बिहार का एक इलाका ऐसा भी है जहां वेलेंटाइन डे से एक हफ्ते पहले से ही युवक-युवती एक मंदिर में जाकर अपने प्रेम की कामयाबी की दुआ मांगने पहुंच रहे हैं. यह मंदिर मधेपुरा जिले के सिंहेश्वर प्रखंड में है जिसे एक रिटायर शिक्षक ने अपनी पत्नी की याद में बनवाया है. इस मंदिर में किसी देवी-देवता की मूर्ति नहीं, बल्कि एक स्त्री और एक पुरुष की मूर्ति है जिसे लोग प्रेम का प्रतीक मानते हैं.
मधेपुरा जिले के भैरवपुर गांव निवासी रामेश्वर प्रसाद यादव ने अपनी
पत्नी लक्ष्मी देवी की मौत के बाद एक मंदिर बनवाकर उनकी प्रतिमा स्थापित
करवाई है जहां वह प्रतिदिन नियमपूर्वक और श्रद्धा के साथ पूजा भी करते हैं.
इतना ही नहीं, उन्होंने पत्नी की मूर्ति के साथ अपनी मूर्ति भी लगा रखी
है.
रिटायर शिक्षक रामेश्वर ने बताया कि उनका विवाह 1970 में लक्ष्मी के साथ
हुआ था. उनकी पत्नी प्रेम की प्रतिमूर्ति थीं. बकौल रामेश्वर, गम्भीर रूप
से बीमार उनकी पत्नी जब जीवित थीं तो एकबार उसने कहा था कि मरने के बाद वह
अकेली हो जाएंगी. इस पर रामेश्वर ने अपनी पत्नी से कभी अकेले नहीं होने
देने का वादा किया था सात फरवरी 2006 को लक्ष्मी का निधन हो गया. इसी वादे
को निभाने के लिए रामेश्वर ने एक वर्ष बाद ही करीब एक लाख रुपये की लागत से
गांव में ही पत्नी का एक मंदिर बनवाया, जिसमें पत्नी की मूर्ति के बगल में
अपनी मूर्ति की स्थापित करा दी.
दो पुत्र और दो पुत्रियों के पिता रामेश्वर बताते हैं कि सुबह उठकर जब
तक वह उस मंदिर में नहीं जाते उनकी दिनचर्या शुरू नहीं होती है. यही नहीं,
उनके पुत्र-पुत्रियां भी अपनी मां की पूजा के बाद ही अन्न ग्रहण करते हैं.
रामेश्वर कहते हैं कि उन्होंने जब मंदिर बनवाना शुरू किया तो पूरे गांव
में लोगों ने न केवल उनकी हंसी उड़ाई थी, बल्कि कई समस्याओं का सामना भी
उन्हें करना पड़ा था. लेकिन अब गांव के कई लोग इसे प्रेम का मंदिर मानकर
पूजा करने आते हैं.
रामेश्वर का दावा है कि इस मंदिर में लोग जो भी मनोकामना करते हैं, वह
जरूर पूरी होती है. वह कहते हैं कि लक्ष्मी अत्यंत दयालु और सहृदय थीं जिस
कारण गांव के लोग मरने के बाद भी उनका आदर करते हैं.
ग्रामीण भी अब इस मंदिर से खुश हैं. ग्रामीण महेश कुमार बताते हैं कि जब
से इस मंदिर का निर्माण हुआ है, तब से गांव में पति-पत्नी के बीच विवाद या
झगड़ा होते नहीं देखा गया है. वह कहते हैं कि रामेश्वर और लक्ष्मी का
प्रेम इस गांव के लिए ही नहीं, बल्कि आसपास के क्षेत्रों के लिए एक मिसाल
है.
अन्य ग्रामीणों का कहना है कि यहां के लोग प्रेम की निशानी के रूप में
ताजमहल तो नहीं बनवा सकते, लेकिन यह मंदिर भी गांव के लिए ताजमहल का ही
प्रतीक है. रामेश्वर यह भी कहते हैं कि उनकी इच्छा है कि मृत्यु के बाद
उनका दाह संस्कार इसी मंदिर के निकट किया जाए, यह बात उन्होंने अपने
परिजनों को बता दी है.
No comments:
Post a Comment