Toc news मंडला। मंडला जिले की महापंचायत ने खाप पंचायत की तर्ज पर गांव के 22 लोगों का सामाजिक बहिष्कार करने का तुगलकी फरमान सुनाया है। समाज के ठेकेदारों ने बहिष्कृत लोगों का गांव में हुक्का पानी बंद कर दिया है।दरअसल 10 साल पहले एक लड़की ने दूसरे समाज के लड़के के साथ शादी कर ली थी। जिस पर समाज ने लड़की के पिता पर 75 सौ रुपये का अर्थदंड लगाया था। पिता ने वह अर्थ दंड अदा नहीं किया तो उसके साथ-साथ शादी में शामिल अन्य लोगों का भी बहिष्कार कर तुगलकी फरमान सुना दिया गया वो भी 10 साल बाद।
ग्राम पंचायत खुक्सर के डुंगरिया गांव के धनराज पर लड़की का अंतरजातीय विवाह कराने और बाकी के 21 सदस्यों पर उस विवाह में शामिल होने के आरोपों के चलते 28 फरवरी को 25 पंचायतों के मुखियाओं की मौजूदगी में आयोजित महापंचायत में धनराज सहित 22 लोगों को समाज से बाहर करने व गांव में हुक्का पानी बंद करने का बेतुका फरमान जारी किया गया है।
हैरत की बात तो यह है कि महापंचायत के तुगलकी फरमान सप्रमाण लेकर पीड़ित पक्ष जब पुलिस के पास पहुंची तो पुलिस ने कोई कार्रवाई नहीं करते हुये उन्हें न्यायालय जाने की सलाह दे दी। जब पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों से उनका पक्ष जानने की कोशिश की गई तो कोई भी जिम्मेदार इस मामले कैमरे के सामने कुछ भी कहने से बचते नजर आये।
महापंचायत के तुगलकी फरमान के बाद बहिष्कृत परिवार दहशत और खौफ के साये में जीने को मजबूर है। वहीं इस फरमान के कारण तीन लड़कों की शादी टूट गयी है। दरअसल महापंचायत ने जो लिखित फरमान जारी किया है। उसे सामाजिक बहिष्कार का दंश झेल रहे लोगों के सभी रिश्तेदारों और आसपास के गांव में बटवाया गया है।
धनराज और धन्नालाल के बेटों का विवाह आगामी दिनों में होने को था मगर महापंचायत के सदस्यों ने लड़की वालों को नोटिस जारी कर शादी नहीं करने की हिदायत दी जिससे लड़की वालों ने शादी करने से इंकार कर दिया है।
वहीं समाज के ठेकेदार और महापंचायत के आयोजनकर्ता इमरत पेन्द्रो, दलपत शाह मरावी आदि सामाजिक परंपराओं हवाला देकर सामाजिक बहिष्कार को जायज बता रहे हैं।
इनका कहना है कि धनराज की लड़की को नीची जाति के लड़के के साथ आपत्तिजनक स्थिति में दस साल पहले देखा गया था। उसी समय सात गांव की पंचायत ने धनराज पर 75 सौ रुपये का अर्थदंड लगाया था। जिसे देने का वादा कर धनराज ने पूरा नहीं किया। इसलिये दस साल के बाद महापंचायत लगाकर यह निर्णय लिया गया है।
आदिवासी बाहुल्य मंडला जिले में सामाजिक बहिष्कार का यह कोई पहला मामला नहीं है।
दरअसल पुलिस और जिला प्रशासन की उदासीनता के चलते यहां कानून से बढ़कर पंचायतों के फैसलों को तवज्जो दी जाती है, अब वह चाहे सही हो या गलत। ऐसे मामले में जहां तत्काल एक्शन लिया जाना चाहिये, लेकिन पुलिस और प्रशासन ऐसे मामलों में सामाजिक रीत रिवाज का हवाला देकर दखल देने से भी कतराते हैं।
