Sunday, February 12, 2012

करोड़ों की लूट में जगतगुरु रामभद्राचार्य नामजद अभियुक्‍त, फरार हुए


करोड़ों की लूट में जगतगुरु रामभद्राचार्य नामजद अभियुक्‍त, फरार हुए

Written by शिव आसरे अस्‍थाना
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चित्रकूट स्थित "जगतगुरु रामभद्राचार्य विकलांग विश्‍वविद्यालय" अस्तित्व में आने के साथ ही विवादों में घिरा रहा है. इसे यूं भी कहा जा सकता है कि विवादों से इस संस्थान का चोली दामन का साथ है. विश्‍वविद्यालय के निर्धारित मानकों को दरकिनार कर इस विश्‍वविद्यालय को मान्यता उस समय मिली जब उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री पद पर राजनाथ सिंह तथा केंद्र में अटल बिहारी बाजपेयी सरकार में मानव संसाधन विकास मंत्री के पद पर मुरली मनोहर जोशी विराजमान थे. ऐसा इसलिए किया गया कि आरएसएस और रामभद्राचार्य का मधुर सम्बन्ध जगजाहिर है. इस संस्थान को मान्यता देने में किस कदर नियमों-कानूनों की अवहेलना की गयी, इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि मानक के अनुरूप संस्थान के पास ना तो  जमीन थी और और ना ही संस्थान के खाते में पर्याप्त धन राशि ही थी.

इतना ही नहीं, हद तो तब हो गयी जब चाल-चरित्र और चिंतन का दंभ भरने वाले राजनाथ और मुरली मनोहर जोशी ने इस विश्‍वविद्यालय के कुलाधिपति पद पर "प्रज्ञाचक्षु" यानी (जन्म से ही दृष्टिविहीन) उस रामभद्राचार्य को नामित कर दिया जो की न तो देख सकते हैं और ना ही लिख-पढ़ सकते हैं. बहरहाल संबंधों के बल पर अस्तित्व में आये इस संस्थान ने अपने नियमावली में स्पष्‍ट रूप से घोषड़ा कर रखी है कि- "यह संस्थान कभी भी राज्य सरकार या सरकार के किसी संस्थान से एक रुपये का अनुदान प्राप्त नहीं करेगी, इस संस्थान में केवल विकलांग बच्चे चाहे वे किसी भी धर्म या लिंग के हो, वे ही पढ़ सकेंगे यानी सकलांगों का प्रवेश पूर्णतया प्रतिबंधित रहेगा. बावजूद इसके राजनाथ सिंह के ही मुख्यमंत्रित्‍व काल में इस संस्थान ने पांच लाख रुपये का एक मुश्‍त अनुदान प्राप्त किया.

शर्मनाक तथ्य तो यह है कि इस संस्थान के अस्तित्व में आते ही राम भद्राचार्य ने संस्थान के तमाम महत्वपूर्ण पदों पर अपने भाई, भतीजे, भांजे व अन्य सगे संबंधियों को भारी-भरकम वेतनमान देकर बिठा दिया. शायद बाबा को इतने से भी संतुष्टि नहीं हुई तभी तो उन्होंने इस विश्‍वविद्यालय की पहली पीएचडी की डिग्री अपनी एक ऐसी कथित मुंहबोली बहन "गीता" को दे दिया जो कि महज आठवीं पास हैं. गीता को पीएचडी की डिग्री देने के लिए विश्‍वविद्यालय के कुलाधिपति बाबा रामभद्राचार्य, तत्कालीन कुलपति जीएन पाण्डेय एवं तत्कालीन कुलसचिव अवनीश मिश्र ने गीता के नाम काशी स्थित "सम्पूर्णानन्द संस्‍कृत विश्‍वविद्यालय" से तमान फर्जी मार्कशीट-सर्टीफिकेट तैयार करवा लिया. जिसके आधार पर गीता को पीएचडी की डिग्री दे दी गयी.

