डॉ. शशि तिवारी
शिव वाकई में भोले हैं? अंधों के शहर में आईना बेचने का काम कर रहे हेै, एक ओर जहां केन्द्र से लेकर राज्य एवं राज्य से लेकर कस्बों तक केवल ऐसे और केवल भ्रष्टाचार ही भ्रष्टाचार व्याप्त हैं। ऐसे में शिवराज अचानक व्यथित हो भ्रष्टाचार के विरूद्ध अलख जगा एवं अपनों से ही बैर ले ''मध्यप्रदेश विशेष न्यायालय विधेयक 2011 को मंत्रीमण्डल से हरी झण्डी दिला विधानसभा के बजट सत्र में पेश कर कानून बनाने पर तुले हुए है। जैसा कि कुछ समाचार पत्रों में यह छापा गया है कि इस विधेयक के कुछ पहुलुओं को लेकर दो मंत्रियों ने ऐतराज भी दर्ज कराया है आगे अन्जाम क्या होगा भविष्य ही बतायेगा? यहाँ में एक बात बताना चाहूंगी जो मुझे अनायास ही याद आ गई। म.प्र.सरकार ने कुछ ही माह पहले लोकसेवा प्रदान गारंटी कानून 2010 विधेयक पास कराया तब भी मैंने आशंका व्यक्त की थी। कहीं अपने ही इसे पलीता न लगाए? आपको स्मरण होगा इस विधेयक के लिये भी शिवराज ने शुरू में उत्साह में कहा था कि लोक सेवक में मंत्री भी आयेगा, लेकिन विधेयक पास होते-होते मंत्री इस दायरे से बड़ी चालाकी से बाहर कर लिये गए? आज फिर शिवराज ने कहा मंत्री से सरपंच एवं मुख्य सचिव से पंचायत सचिव स्तर के सभी नेता एवं अफसर आयेंगे। क्या पूर्व की भाँति इस विधेयक का भी यही हश्र होगा? आज मंत्रीगण एवं अफसर मिलकर लोकसेवा प्रदान गारंटी को पलीता लग रहे हैं। अब जब बात भ्रष्टाचार की हो और स्वयं मंत्रियों के फंसने की हो तो सभी पुन: जुट विधानसभा में इसे विधेयक के कानून की शक्ल लेने के पहले अपने को इससे विमुक्त करने की पुरजोर कोशिश करेंगे?
आज आमजन सरकार की नेक नियत को ले शंकालू हैं एवं पूर्व अनुभवों के धारणा बना चुकी है कि मोटी-मोटी मछलियां, भ्रष्ट अधिकारियों एवं मंत्रियों का कोई भी, कुछ भी बाल बांका नहीं कर सकता, क्या शिवराज आम जनता के इस भ्रम को तोड़ पाने में सफल हो पायेंगे? या पूर्व की ही तरह अपने मंत्रियों के कुनबे से हारेंगे? इसका फैसला तो वक्त ही करेगा।
म.प्र.संभवत: भारत का पहला ऐसा राज्य होगा जो भ्रष्टाचार के खिलाफ लडऩे के लिए ''मध्यप्रदेश विशेष न्यायालय विधेयक 2011ÓÓ बनायेगा जो कई खूबियोंयुक्त होगा। मसलन इन विशेष न्यायालयों में जिला एवं सत्र न्यायाधीश, स्तर के न्यायाधीशों की पदस्थापना होगी, इस न्यायालय के निर्णय के खिलाफ उच्च न्यायालय में ही अपील की जा सकेगी, भ्रष्टाचार के सभी प्रकरणों का निपटारा एक वर्ष की समय सीमा में ही पूरे होंगे, इसकी जद में मुख्यमंत्री से सरपंच एवं मुख्य सचिव से पंचायत सचिव स्तर के सभी मंत्री एवं अफसर आयेंगे। भ्रष्टाचार को ले पूर्व में चल रहे प्रकरण भी इन न्यायालयों को सौंपे जायेंगे। इसमें जब्त एवं राजसात की गई सम्पत्ति का उपयोग स्कूल एवं अस्पतालों के लिये किया जायेगा। इसमें सम्मिलित सभी पहलू बड़े ही लोक लुभावन एवं किसी बाजार की योजनाओं जैसे लग रहे हैं। ऐसा नहीं कि इस तरह की सोच पहली बार हो रही हो पूर्व में भी गठित भ्रष्टाचार से संबंधित प्रकरणों की जांच लोकायुक्त एवं ई. ओ. डब्लू. करते आ रहे थे। लेकिन वर्तमान में दोनों ही अपनी उपयोगिता खो रहे है मसलन सालों-साल से घूल खा रहे प्रकरण जिनमें कई मंत्रीगण, आई.ए.एस. आई.पी.एस., आई.एफ.एस. एवं इंजीनियर जैसे प्रभावी लोग सम्मिलित है इन्हीं के पास इतना अरबों रूपया काली कमाई के रूप में संग्रहित है कि म.प्र. सोने की चिडिय़ा बन जाए, विकास के लिये धन की कोई भी कमी न रहें। लेकिन विभाग के अधिकारियों के निकम्मेपन एवं सरकार की दृढ़ इच्छा शक्ति में कमी के चलते ये प्रतिष्ठित संस्थान बदनाम हो रहे है।
अब यक्ष प्रश्न यह उठता है कि जब ये शासकीय संस्थान ढपोलशंख साबित हो रहे है तो ऐसे में यह विधेयक सफल होगा ही की क्या गारंटी है? वर्तमान में पूरा देश एवं प्रदेश न्यायाधीशों की कमी से जूझ रहा है? ऐसी परिस्थिति में इस विधेयक का हश्र क्या होगा? अनुमान सहज ही लगाया जा सकता है। केन्द्र भी भ्रष्टाचार पर नकेल कसने के लिए म.प्र. की तर्ज पर लोकपाल का गठन 25 जनवरी से पहले कर लेने के लिए दृढ़ संकल्पित हैं। इस तरह केन्द्र फिर सूचना का अधिकार के बाद भ्रष्टाचार के खिलाफ लोकपाल का गठन कर अध्यादेश जारी कर 2011 में एक ऐतिहासिक उपलब्ध हासिल करेगा। शिवराज एक के बाद एक धड़ाघड़ योजनाए तो लागू कर रहे है जो नि:संदेह सभी अच्छी भी है लेकिन इनकी सख्ती से मानीटरिंग न होने के कारण आगे पाठ पीछे सपाट की तर्ज पर सब गुड़ गोबर होता नजर आ रहा है। अब आम जनता को ऐसा लगने लगा है कि मुख्यमंत्री की बातों को मंत्रीगण एवं अधिकारी कोई खास तवज्जों नहीं देते है। आखिर ऐसा कब तक चलेगा। जवाब शिवराज को ही जनता को देना होगा। क्यों नहीं नाफरमानों को बाहर का रास्ता दिखा दिया जाता? आखिर क्या मजबूरी है? विशेषत: तब जब जनता शिवराज के साथ है। बिना भय के प्रीति नहीं हो सकती।
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