ये भी फरमान सुनाया गया है कि यदि गांव का कोई भी व्यक्ति बहिष्कृत लोगों से मिलते या बात करते हुये पाया जाता है तो उसे 10 हजार रुपये का आर्थिक दंड भुगतना होगा। हैरत की बात तो यह है कि पंचायत का यह फैसला 10 साल पुराने मामले में सामने आया है।पंचायत का तुगलकी फरमान, 22 लोगों का हुक्का-पानी किया बंद मंडला। मंडला जिले की महापंचायत ने खाप पंचायत की तर्ज पर गांव के 22 लोगों का सामाजिक बहिष्कार करने का तुगलकी फरमान सुनाया है। समाज के ठेकेदारों ने बहिष्कृत लोगों का गांव में हुक्का पानी बंद कर दिया है।दरअसल 10 साल पहले एक लड़की ने दूसरे समाज के लड़के के साथ शादी कर ली थी। जिस पर समाज ने लड़की के पिता पर 75 सौ रुपये का अर्थदंड लगाया था। पिता ने वह अर्थ दंड अदा नहीं किया तो उसके साथ-साथ शादी में शामिल अन्य लोगों का भी बहिष्कार कर तुगलकी फरमान सुना दिया गया वो भी 10 साल बाद।
ग्राम पंचायत खुक्सर के डुंगरिया गांव के धनराज पर लड़की का अंतरजातीय विवाह कराने और बाकी के 21 सदस्यों पर उस विवाह में शामिल होने के आरोपों के चलते 28 फरवरी को 25 पंचायतों के मुखियाओं की मौजूदगी में आयोजित महापंचायत में धनराज सहित 22 लोगों को समाज से बाहर करने व गांव में हुक्का पानी बंद करने का बेतुका फरमान जारी किया गया है।
हैरत की बात तो यह है कि महापंचायत के तुगलकी फरमान सप्रमाण लेकर पीड़ित पक्ष जब पुलिस के पास पहुंची तो पुलिस ने कोई कार्रवाई नहीं करते हुये उन्हें न्यायालय जाने की सलाह दे दी। जब पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों से उनका पक्ष जानने की कोशिश की गई तो कोई भी जिम्मेदार इस मामले कैमरे के सामने कुछ भी कहने से बचते नजर आये।
महापंचायत के तुगलकी फरमान के बाद बहिष्कृत परिवार दहशत और खौफ के साये में जीने को मजबूर है। वहीं इस फरमान के कारण तीन लड़कों की शादी टूट गयी है। दरअसल महापंचायत ने जो लिखित फरमान जारी किया है। उसे सामाजिक बहिष्कार का दंश झेल रहे लोगों के सभी रिश्तेदारों और आसपास के गांव में बटवाया गया है।
धनराज और धन्नालाल के बेटों का विवाह आगामी दिनों में होने को था मगर महापंचायत के सदस्यों ने लड़की वालों को नोटिस जारी कर शादी नहीं करने की हिदायत दी जिससे लड़की वालों ने शादी करने से इंकार कर दिया है।
वहीं समाज के ठेकेदार और महापंचायत के आयोजनकर्ता इमरत पेन्द्रो, दलपत शाह मरावी आदि सामाजिक परंपराओं हवाला देकर सामाजिक बहिष्कार को जायज बता रहे हैं।
इनका कहना है कि धनराज की लड़की को नीची जाति के लड़के के साथ आपत्तिजनक स्थिति में दस साल पहले देखा गया था। उसी समय सात गांव की पंचायत ने धनराज पर 75 सौ रुपये का अर्थदंड लगाया था। जिसे देने का वादा कर धनराज ने पूरा नहीं किया। इसलिये दस साल के बाद महापंचायत लगाकर यह निर्णय लिया गया है।
आदिवासी बाहुल्य मंडला जिले में सामाजिक बहिष्कार का यह कोई पहला मामला नहीं है।
दरअसल पुलिस और जिला प्रशासन की उदासीनता के चलते यहां कानून से बढ़कर पंचायतों के फैसलों को तवज्जो दी जाती है, अब वह चाहे सही हो या गलत। ऐसे मामले में जहां तत्काल एक्शन लिया जाना चाहिये, लेकिन पुलिस और प्रशासन ऐसे मामलों में सामाजिक रीत रिवाज का हवाला देकर दखल देने से भी कतराते हैं।
