Saturday, January 29, 2011

बाजारवाद के चक्रव्यूह में उलझता किसान

डॉ. शशि तिवारी

इसे विडंबना ही कहा जायेगा कि शिव के राज में शिवराज के क्षेत्र इछावर तहसील के ब्रजेश नगर का किसान शिवप्रसाद खेती एवं ऋण समस्याओं को ले फांसी के फंदे पर क्या झूला कि किसानों में आत्महत्या करने का सिलसिला शुरू हो कृषि मंत्री रामकृष्ण कुसमारिया के गृह जिले तक थमने का ही नाम नहीं ले रहा। इस नए वर्ष में अब तक लगभग 8 किसानों ने अपने आपको मृत्यु के हवाले कर दिया इसके अलावा तीन अस्पताल में जीवन एवं मृत्यु के बीच लड़ रहे हैं। दमोह क्षेत्र इस मामले में आगे हैं। इसे भी विडंबना ही कहा जायेगा कि कृषि मंत्री रामकृष्ण कुसमारिया अपने गृह जिले के किसानों को ही मौत से नही बचा सके इससे उनकी स्वयं की कार्यशैली एवं क्षमता पर बड़ा प्रश्न चिन्ह लग गया है? प्रारंभ में शासन के कारिंदों ने सोचा था कि सब कुछ ठीक हो जायेगा लेकिन एक के बाद एक किसानों की मौत ने शिव की तन्द्रा को आखिर तोड़ ही दिया और शिवराज स्वयं निकल पड़े प्रभावित किसानों से मिलने एवं उन्हें देखने। किसानों की समस्याओं से आहत शिव ने अपने अधिकारियों को कड़ी हिदायतों के साथ किसानों के प्राकृतिक आपदा से हुए नुकसान का सही एवं सहानुभूति के साथ आंकलन कर पूरी रिपोर्ट तलब करने की बात के साथ ही साथ मुआवजा देने में किसी भी प्रकार की लापरवाही के लिए उन्हें न बख्शने की बात कही। किसानों के एक साल की कर्जमाफी एवं अगले वर्ष से 1 प्रतिशत पर ऋण उपलब्ध कराने की भी मरहम लगाया। यहां तक सुनने एवं देखने में सभी कुछ अच्छा लगता है लेकिन, साथ में कई यक्ष प्रश्न भी अधिकारियों एवं मंत्रियों की नाकामी को ले खड़ा करता है?
मसलन किसानों को प्रदाय किये जाने वाला खाद, बीज, कीटनाशक का क्या उचित मानक का था? यदि नही तो मुख्यमंत्री को स्वयं पहल कर मंत्री से ले अधिकारियों के स्तर तक जवाबदेही फिक्स कर बाहर का रास्ता दिखाना चाहिये। किसानों को मृत्यु के लिए उकसाने में कृषि मंत्री ने भी अहम् भूमिका अदा कर कहा कि यह तो उनके पुराने पापों का फल है! यह बयान वर्तमान परिस्थिति में हर तरह से बेहद निकृष्ट था! यहां कुछ ऐसा लग रहा है कि मंत्री अपनी नाकामी एवं समय रहते समस्याओं एवं शिकायतों के नजरअंदाज करने के पापों का ठीकरा किसानों के कर्मों का फल बता उनके ही सिर पर फोड़ डाला ।
प्राकृतिक विपदा पर तो किसी का भी वश नही चलता है लेकिन, खाद, बीज, कीटनाशक में होने वाले घालमेल पर तो निगरानी की जा सकती थी ? ऐसा भी नहीं कि विभाग या मंत्री को इसका पता नहीं था, समय-समय पर किसान व्यक्तिगत एवं उचित फोरम् से इस समस्या को उजागर करते रहे, लेकिन विभाग के निकम्मेपन के कारण समस्या का पानी अब गर्दन से ऊपर आ चुका है दूसरा अहम कारण कलेक्टर, कृषि विभाग के अधिकारी एवं बैक अधिकारी के बीच तालमेल न होना, तीसरा कारण बैंक द्वारा प्रदाय ऋण एवं उनकी वसूली के तरीके को ले समय-समय पर हमेशा प्रश्न उठते रहे हैं, बैंक वाले अपने टारगेट को पूरा करने के चक्कर में किसानों को लोकलुभावन योजनाओं में फंसा लेते हैं। हाल ही में एक समाचार पत्र में किसानों के नाम पर 4 करोड़ का लोन फर्जीवाड़ा प्रकाशित किया।