यहाँ यह गौरतलब है कि गीता को पीएचडी की डिग्री देने में बाबा एंड कंपनी ने दो अपराध किये १- फर्जी मार्कशीट-सर्टीफिकेट तैयार करवाना, २- विकलांग की जगह सकलांग को संस्थान में प्रवेश देना. जहां तक संस्थान में केवल विकलांगों के ही प्रवेश का सवाल है तो यहाँ यह जान लेना आवश्यक है कि इस संस्थान में आज कुल जितने विकलांग बच्चे हैं, उससे कहीं ज्यादा सकलांगों का जमावड़ा है. शर्मनाक तथ्य तो यह भी है कि - इस संस्थान को यूजीसी ने विकलांग बच्चों को ले आने-ले जाने हेतु बस खरीदने के लिए बजट दिया. बस खरीदी भी गयी लेकिन उस बस की खरीद संस्थान के पक्ष में न करके रामकथा के प्रख्यात कथावाचक बाबा रामभद्राचार्य ने अपने खुद के नाम से रजिस्ट्रेशन करवा लिया. अब यह बस विकलांग बच्चों को ढोने की जगह बाबा की मंडली वालों को ढोने लगी. इस तरह यूजीसी के अन्य तमाम मदों में भी जमकर धंधागर्दी की गयी.

आज से तीन साल पहले हमने इस संस्थान में हो रही लूट-खसोट पर अपनी समाचार पत्रिका "प्रखर विचार" में एक रिपोर्ट "विकलांग विश्‍वविद्यालय को लूटता जन्मांध कुलाधिपति"  प्रकाशित किया तो मानो हमने कोई घोर अपराध कर दिया, बाबा एंड कंपनी ने हमारी रिपोर्ट को मनगढ़ंत करार दिया. इसी दौरान इसी संस्थान में काम करने वाले विकलांग अर्जुन सिंह ने उपरोक्त तमाम अनियमितताओं की शिकायत उत्तर प्रदेश सतर्कता अधिष्ठान से कर दी. विजिलेंस ने अपनी खुली जांच में अर्जुन सिंह द्वारा लगाये गए सभी १३ बिन्दुओं को सही पाया. अपनी इसी जांच के बाद विजिलेंस के झांसी सेक्टर ने शासन से अनुमति मिलने के बाद ५-२-२०१२ को कर्वी कोतवाली में धारा ४२०/४६५/४६७/४६८/ १२० बी एवं अन्य आपराधिक धाराओं में बाबा रामभद्राचार्य, गीता देवी, जीएन पाण्डेय, अवनीश मिश्र व विपिन पाण्डेय के खिलाफ मुकदमा दर्ज करवा दिया.

बाबा एंड कंपनी के कुकृत्यों के विरुद्ध कर्वी कोतवाली में जिस समय विजिलेंस टीम एफआईआर दर्ज करवा रही थी, उस समय बाबा रामभद्राचार्य इंदौर से राम कथा का प्रवचन कर चित्रकूट वापस आ रहे थे. बाबा सतना तक वापस आ भी गए थे उसी समय बाबा को सूचना मिल गयी कि चित्रकूट जाते ही जेल के सीखचों के भीतर पहुंच जाओगे. बस फिर क्या था- बाबा सतना से ही फरार हो गए. हां, गीता देवी जरूर उस समय चित्रकूट में ही मौजूद थीं, लेकिन उन्हें भी जैसे ही सूचना मिली कि पुलिस किसी भी समय गिरफ्तार कर सकती है, वैसे ही वे भी चित्रकूट से फरार होने में कामयाब हो गयीं. अब यह देखना दिलचस्प होगा कि राम कथा का प्रवचन देकर लोगों को सत्य, परोपकार, दया, दान का मंत्र देने वाले कलियुगी संत - बाबा राम भद्राचार्य पुलिस की आँखों में कब तक धूल झोंकने में कामयाब रह पाते हैं.

लेखक शिव आसरे अस्‍थाना वरिष्‍ठ पत्रकार तथा समाजसेवी हैं. फिलहाल ये प्रखर विचार नामक पत्रिका का संपादन कर रहे हैं.[/B]

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