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भारत के पूर्व प्रधान न्यायाधीश जेएस वर्मा का निधन हो गया है। उन्होंने गुड़गांव के मेदांता मेडिसिटी अस्पताल में सोमवार की रात 9.30 बजे अंतिम सांस ली। 80 वर्षीय जस्टिस वर्मा को शुक्रवार को लीवर में तकलीफ की शिकायत के बाद अस्पताल में भर्ती करवाया गया था। लेकिन यहां उनकी हालत में कोई सुधार नहीं हुआ और धीरे धीरे उनके अंग काम करना बंद करते गये। सोमवार रात 9.30 बजे उन्हें मृत घोषित कर दिया।
18 जनवरी 1933 को मध्य प्रदेश के सतना में पैदा होनेवाले जगदीश शरण वर्मा ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से पढ़ाई की थी। अपने कानूनी कैरियर की शुरूआत मध्य प्रदेश से ही 1955 में शुरू किया था। 1973 में वे मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के न्यायाधीश नियुक्त किये गये। 1986 में मध्य प्रदेश के मुख्य न्यायाधीश बननेवाले जस्टिस वर्मा राजस्थान हाईकोर्ट के भी प्रधान न्यायाधीश रह चुके थे। 1989 में वे सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश नियुक्त किये गये। 25 मार्च 1997 से 18 जनवरी 1998 को सेवानिवृत्ति तक भारत के 27वें प्रधान न्यायाधीश रहे थे। न्यायमूर्ति वर्मा राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष भी रह चुके हैं। जून 1989 में सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश बनने के बाद करीब 470 मामलों की सुनवाई की।
कानून में शीर्ष पद पर पहुंचे जस्टिस जेएस वर्मा भारतीय मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष भी रह चुके थे।
हाल के दिनों में जस्टिस जगदीश शऱण वर्मा उस वक्त चर्चा में आये थे जब 16 दिसंबर की घटना के बाद प्रधानमंत्री ने उन्हें महिलाओं के खिलाफ अपराध से निबटने को लेकर कड़े कानून का मसौदा तैयार करने वाली समिति का अध्यक्ष नियुक्त किया था। उन्हीं के दिये गये सुझावों के आधार पर सरकार ने एन्टी रेप लॉ में कई सुधार किये। सरकार ने इन सिफारिशों के आधार पर अध्यादेश जारी किया था और इस साल बजट सत्र के पहले चरण में संसद में बलात्कार विरोधी कानून पारित हुआ था।
वर्मा के निधन पर दुख प्रकट करते हुए प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा है कि ''वे कानून की विशद जानकारी और समझ रखनेवाले व्यक्ति थे। उन्होंने ऐतिहासिक निर्णय दिये और उन्हें जनता से जुड़ी बातों की गहरी समझ थी।'' डॉ सिंह ने कहा है कि श्री वर्मा के निधन से उन्हें व्यक्तिगत रूप से उनकी कमी हमेशा खलेगी। चर्चित कानून विशेषज्ञ सोली सोराबजी ने कहा कि ''वह सवालों से परे ईमानदारी वाले शख्स थे और वह हमेशा अच्छे सिद्धांत का समर्थन करते थे।''
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