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नारी युगों के पार
आज डरी डरी सहमी आंखें ?
पूंछ रही समाज से कानून से
क्यों नहीं सुनाई पड़ती,
दामिनी निर्भया गुड़िया की चीखे ?
स्त्री वामा है, सृष्टि के अधूरेपन की पूरक,
हमारे अवमूल्यन से सहचरी,
बनकर रह गई मात्र अनुचरी,
आज पूछती है, आप से समाज से,
कि आखिर कौन हूं मैं ?
जो चीख रही है, तलाष रही है,
समीकरण भय और साहस का ,
और चिंता कर रही है सम्मान का,
महिलाओं के सम्मान की परपंरा आदि काल से हमारे देष में रहीं है कहा गया है कि जहां नारी का सम्मान होता वहां देवता वास करते है। महिलाओं की आजादी की राह, इतिहास की एक असिद्ध थ्योरी को सिद्ध करती प्रतीत होती है कि इतिहास अपने आप को दोहराता है। ऋग्वेद के जमाने में वह स्वतंत्रता के बेहद करीब थी, छठी सदी ईसा पूर्व से उसका वास्तविक संघर्ष षुरु हुआ, आठवीं सदी के एक उपनिषद में अपने समय के सबसे सिद्ध दार्षनिक याज्ञवल्क्य, गार्गी के प्रष्नों के उत्तर में असमर्थता को उसकी हत्या से ढकते हैं एवं बौद्धिक क्षेत्र से नारी का निष्कासन हो जाता है । उत्तर वैदिक काल का षतपथ ब्राम्हण स्त्री के पुरुष के बरावर होने की जोरदार घोषणा करता है, फिर वही षतपथ ब्राम्हण कहता है कि स्त्री में पुरुष से कम बुद्धि होती है, तो बुद्ध ने नारी से सावधान रहने की हिदायत दी थी, षंकर ने तो सीधे नारी नरकस्य द्वार घोषित कर डाला।
पुराणों षास्त्रों के मिथकों एवं कौष्लया, केकई, सुभद्रा, उर्मिला, द्रोपती, सावित्री, राधा, दुर्गा के रूपों के किस्सों और किताबों से बाहर आकर आज अंतरिक्ष में उड़ान भरने पर भी सम्मान को तो तरसती है, इनके श्रम और मेहनत को भी हम अदृष्य कर देते है । 20 वीं सदी के इतिहास को बदलाव का इतिहास कहा जा सकता है उन बदलाव में महिलाओं की भूमिका और स्थिती में विष्वभर में बदलाब आये, जिसमें महिलाओं के जीवन, उसके समाज की बातों पूरी तरह बदल दिया। वही बदलाव लाने की सबसे बडी जिम्मेदारी एक औरत की ही है, वह बेटे को बेटी से बड़ा दर्जा देकर अलग मानदंड़ बनाकर बहू के लिए अलग बिषमता के बीज बो कर भी सम्मान की चाह भी रखती है।
आर एस पटेल
गार्ड
पष्चिम मध्य रेल कटनी म प्र मोवाईल 8989535323
अखिल भारतीय कूर्मि क्षत्रिय महासभा की राष्ट्रीय पत्रिका कूर्मि क्षत्रिय जागृति का 1990 से सम्पादन,
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