ये भी फरमान सुनाया गया है कि यदि गांव का कोई भी व्यक्ति बहिष्कृत लोगों से मिलते या बात करते हुये पाया जाता है तो उसे 10 हजार रुपये का आर्थिक दंड भुगतना होगा। हैरत की बात तो यह है कि पंचायत का यह फैसला 10 साल पुराने मामले में सामने आया है।पंचायत का तुगलकी फरमान, 22 लोगों का हुक्का-पानी किया बंद मंडला। मंडला जिले की महापंचायत ने खाप पंचायत की तर्ज पर गांव के 22 लोगों का सामाजिक बहिष्कार करने का तुगलकी फरमान सुनाया है। समाज के ठेकेदारों ने बहिष्कृत लोगों का गांव में हुक्का पानी बंद कर दिया है।दरअसल 10 साल पहले एक लड़की ने दूसरे समाज के लड़के के साथ शादी कर ली थी। जिस पर समाज ने लड़की के पिता पर 75 सौ रुपये का अर्थदंड लगाया था। पिता ने वह अर्थ दंड अदा नहीं किया तो उसके साथ-साथ शादी में शामिल अन्य लोगों का भी बहिष्कार कर तुगलकी फरमान सुना दिया गया वो भी 10 साल बाद।
ग्राम पंचायत खुक्सर के डुंगरिया गांव के धनराज पर लड़की का अंतरजातीय विवाह कराने और बाकी के 21 सदस्यों पर उस विवाह में शामिल होने के आरोपों के चलते 28 फरवरी को 25 पंचायतों के मुखियाओं की मौजूदगी में आयोजित महापंचायत में धनराज सहित 22 लोगों को समाज से बाहर करने व गांव में हुक्का पानी बंद करने का बेतुका फरमान जारी किया गया है।
हैरत की बात तो यह है कि महापंचायत के तुगलकी फरमान सप्रमाण लेकर पीड़ित पक्ष जब पुलिस के पास पहुंची तो पुलिस ने कोई कार्रवाई नहीं करते हुये उन्हें न्यायालय जाने की सलाह दे दी। जब पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों से उनका पक्ष जानने की कोशिश की गई तो कोई भी जिम्मेदार इस मामले कैमरे के सामने कुछ भी कहने से बचते नजर आये।
महापंचायत के तुगलकी फरमान के बाद बहिष्कृत परिवार दहशत और खौफ के साये में जीने को मजबूर है। वहीं इस फरमान के कारण तीन लड़कों की शादी टूट गयी है। दरअसल महापंचायत ने जो लिखित फरमान जारी किया है। उसे सामाजिक बहिष्कार का दंश झेल रहे लोगों के सभी रिश्तेदारों और आसपास के गांव में बटवाया गया है।
धनराज और धन्नालाल के बेटों का विवाह आगामी दिनों में होने को था मगर महापंचायत के सदस्यों ने लड़की वालों को नोटिस जारी कर शादी नहीं करने की हिदायत दी जिससे लड़की वालों ने शादी करने से इंकार कर दिया है।
वहीं समाज के ठेकेदार और महापंचायत के आयोजनकर्ता इमरत पेन्द्रो, दलपत शाह मरावी आदि सामाजिक परंपराओं हवाला देकर सामाजिक बहिष्कार को जायज बता रहे हैं।
इनका कहना है कि धनराज की लड़की को नीची जाति के लड़के के साथ आपत्तिजनक स्थिति में दस साल पहले देखा गया था। उसी समय सात गांव की पंचायत ने धनराज पर 75 सौ रुपये का अर्थदंड लगाया था। जिसे देने का वादा कर धनराज ने पूरा नहीं किया। इसलिये दस साल के बाद महापंचायत लगाकर यह निर्णय लिया गया है।
आदिवासी बाहुल्य मंडला जिले में सामाजिक बहिष्कार का यह कोई पहला मामला नहीं है।
दरअसल पुलिस और जिला प्रशासन की उदासीनता के चलते यहां कानून से बढ़कर पंचायतों के फैसलों को तवज्जो दी जाती है, अब वह चाहे सही हो या गलत। ऐसे मामले में जहां तत्काल एक्शन लिया जाना चाहिये, लेकिन पुलिस और प्रशासन ऐसे मामलों में सामाजिक रीत रिवाज का हवाला देकर दखल देने से भी कतराते हैं।
ये भी फरमान सुनाया गया है कि यदि गांव का कोई भी व्यक्ति बहिष्कृत लोगों से मिलते या बात करते हुये पाया जाता है तो उसे 10 हजार रुपये का आर्थिक दंड भुगतना होगा। हैरत की बात तो यह है कि पंचायत का यह फैसला 10 साल पुराने मामले में सामने आया है।पंचायत का तुगलकी फरमान, 22 लोगों का हुक्का-पानी किया बंद मंडला। मंडला जिले की महापंचायत ने खाप पंचायत की तर्ज पर गांव के 22 लोगों का सामाजिक बहिष्कार करने का तुगलकी फरमान सुनाया है। समाज के ठेकेदारों ने बहिष्कृत लोगों का गांव में हुक्का पानी बंद कर दिया है।दरअसल 10 साल पहले एक लड़की ने दूसरे समाज के लड़के के साथ शादी कर ली थी। जिस पर समाज ने लड़की के पिता पर 75 सौ रुपये का अर्थदंड लगाया था। पिता ने वह अर्थ दंड अदा नहीं किया तो उसके साथ-साथ शादी में शामिल अन्य लोगों का भी बहिष्कार कर तुगलकी फरमान सुना दिया गया वो भी 10 साल बाद।
