यौन वर्जनाओं को तोड़ते संचार माध्यम
- पंकज चतुर्वेदी -
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कर्नाटक विधानसभा में पोर्न वीडियो
देखते चार मंत्री पकड़े गये, उनके इस्तीफ़े हुए, दो-तीन दिन हो-हल्ला हुआ
और फ़िर देश अपनी गति से चल निकला. यह प्रकरण समाज में फ़ैलती जिस बीमारी की ओर इशारा कर रहा था, उसका कोई इलाज नहीं किया गया. यह प्रकरण हमें फ़िर याद दिलाता है कि संचार के आधुनिक साधन ईलता
का खुला बाजार बन गये हैं. कुछ माह पहले ही सुप्रीम कोर्ट के मुख्य
न्यायाधीश ने भी इंटरनेट पर परोसी जा रही ईलता पर चिंता जतायी थी. यह
विश्वव्यापी है, इसलिए इसे रोकना आसान नहीं है, पर दुर्भाग्य यह है कि
संवाद और संचार माध्यम इसे रोकने में नहीं, बल्कि नारी-देह पर विमर्श के
नाम पर इससे कमाई करने में व्यस्त हैं.
इस समय देश में कोई 80 करोड़ मोबाइल फ़ोन उपभोक्ता हैं और हर दिन 25 करोड़ एसएमएस इधर से उधर होने की बात सरकारी तौर पर स्वीकार की गयी
है. दुखद यह है कि इनमें करीब 40 फ़ीसदी संदेश द्विअर्थी एवं भद्दे होते
हैं और खुद मोबाइल कंपनियां ही इन्हें बढ़ावा देकर चांदी काट रही हैं. वे न
केवल सामाजिक प्रदूषण फ़ैलाने वाले ऐसे एसएमएस एक खास नंबर के जरिये
उपभोक्ताओं को उपलब्ध कराती हैं, बल्कि उन्हें अधिक से अधिक लोगों को भेजने
के लिए सस्ते एसएमएस पैक भी ऑफ़र करती हैं. इतना ही नहीं, अब तो खास
नंबरों पर लड़कियों से बातचीत और डेटिंग की सुविधा
भी उपलब्ध हैं. यानी एक अनजान महिला ( इसमें भी शक है कि दूसरी तरफ़ कोई
महिला ही है ) से लिखा-पढ़ी में ईल चैटिंग करें और अपनी कुंठा शांत करें.
आज मोबाइल फ़ोन छोटे गांव-गांव तक पहुंच गया है. महानगरों ही
नहीं, छोटे शहरों तक में स्कूली बच्चे भी इससे लैस दिखते हैं. मोबाइल
कंपनियों का रिकार्ड गवाह है कि पिछले कुछ वर्षो में एसएमएस का चलन रिकार्ड
तोड़ बढ़ा है. अब तो पिक्चर मैसेज का चलन भी बढ़ रहा है. पर यह विडंबना ही
है कि संचार की इस
बेहतरीन सेवा का इस्तेमाल ईल चुटकुलों तथा भद्दे मजाक के लिए अधिक हो रहा
है. एसएमएस के ज्यादातर चुटकुले यौन संबंध और स्त्री-देह के इर्द-गिर्द
सिमटे होते हैं. ऐसे चुटकुले पढ़ने और आगे बढ़ाने में महिलाओं का भी शामिल
होना शर्मनाक है.
आम परिवारों में महसूस किया जाने लगा है कि ’नान वेज‘
कहलाने वाले लतीफ़े अब उम्र और रिश्तों की दीवारें तोड़ घरों में घुस रहे हैं. एसएमएस से भी एक कदम आगे एमएमएस का बढ़ता कारोबार है. आज मोबाइल फ़ोन में कई-कई घंटे की रिकार्डिग
सुविधा उपलब्ध है. इन्हें एमएमएस के जरिये देशभर में भेजने पर न कोई रोक
है और न ही किसी का डर. कोई भी चर्चित एमएमएस कुछ ही समय में देश के
कोने-कोने में पहुंच जाता है. अपने मित्र के साथ के अंतरंग क्षणों को धोखे
से मोबाइल कैमरे में कैद करना आम हो रहा है. किसी सुदूर कसबे में भी दो
जीबी का माइक्रो एसडी कार्ड करीब तीन सौ में ’लोडेड‘ मिल जाता है, यानी ईल
वीडियो से लबरेज.
मोबाइल हैंडसेट में इंटरनेट कनेक्शन भी अब आम बात है. इसी कारण इंटरनेट की दुनिया भी अधोपतन की ओर
है. इंटरनेट के सर्च इंजन के जरिये नंगी औरतों के चित्र और वीडियो धड़ल्ले
से खोले जा सकते हैं. किसी रोक-टोक के बिना चल रही ऐसी कामुक वेबसाइट
इंटरनेट कनेक्शन वाले मोबाइल फ़ोन के लिए खूब खरीदार जुटा रही हैं. यह
साइबर वर्ल्ड में मरती संवेदनाओं की पराकाष्ठा
ही है कि राजधानी दिल्ली के एक प्रतिष्ठित स्कूल के बच्चे ने अपनी सहपाठी
छात्रा का ईल चित्र टेलीफ़ोन नंबर के साथ एक वेबसाइट पर डाल दिया. लड़की जब
भद्दे कॉल से परेशान हो गयी, तो मामला पुलिस तक पहुंचा. इंटरनेट पर चैटिंग
के जरिये दोस्ती और फ़िर फ़रेब या यौन शोषण के किस्से आये दिन अखबारों में
पढ़े जा सकते हैं.
देश-दुनिया की उपयोगी सूचनाएं पलक झपकते ही कंप्यूटर और मोबाइल स्क्रीन पर उपलब्ध कराने वाली आधुनिक संचार प्रणाली के गलत इस्तेमाल बढ़ने में सरकार की लापरवाही भी उतनी ही दोषी है, जितनी की इस पर निगरानी में समाज की कोताही. इंटरनेट ने तो संचार और संवाद का सस्ता और सहज रास्ता खोला था, लेकिन आज आज उसका उपयोग करने वालों की बड़ी संख्या के लिए यह महज यौन संतुष्टि का माध्यम बन गया है. वैसे इंटरनेट पर ऐसी नंगई रोकना कोई कठिन काम नहीं है. चीन इसकी बानगी है, जहां पोर्न साइट ही नहीं, फ़ेसबुक पर भी पाबंदी है.
काश! कर्नाटक में जो कुछ हुआ, उसे सियासी खेल से इतर देखा जाता और मोबाइल तथा इंटरनेट पर इस तरह की सामग्री
पर पाबंदी लगाने के लिए किसी कानून या तकनीक पर विचार-विमर्श शुरू हुआ
होता. लेकिन इस ओर किसी का भी ध्यान नहीं गया. इसी संवेदनहीनता का नतीजा है
कि जिस देश में स्त्री को शक्ित के रूप में पूजा जाता है, वहां का सूचना
तंत्र सरेआम उसके चरित्र हनन पर उतारू है. इस मुद्दे पर सरकारें और
राजनीतिक दल तो मौन हैं ही, महिलाओं के हक की आवाज
लगाने वाले संगठन भी चुप्पी साधे हुए हैं. मुख्य न्यायाधीश ने यह चुप्पी
तोड़ने के लिए पहल कर दी है. अब आगे का काम नीति-निर्माताओं और सामाजिक
संगठनों का है.
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)
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