शुक्रवार को उन्होंने कहा कि महिलाएं टॉयलेट्स के बजाए मोबाइल फोन को तरजीह दे रही हैं। उन्होंने कहा, ' शौचालय के लिए दी गई राशि को लोग अपनी अन्य जरूरतों पर खर्च कर रहे हैं। महिलाएं मोबाइल फोन की मांग करती हैं लेकिन टॉयलेट्स की नहीं। भारत में जब 70 करोड़ मोबाइल फोन हैं, तब यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि 60 % लोग खुले में टॉयलेट करते हैं।'
एशिया पैसेफिक के लिए संयुक्त राष्ट्र के आर्थिक और सामाजिक आयोग (एस्केप) की ओर से विकास लक्ष्य जारी करते हुए रमेश ने कहा, 'साफ-सफाई काफी जटिल मुद्दा है। अगर हम व्यवहारगत बदलावों की बात करें, तो महिलाएं मोबाइल फोन की मांग कर रही हैं। उन्हें टॉयलेट नहीं चाहिए। यही हमारी मानसिकता है।'
महिलाओं पर उनकी यह टिप्पणी कई लोगों को नागवार गुजरी। कार्यक्रम के मेजबान ने मंत्री को यह याद भी दिलाया कि मध्य प्रदेश के बैतूल की अनीता ने ससुराल में शौचालय की सुविधा नहीं होने पर अपने पति का घर छोड़ दिया था और आखिरकार टॉयलेट बनने के बाद ही वापस आई। उसके इस साहसिक कदम के लिए पांच लाख रुपये का पुरस्कार दिया गया है और डीएम ने उसे स्वच्छता जागरूकता कार्यक्रम का ब्रैंड ऐंबैसडर भी बनाया है। अनीता की कहानी बताए जाने के बाद रमेश बोले,'भारत विरोधाभासों का देश है। यहां की 60 फीसद आबादी खुले में शौच करती है। उसी देश में 70 करोड़ मोबाइल फोन भी हैं। सरकार टॉयलेट बनवाती है, लेकिन लोग उसका इस्तेमाल नहीं करते हैं।'
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