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रायपुर। फाइनेंस वाहन को जब्त कर बेचने के एक मामले में राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग नई दिल्ली ने चोलामंडलम फाइनेंस के खिलाफ आदेश पारित करते हुए गाड़ी की कीमत २,६१,५३३ रुपए उपभोक्ता को लौटाने और ५० हजार रुपए क्षतिपूर्ति देने का फैसला दिया है। सुनवाई के दौरान राष्ट्रीय आयोग ने कहा कि कोई भी फाइनेंस कंपनी जब्त वाहन को नहीं बेच सकती।
इसके लिए फाइनेंस कंपनी को गाड़ी मालिक को सूचना देनी होगी और नीलामी में खरीदी का पहला अधिकार भी गाड़ी मालिक का होगा। आमतौर पर यह देखा जाता है कि फाइनेंस कंपनियां नई गाड़ी फाइनेंस करते समय अच्छा व्यवहार करती हैं, लेकिन फाइनेंस की रकम जमा करने में थोड़ा भी विलंब होने पर गाड़ी जब्त कर लेती हैं और वाहन मालिक को बिना पूछे गाड़ी बेच दी जाती है।
कोरबा निवासी स्टीफन तिग्गा ने अपने रोजगार के लिए २००३ में चोलामंडलम से एक ट्रक फाइनेंस कराया। उपभोक्ता तिग्गा को २७,३७८ रुपए की ३५ किश्तें जमा करनी थीं। फाइनेंस कंपनी द्वारा कई कागजों में हस्ताक्षर करवाए गए, लेकिन उसे समझाया नहीं गया। उपभोक्ता लगातार किश्त अदा करता रहा। २ मार्च २००५ को जब उसका ट्रक कोयला भरकर कोरबा से रायगढ़ जा रहा था तभी फाइनेंस कंपनी ने अवैध तरीके से रास्ते में ट्रक को जब्त कर लिया। बाद में कंपनी ने ट्रक को बेच दिया।
इससे दुखी उपभोक्ता ने जिला उपभोक्ता फोरम का दरवाजा खटखटाया। फोरम ने परिवाद को आंशिक रूप से स्वीकार किया, जिसके खिलाफ दोनों पक्षों ने राज्य उपभोक्ता आयोग में अपील की। आयोग ने दो बार दोबारा सुनवाई के लिए प्रकरण को जिला फोरम भेजा। लेकिन उपभोक्ता को न्याय नहीं मिला। तब उपभोक्ता ने राज्य आयोग में अपील की, जहां से परिवाद निरस्त हो गया।
इससे क्षुब्ध होकर उपभोक्ता ने अधिवक्ता राजेश कुमार भावनानी के माध्यम से राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग में रिविजन पिटीशन प्रस्तुत किया। राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग ने कहा कि फाइनेंस कंपनी ने कोयला भरे ट्रक को जब्त किया और कोयला को हटाने की अनुमति नहीं दी, जो बर्बरता की श्रेणी में आता है। इसलिए फाइनेंस कंपनी उपभोक्ता को ५०,००० रुपए हर्जाना देगा और ट्रक की कीमत २,६१,५३३ रुपए ९ प्रतिशत ब्याज सहित लौटाएगा।
रायपुर। फाइनेंस वाहन को जब्त कर बेचने के एक मामले में राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग नई दिल्ली ने चोलामंडलम फाइनेंस के खिलाफ आदेश पारित करते हुए गाड़ी की कीमत २,६१,५३३ रुपए उपभोक्ता को लौटाने और ५० हजार रुपए क्षतिपूर्ति देने का फैसला दिया है। सुनवाई के दौरान राष्ट्रीय आयोग ने कहा कि कोई भी फाइनेंस कंपनी जब्त वाहन को नहीं बेच सकती।
इसके लिए फाइनेंस कंपनी को गाड़ी मालिक को सूचना देनी होगी और नीलामी में खरीदी का पहला अधिकार भी गाड़ी मालिक का होगा। आमतौर पर यह देखा जाता है कि फाइनेंस कंपनियां नई गाड़ी फाइनेंस करते समय अच्छा व्यवहार करती हैं, लेकिन फाइनेंस की रकम जमा करने में थोड़ा भी विलंब होने पर गाड़ी जब्त कर लेती हैं और वाहन मालिक को बिना पूछे गाड़ी बेच दी जाती है।
कोरबा निवासी स्टीफन तिग्गा ने अपने रोजगार के लिए २००३ में चोलामंडलम से एक ट्रक फाइनेंस कराया। उपभोक्ता तिग्गा को २७,३७८ रुपए की ३५ किश्तें जमा करनी थीं। फाइनेंस कंपनी द्वारा कई कागजों में हस्ताक्षर करवाए गए, लेकिन उसे समझाया नहीं गया। उपभोक्ता लगातार किश्त अदा करता रहा। २ मार्च २००५ को जब उसका ट्रक कोयला भरकर कोरबा से रायगढ़ जा रहा था तभी फाइनेंस कंपनी ने अवैध तरीके से रास्ते में ट्रक को जब्त कर लिया। बाद में कंपनी ने ट्रक को बेच दिया।
इससे दुखी उपभोक्ता ने जिला उपभोक्ता फोरम का दरवाजा खटखटाया। फोरम ने परिवाद को आंशिक रूप से स्वीकार किया, जिसके खिलाफ दोनों पक्षों ने राज्य उपभोक्ता आयोग में अपील की। आयोग ने दो बार दोबारा सुनवाई के लिए प्रकरण को जिला फोरम भेजा। लेकिन उपभोक्ता को न्याय नहीं मिला। तब उपभोक्ता ने राज्य आयोग में अपील की, जहां से परिवाद निरस्त हो गया।
इससे क्षुब्ध होकर उपभोक्ता ने अधिवक्ता राजेश कुमार भावनानी के माध्यम से राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग में रिविजन पिटीशन प्रस्तुत किया। राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग ने कहा कि फाइनेंस कंपनी ने कोयला भरे ट्रक को जब्त किया और कोयला को हटाने की अनुमति नहीं दी, जो बर्बरता की श्रेणी में आता है। इसलिए फाइनेंस कंपनी उपभोक्ता को ५०,००० रुपए हर्जाना देगा और ट्रक की कीमत २,६१,५३३ रुपए ९ प्रतिशत ब्याज सहित लौटाएगा।
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