ग्राम पंचायत खुक्सर के डुंगरिया गांव के धनराज पर लड़की का अंतरजातीय विवाह कराने और बाकी के 21 सदस्यों पर उस विवाह में शामिल होने के आरोपों के चलते 28 फरवरी को 25 पंचायतों के मुखियाओं की मौजूदगी में आयोजित महापंचायत में धनराज सहित 22 लोगों को समाज से बाहर करने व गांव में हुक्का पानी बंद करने का बेतुका फरमान जारी किया गया है।
हैरत की बात तो यह है कि महापंचायत के तुगलकी फरमान सप्रमाण लेकर पीड़ित पक्ष जब पुलिस के पास पहुंची तो पुलिस ने कोई कार्रवाई नहीं करते हुये उन्हें न्यायालय जाने की सलाह दे दी। जब पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों से उनका पक्ष जानने की कोशिश की गई तो कोई भी जिम्मेदार इस मामले कैमरे के सामने कुछ भी कहने से बचते नजर आये।
महापंचायत के तुगलकी फरमान के बाद बहिष्कृत परिवार दहशत और खौफ के साये में जीने को मजबूर है। वहीं इस फरमान के कारण तीन लड़कों की शादी टूट गयी है। दरअसल महापंचायत ने जो लिखित फरमान जारी किया है। उसे सामाजिक बहिष्कार का दंश झेल रहे लोगों के सभी रिश्तेदारों और आसपास के गांव में बटवाया गया है।
धनराज और धन्नालाल के बेटों का विवाह आगामी दिनों में होने को था मगर महापंचायत के सदस्यों ने लड़की वालों को नोटिस जारी कर शादी नहीं करने की हिदायत दी जिससे लड़की वालों ने शादी करने से इंकार कर दिया है।
वहीं समाज के ठेकेदार और महापंचायत के आयोजनकर्ता इमरत पेन्द्रो, दलपत शाह मरावी आदि सामाजिक परंपराओं हवाला देकर सामाजिक बहिष्कार को जायज बता रहे हैं।
इनका कहना है कि धनराज की लड़की को नीची जाति के लड़के के साथ आपत्तिजनक स्थिति में दस साल पहले देखा गया था। उसी समय सात गांव की पंचायत ने धनराज पर 75 सौ रुपये का अर्थदंड लगाया था। जिसे देने का वादा कर धनराज ने पूरा नहीं किया। इसलिये दस साल के बाद महापंचायत लगाकर यह निर्णय लिया गया है।
आदिवासी बाहुल्य मंडला जिले में सामाजिक बहिष्कार का यह कोई पहला मामला नहीं है।
दरअसल पुलिस और जिला प्रशासन की उदासीनता के चलते यहां कानून से बढ़कर पंचायतों के फैसलों को तवज्जो दी जाती है, अब वह चाहे सही हो या गलत। ऐसे मामले में जहां तत्काल एक्शन लिया जाना चाहिये, लेकिन पुलिस और प्रशासन ऐसे मामलों में सामाजिक रीत रिवाज का हवाला देकर दखल देने से भी कतराते हैं।
ये भी फरमान सुनाया गया है कि यदि गांव का कोई भी व्यक्ति बहिष्कृत लोगों से मिलते या बात करते हुये पाया जाता है तो उसे 10 हजार रुपये का आर्थिक दंड भुगतना होगा। हैरत की बात तो यह है कि पंचायत का यह फैसला 10 साल पुराने मामले में सामने आया है।
ग्राम पंचायत खुक्सर के डुंगरिया गांव के धनराज पर लड़की का अंतरजातीय विवाह कराने और बाकी के 21 सदस्यों पर उस विवाह में शामिल होने के आरोपों के चलते 28 फरवरी को 25 पंचायतों के मुखियाओं की मौजूदगी में आयोजित महापंचायत में धनराज सहित 22 लोगों को समाज से बाहर करने व गांव में हुक्का पानी बंद करने का बेतुका फरमान जारी किया गया है।
