Friday, April 26, 2013

बेगुनाहों की रिहाई के सवाल को शिगूफों के सहारे भटकाने की कोशिश


तारिक पर से मुकदमा वापसी का सपा सरकार का दावा महज राजनीतिक शिगूफा- रिहाई मंच

लखनऊ / रिहाई मंच ने गोरखपुर धमाकों के आरोपी आजमगढ़ के
तारिक कासमी पर से मुकदमा हटाने को महज एक राजनीतिक स्टंट करार देते हुए
कहा कि इस पूरे शिगूफे का मकसद मुसलमानों में भ्रम पैदा करना है क्योंकि
इससे तारिक कासमी और अन्य बेगुनाहों की रिहाई का रास्ता साफ नहीं होता।
साथ ही इससे तारिक समेत सभी बेगुनाहों के परिजन जो अपने बच्चों की रिहाई
का रास्ता देख रहे थे वे आहत हुये हैं।

रिहाई मंच के प्रवक्ता शाहनवाज आलम और राजीव यादव ने कहा कि सरकार
बेगुनाहों को रिहा करने के मुद्दे से ज्यादा दोषी पुलिस अधिकारियों और
आईबी को बचाने की फिराक में दिख रही है, क्योंकि अगर बेगुनाहों की रिहाई
के सवाल पर सरकार सचमुच ईमानदार होती तो निमेष कमीशन की रिपोर्ट की
सिफारिशें लागू करते हुए तारिक और खालिद को रिहा करते हुए उन्हें फसाने
वाले पुलिस व आईबी अधिकारियों पर कार्यवाई करती तथा गोरखपुर समेत पूरे
प्रदेश में हुई आंतकी वारदातों व गिरफ्तारियों पर जांच आयोग गठित करती।
रिहाई मंच ने कहा कि जिस गोरखपुर धमाकों के आरोप से तारिक कासमी पर से
मुकदमा वापस लेने की बात की जा रही है वह घटना ही अपने आप में संदिग्ध
रही है। जिसकी उच्च स्तरीय जांच की मांग लगातार होती रही है। क्योंकि उस
समय इस घटना के पीछे गोरखपुर के सांसद योगी आदित्यनाथ और उनके संगठन
हिंदु युवा वाहिनी की भूमिका पर सवाल उठे थे। जिसकी पुष्टि इस तथ्य से
होती है कि मालेगांव और मक्का मस्जिद विस्फोटों के आरोपी असीमानंद ने
अपनी स्वीकारोक्ति में इस बात को कहा था कि उनका संगठन अभिनव भारत गंगा
के मैदानी क्षेत्रों समेत भारत-नेपाल सीमावर्ती इलाके को अपने सशस्त्र
हिंदू विद्रोह के केन्द्र के बतौर विकसित करने के एजेण्डे पर काम कर रही
है। जिसके तहत योगी आदितयनाथ के नेतृत्व में 2006 में विश्व हिंदू
महासम्मेलन आयोजित हुआ जिसमें हिमानी सावरकर समेत तमाम हिन्दुत्वादी नेता
इकट्ठे हुए थे। रिहाई मंच के नेताओं ने कहा कि असीमानंद की स्वीकारोक्ति
एटीएस की चार्जशीट का हिस्सा है, लेकिन बावजूद इसके गोरखपुर धमाकों की
जांच कराने के बजाय सरकार ने उल्टे इसी मामले के एक आरोपी आजमगढ़ निवासी
मिर्जा शादाब बेग के घर की कुर्की पिछले दिनों करवा दी और तारिक कासमी पर
से मुकदमा हटाने का शिगूफा छोड़कर बेगुनाहों को छोड़ने के अपने चुनावी
वादे को पूरा करने का ढिढोरा पीट रही है, जबकि सच्चाई यह है कि इससे
तारिक कासमी को राहत नहीं मिलेगी क्योंकि उन पर यूपी कचहरी धमाकों का
फर्जी मुकदमा भी दर्ज है। जिसे हटाने का साहस सरकार नहीं दिखा पा रही है
जबकि निमेष कमीशन की रिपोर्ट इस बात को साबित करती है कि इन्हें गलत
तरीके से फंसाया गया है और दोषी पुलिस अधिकारियों के खिलाफ कमीशन
कार्यवाई की सिफारिश करती है।

रिहाई मंच के नेताओं ने कहा कि अगर सरकार तारिक पर से गोरखपुर विस्फोट का
मुकदमा हटा रही है तो सरकार बताए कि तारिक को किन पुलिस अधिकारियों ने इस
मामले में फंसाया था और वह इन अधिकारियों के खिलाफ क्या कार्यवाई कर रही
है। क्योंकि तारिक को इंसाफ तब तक नहीं मिल सकता जब तक उसे फसाने वालों
के खिलाफ कार्यवाई न हो। क्योंकि आजमगढ़ के तारिक कासमी समेत अनेक
बेगुनाहों को आतंकवाद के नाम पर फंसा कर सांप्रदायिक एसटीएफ, एटीएस और
आईबी पूरे शहर को आतंकवाद की नर्सरी के बतौर  पूरी दुनिया में बदनाम कर
दिया।

वहीं पश्चिम बंगाल के पांच आरोपियों मुख्तार हुसैन, मोहम्मद अली अकबर,
अर्जीजुर्रहमान, नौशाद हाफिज और नुरुल इस्लाम पर से 2008 में लखनऊ कोर्ट
में पेशी के दौरान देश विरोधी नारेबाजी करने के मुकदमें वापसी की
प्रक्रिया पर रिहाई मंच ने कहा कि इससे भी आतंकवद के नाम पर कैद इन
बेगुनाहों की रिहाई का रास्ता साफ नहीं होता क्योंकि यह मुकदमा उनके ऊपर
आतंकी वारदातों में शामिल होने के झूठे आरोपों से इतर मुकदमा है। जो 2008
में बार एसोसिएशन के आतंकवाद के आरोपियों के मुकदमें न लड़ने के विरुद्व
दिए गए संविधान विरोधी फतवे के खिलाफ जब एडवोकेट व रिहाई मंच के अध्यक्ष
मोहम्मद शुऐब ने जब मुकदमे लड़ने शुरु किए तब सांप्रदायिक वकीलों की भीड़
ने मुहम्मद शुएब व आरोपियों पर जानलेवा हमला किया और पुलिस के गठजोड़ से
उन पर देश विरोधी नारे लगाने का झूठा मुकदमा दर्ज किया गया था। लिहाजा
सरकार इस मसले पर मुसलमानों को भ्रमित करने के बजाय जून 2007 में इन
आरोपियों पर लखनऊ में आतंकी षडयंत्र के नाम पर लगाए गए मुकदमे को वापस ले
ताकि इनकी रिहाई सुनिश्चित हो सके।

रिहाई मंच ने सरकार को नसीहत देते हुए कहा कि बेगुनाहों की रिहाई के सवाल
पर सरकार सांप्रदायिक ध्रुवीकरण कराने की राजनीति से बाज आए क्योंकि
मुस्लिम बेगुनाहों की रिहाई का सवाल सिर्फ बेगुनाहों की रिहाई का नहीं
बल्कि कि इन आतंकी वारदातों में मारे गए और घायल हुए लोगों के साथ न्याय
का भी सवाल है, जो तब तक हल नहीं हो सकता जब तक इन वारदातों के असली
दोषियों को पकड़ा नहीं जाता। ऐसे में सरकार शिगूफेबाजी छोड़ कर बेगुनाहों
को फंसाने वालों पर कार्यवाई और आतंकी घटनाओं की उच्च स्तरीय
जांच को सुनिश्चित करे।

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