधा कर रही हैं, पैसे दो, तन लो. पर हम तो उनसे भी गए-गुजरे हैं. हम लोग कहते कुछ और हैं, करते कुछ और. हाथी के दांत की तरह हम लोग हैं, खाने के और, दिखाने के और. दोगले हैं हम लोग. मिशन की बात कह कर बिजनेस करने में लगे हैं. हम लोग क्यों न मान लें कि दैनिक भास्कर वालों ने किताब के कंटेंट के बारे में सब कुछ जानते-बूझते हुए भी विज्ञापन इसलिए छाप दिया क्योंकि उन्हें 12 लाख रुपये (स्रोत : किताब छापने वालों की तरफ से फोन करके भड़ास4मीडिया को दी गई जानकारी) मिल रहे थे. इसे दूसरे रूप में इस तरह कह सकते हैं कि भास्कर वालों ने अपने चेयरमैन रमेश चंद्र अग्रवाल की इज्जत का सौदा 12 लाख रुपये में कर लिया!! सच्चाई क्या है, भगवान जाने लेकिन अगर ये लालची मीडिया हाउस न सुधरे तो इन्हें इन्हीं के अंदाज में सबक सिखाने जाने कितने और कलिनायकों की गाथा लिखने के वास्ते लेखक-प्रकाशक सामने आएंगे.
वैसे, आपको क्या लगता है, भास्कर ने अपने चेयरमैन के खिलाफ किताब का विज्ञापन जानबूझकर छापा है या ये गलती पैसा कमाने की जल्दबाजी के चलते कोई चेकप्वाइंट न होने के कारण अनजाने में हो गई है? अगर मेरा जवाब पूछेंगे तो मैं तो यही कहूंगा कि जब सांडा के तेल, लिंगवर्द्धक यंत्र, शत्रुनाशक कवच के विज्ञापन धड़ल्ले से हम छाप दिखा सकते हैं तो एक किताब का विज्ञापन छापने में कौन-सी बड़ी बात है!
पूरी किताब http://www.rajasthankalinayak.net/ पर उपलब्ध है. इस साइट पर जाकर कलिनायक किताब डाउनलोड कर सकते हैं. ((आप लिंक पर कर्सर ले जाकर माउस को राइट क्लिक करें, 'सेव लिंक ऐज' आप्शन आएगा जिस पर क्लिक कर देंगे तो कलिनायक किताब पीडीएफ फार्मेट में आपके कंप्यूटर / लैपटाप पर डाउनलोड होने लगेगी)) कलिनायक की वेबसाइट को देखकर लगता है कि यह किताब जल्द ही अंग्रेजी में भी प्रकाशित होने जा रही है. तो क्या, अभी से मान लिया जाए कि कलिनायक के अंग्रेजी वर्जन का भी विज्ञापन भास्कर अखबार में इसी तरह प्रकाशित होगा?
कोठेवालियों तो फिर भी ईमानदार होती हैं. उनकी कथनी-करनी एक होती है. वे ईमानदारी से कहती हैं कि वे धंधा कर रही हैं, पैसे दो, तन लो. पर हम तो उनसे भी गए-गुजरे हैं. हम लोग कहते कुछ और हैं, करते कुछ और. हाथी के दांत की तरह हम लोग हैं, खाने के और, दिखाने के और. दोगले हैं हम लोग. मिशन की बात कह कर बिजनेस करने में लगे हैं. हम लोग क्यों न मान लें कि दैनिक भास्कर वालों ने किताब के कंटेंट के बारे में सब कुछ जानते-बूझते हुए भी विज्ञापन इसलिए छाप दिया क्योंकि उन्हें 12 लाख रुपये (स्रोत : किताब छापने वालों की तरफ से फोन करके भड़ास4मीडिया को दी गई जानकारी) मिल रहे थे. इसे दूसरे रूप में इस तरह कह सकते हैं कि भास्कर वालों ने अपने चेयरमैन रमेश चंद्र अग्रवाल की इज्जत का सौदा 12 लाख रुपये में कर लिया!! सच्चाई क्या है, भगवान जाने लेकिन अगर ये लालची मीडिया हाउस न सुधरे तो इन्हें इन्हीं के अंदाज में सबक सिखाने जाने कितने और कलिनायकों की गाथा लिखने के वास्ते लेखक-प्रकाशक सामने आएंगे.
वैसे, आपको क्या लगता है, भास्कर ने अपने चेयरमैन के खिलाफ किताब का विज्ञापन जानबूझकर छापा है या ये गलती पैसा कमाने की जल्दबाजी के चलते कोई चेकप्वाइंट न होने के कारण अनजाने में हो गई है? अगर मेरा जवाब पूछेंगे तो मैं तो यही कहूंगा कि जब सांडा के तेल, लिंगवर्द्धक यंत्र, शत्रुनाशक कवच के विज्ञापन धड़ल्ले से हम छाप दिखा सकते हैं तो एक किताब का विज्ञापन छापने में कौन-सी बड़ी बात है!
पूरी किताब http://www.rajasthankalinayak.net/ पर उपलब्ध है. इस साइट पर जाकर कलिनायक किताब डाउनलोड कर सकते हैं. ((आप लिंक पर कर्सर ले जाकर माउस को राइट क्लिक करें, 'सेव लिंक ऐज' आप्शन आएगा जिस पर क्लिक कर देंगे तो कलिनायक किताब पीडीएफ फार्मेट में आपके कंप्यूटर / लैपटाप पर डाउनलोड होने लगेगी)) कलिनायक की वेबसाइट को देखकर लगता है कि यह किताब जल्द ही अंग्रेजी में भी प्रकाशित होने जा रही है. तो क्या, अभी से मान लिया जाए कि कलिनायक के अंग्रेजी वर्जन का भी विज्ञापन भास्कर अखबार में इसी तरह प्रकाशित होगा?
यशवंत
एडिटर भड़ास4मीडिया
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