हैरत की बात तो यह है कि महापंचायत के तुगलकी फरमान सप्रमाण लेकर पीड़ित पक्ष जब पुलिस के पास पहुंची तो पुलिस ने कोई कार्रवाई नहीं करते हुये उन्हें न्यायालय जाने की सलाह दे दी। जब पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों से उनका पक्ष जानने की कोशिश की गई तो कोई भी जिम्मेदार इस मामले कैमरे के सामने कुछ भी कहने से बचते नजर आये।
महापंचायत के तुगलकी फरमान के बाद बहिष्कृत परिवार दहशत और खौफ के साये में जीने को मजबूर है। वहीं इस फरमान के कारण तीन लड़कों की शादी टूट गयी है। दरअसल महापंचायत ने जो लिखित फरमान जारी किया है। उसे सामाजिक बहिष्कार का दंश झेल रहे लोगों के सभी रिश्तेदारों और आसपास के गांव में बटवाया गया है।
धनराज और धन्नालाल के बेटों का विवाह आगामी दिनों में होने को था मगर महापंचायत के सदस्यों ने लड़की वालों को नोटिस जारी कर शादी नहीं करने की हिदायत दी जिससे लड़की वालों ने शादी करने से इंकार कर दिया है।
वहीं समाज के ठेकेदार और महापंचायत के आयोजनकर्ता इमरत पेन्द्रो, दलपत शाह मरावी आदि सामाजिक परंपराओं हवाला देकर सामाजिक बहिष्कार को जायज बता रहे हैं।
इनका कहना है कि धनराज की लड़की को नीची जाति के लड़के के साथ आपत्तिजनक स्थिति में दस साल पहले देखा गया था। उसी समय सात गांव की पंचायत ने धनराज पर 75 सौ रुपये का अर्थदंड लगाया था। जिसे देने का वादा कर धनराज ने पूरा नहीं किया। इसलिये दस साल के बाद महापंचायत लगाकर यह निर्णय लिया गया है।
आदिवासी बाहुल्य मंडला जिले में सामाजिक बहिष्कार का यह कोई पहला मामला नहीं है।
दरअसल पुलिस और जिला प्रशासन की उदासीनता के चलते यहां कानून से बढ़कर पंचायतों के फैसलों को तवज्जो दी जाती है, अब वह चाहे सही हो या गलत। ऐसे मामले में जहां तत्काल एक्शन लिया जाना चाहिये, लेकिन पुलिस और प्रशासन ऐसे मामलों में सामाजिक रीत रिवाज का हवाला देकर दखल देने से भी कतराते हैं।
ये भी फरमान सुनाया गया है कि यदि गांव का कोई भी व्यक्ति बहिष्कृत लोगों से मिलते या बात करते हुये पाया जाता है तो उसे 10 हजार रुपये का आर्थिक दंड भुगतना होगा। हैरत की बात तो यह है कि पंचायत का यह फैसला 10 साल पुराने मामले में सामने आया है।पंचायत का तुगलकी फरमान, 22 लोगों का हुक्का-पानी किया बंद मंडला। मंडला जिले की महापंचायत ने खाप पंचायत की तर्ज पर गांव के 22 लोगों का सामाजिक बहिष्कार करने का तुगलकी फरमान सुनाया है। समाज के ठेकेदारों ने बहिष्कृत लोगों का गांव में हुक्का पानी बंद कर दिया है।दरअसल 10 साल पहले एक लड़की ने दूसरे समाज के लड़के के साथ शादी कर ली थी। जिस पर समाज ने लड़की के पिता पर 75 सौ रुपये का अर्थदंड लगाया था। पिता ने वह अर्थ दंड अदा नहीं किया तो उसके साथ-साथ शादी में शामिल अन्य लोगों का भी बहिष्कार कर तुगलकी फरमान सुना दिया गया वो भी 10 साल बाद।
ग्राम पंचायत खुक्सर के डुंगरिया गांव के धनराज पर लड़की का अंतरजातीय विवाह कराने और बाकी के 21 सदस्यों पर उस विवाह में शामिल होने के आरोपों के चलते 28 फरवरी को 25 पंचायतों के मुखियाओं की मौजूदगी में आयोजित महापंचायत में धनराज सहित 22 लोगों को समाज से बाहर करने व गांव में हुक्का पानी बंद करने का बेतुका फरमान जारी किया गया है।
