भोपाल // आलोक सिंघई (टाइम्स ऑफ क्राइम)
भारतीय जनता पार्टी मध्यमार्गी राजनीतिक दल बनने के फेर में अपनी पहचान तेजी से खोती जा रही है. सत्ता में आने के बाद उसने अपनी हिंदूवादी चोला उतार फेंकने की कवायद की और अब उसने अपनी पहचान कमल का निशान भी छोडऩे का मन बना लिया है. भाजपा के मध्यप्रदेश मीडिया प्रकोष्ठ ने तो अपने प्रेस नोट पर छपने वाला कमल निशान हटाकर पार्टी की इस रणनीति को अमल में लाना ही शुरु कर दिया है. भाजपा से जुड़े सूत्रों का कहना है कि जिस कमल निशान को लेकर भारतीय जनता पार्टी देश के कोने कोने तक पहुंची है उसे छोड़कर पार्टी दलितों, मुस्लिमों और परंपरागत कांग्रेसी वोट बैंक के बीच अपना आधार तलाशने का प्रयास कर रही है.यह उन प्रयासों का ही नया रूप है जिनके अंतर्गत पूर्व पार्टी अध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी ने जिन्ना की मजार पर जाकर उन्हें धर्म निरपेक्ष सोच वाला व्यक्ति बताया था. गौरतलब है कि पार्टी ने अपनी पहचान छोड़ऩे की तैयारी उस वक्त की है जब पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गड़करी दल की पुरानी पहचान कायम करने की कोशिशें कर रहे हैं. उन्होंने पार्टी की पहचान बनाने वाले उन राजनेताओं को दल में वापिसी की मुहिम भी चलाई है जिन्हें इसी मध्यमार्गी अभियान के दौरान धक्के मारकर बाहर निकाल दिया गया था.
नितिन गडकरी तो कमल निशान को अपना गोत्र बताते हैं वे कहते हैं कि कमल का निशान हमारी संस्कृति में गहरे तक समाया है. आजादी के संग्राम में कमल निशान की बड़ी सशक्त भूमिका थी. ये हमारी विचारधारा है. वास्तव में ये हमारा गोत्र है और इसी के सहारे हम हिंद्स्तान का कायाकल्प कर देंगे.
इसके विपरीत भारतीय जनता पार्टी के तथाकथित सुधारवादी नेता अपनी इस पहचान को छोड़कर वोट बैंकी राजनीति में कांग्रेस बनने का प्रयास कर रहे हैं. इन नेताओं का मानना है कि पार्टी की हिंदूवादी छवि उसकी विकासयात्रा में बाधक है. इससे मुस्लिम वोट बैंक अपना जुड़ाव महसूस नहीं करता है लिहाजा इस पहचान को बदल दिया जाना चाहिए.
पार्टी के प्रदेश संवाद प्रमुख डॉ. हितेष वाजपेयी इसे सुधारवादी पहल बताते हैं. उनका कहना है कि कंप्यूटरीकरण के दौर में प्रेस नोट पर अनावश्यक चीजें देने से व्यवधान पैदा होता है. नई शैली के प्रेसनोट में संबंधित फाईल का विवरण दर्ज किया गया है जिससे प्रेसनोट को कंप्यूटर की फाईलों की भीड़ में आसानी से तलाशा जा सकता है. वे कहते हैं कि यह फैसला उपयोग में सरलता के लिए लिया गया है.
बरसों से भारतीय जनता पार्टी के प्रेसनोट आम जनता से बेहतर संवाद का माध्यम रहे हैं. उनकी गुणवत्ता के कारण ही समाचार जगत के पत्रकार साथी उन्हें अपने समाचारों में स्थान देते रहे हैं. इसकी तुलना में प्रदेश कांग्रेस का प्रेस से संवाद बहुत ही घटिया रहा है. भाजपा के प्रेस नोट में कमल का निशान आत्मीयता का प्रतीक बन चुका था. एसे में पार्टी का यह फैसला कुछ नए विवादों को जन्म देने वाला साबित हो सकता है.
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