वैसे किसानों द्वारा आत्म-हत्या करने का यह कोई नया प्रकरण नहीं है! नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो के अनुसार 2009 में देश भर में कुल 17 हजार 368 किसानों ने आत्महत्या की थी, जिसमें से एक हजार पांच सौ की संख्या म.प्र. से ही है। एक सरकारी अनुमान के अनुसार मौसम की मार से फसलों का करीब 5 हजार करोड़ का नुकसान हुआ है। इसी नुकसान के साथ आज हर दूसरा किसान भयंकर कर्ज की चपेट में आ गया है। यह एक विचित्र संयोग ही है प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज, आत्महत्या करने वाला पहला किसाना शिव प्रसाद, भारतीय किसान संघ का अध्यक्ष शिव कुमार शर्मा है।
दो-दो शिव के रहते हुए किसान हैरान परेशान है? किसान संघ ने हाल ही में अपनी विभिन्न समस्याओं को ले राजधानी की गति को जाम कर दिया था। विभाग एवं कृषि मंत्री के ढीठपन के कारण आज तक संतोषजनक हल नहीं निकाल पाए। वही प्रदेश के मुखिया शिवराज की निसंदेह तारीफ करना चाहूंगी कि अकेले ही किसी भी समस्या से जूझने निकल पड़ते हैं और समस्या का समाधान भी करते हैं। यहां पुन: यक्ष प्रश्न उठता है कि जब सारे काम ही अकेला मुख्यमंत्री करे तो अन्य मंत्रियों की क्या आवश्यकता? क्यो ये जनता पर बोझ बने है ?
यदि ये नाकार हे ? तो क्यों नही अन्य युवा कर्मठ कार्यकर्ताओं एवं विधायकों को मौका दिया जाए ? अब निर्णय की घड़ी आन पड़ी है कठोर कदम सिर्फ शिव को ही उठाना है।
ये कदम हो सकते हैं सहायक- किसानों की जमीन की मिट्टी की नियमित जांच के साथ इसके लिये अनुकूल फसल, स्वाद का प्रकार, इसकी मात्रा एवं कीटनाशकों के प्रयोग की सीमा के निर्धारण की जवाबदेही विभाग की ही हो दूसरा स्थानीय साहूकारों द्वारा किसानों को ब्याज पर पैसा देने वालों पर पुलिस की कड़ी निगरानी के साथ दण्डात्मक कार्यवाही हो तीसरा बैंक या अन्य सहकारी संस्थाओं से मिलने वाले ऋण में अतिवादिता न हो, इसके लिए विभाग निगरानी समितियां भी बना सकती है, ताकि भोले-भाले किसान लोक लुभावन योजनाओं से बच सके चौथा किसान की हर समस्याओं को विभाग एवं मंत्री गंभीरता से ले आवश्यकता पडऩे पर नियमों में आवश्यक संशोधनों की पहल भी करें, पांचवा किसानों के लिए बनाई जाने वाली नीतियों को लागू करने से पहले अच्छी तरह से परीक्षण कर लिया जावे छठा अधिकारी से ले मंत्री तक जवाब देहता एवं पारदर्शिता सातवां बिजली एवं पानी की उपलब्धता का उचित प्रबंधन हो।
लेखिका सूचना मंत्र पत्रिका की संपादक है : मो. 9425677352

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