हैरत की बात तो यह है कि महापंचायत के तुगलकी फरमान सप्रमाण लेकर पीड़ित पक्ष जब पुलिस के पास पहुंची तो पुलिस ने कोई कार्रवाई नहीं करते हुये उन्हें न्यायालय जाने की सलाह दे दी। जब पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों से उनका पक्ष जानने की कोशिश की गई तो कोई भी जिम्मेदार इस मामले कैमरे के सामने कुछ भी कहने से बचते नजर आये।
महापंचायत के तुगलकी फरमान के बाद बहिष्कृत परिवार दहशत और खौफ के साये में जीने को मजबूर है। वहीं इस फरमान के कारण तीन लड़कों की शादी टूट गयी है। दरअसल महापंचायत ने जो लिखित फरमान जारी किया है। उसे सामाजिक बहिष्कार का दंश झेल रहे लोगों के सभी रिश्तेदारों और आसपास के गांव में बटवाया गया है।
धनराज और धन्नालाल के बेटों का विवाह आगामी दिनों में होने को था मगर महापंचायत के सदस्यों ने लड़की वालों को नोटिस जारी कर शादी नहीं करने की हिदायत दी जिससे लड़की वालों ने शादी करने से इंकार कर दिया है।
वहीं समाज के ठेकेदार और महापंचायत के आयोजनकर्ता इमरत पेन्द्रो, दलपत शाह मरावी आदि सामाजिक परंपराओं हवाला देकर सामाजिक बहिष्कार को जायज बता रहे हैं।
इनका कहना है कि धनराज की लड़की को नीची जाति के लड़के के साथ आपत्तिजनक स्थिति में दस साल पहले देखा गया था। उसी समय सात गांव की पंचायत ने धनराज पर 75 सौ रुपये का अर्थदंड लगाया था। जिसे देने का वादा कर धनराज ने पूरा नहीं किया। इसलिये दस साल के बाद महापंचायत लगाकर यह निर्णय लिया गया है।
आदिवासी बाहुल्य मंडला जिले में सामाजिक बहिष्कार का यह कोई पहला मामला नहीं है।
दरअसल पुलिस और जिला प्रशासन की उदासीनता के चलते यहां कानून से बढ़कर पंचायतों के फैसलों को तवज्जो दी जाती है, अब वह चाहे सही हो या गलत। ऐसे मामले में जहां तत्काल एक्शन लिया जाना चाहिये, लेकिन पुलिस और प्रशासन ऐसे मामलों में सामाजिक रीत रिवाज का हवाला देकर दखल देने से भी कतराते हैं।
ये भी फरमान सुनाया गया है कि यदि गांव का कोई भी व्यक्ति बहिष्कृत लोगों से मिलते या बात करते हुये पाया जाता है तो उसे 10 हजार रुपये का आर्थिक दंड भुगतना होगा। हैरत की बात तो यह है कि पंचायत का यह फैसला 10 साल पुराने मामले में सामने आया है।पंचायत का तुगलकी फरमान, 22 लोगों का हुक्का-पानी किया बंद मंडला। मंडला जिले की महापंचायत ने खाप पंचायत की तर्ज पर गांव के 22 लोगों का सामाजिक बहिष्कार करने का तुगलकी फरमान सुनाया है। समाज के ठेकेदारों ने बहिष्कृत लोगों का गांव में हुक्का पानी बंद कर दिया है।दरअसल 10 साल पहले एक लड़की ने दूसरे समाज के लड़के के साथ शादी कर ली थी। जिस पर समाज ने लड़की के पिता पर 75 सौ रुपये का अर्थदंड लगाया था। पिता ने वह अर्थ दंड अदा नहीं किया तो उसके साथ-साथ शादी में शामिल अन्य लोगों का भी बहिष्कार कर तुगलकी फरमान सुना दिया गया वो भी 10 साल बाद।
ग्राम पंचायत खुक्सर के डुंगरिया गांव के धनराज पर लड़की का अंतरजातीय विवाह कराने और बाकी के 21 सदस्यों पर उस विवाह में शामिल होने के आरोपों के चलते 28 फरवरी को 25 पंचायतों के मुखियाओं की मौजूदगी में आयोजित महापंचायत में धनराज सहित 22 लोगों को समाज से बाहर करने व गांव में हुक्का पानी बंद करने का बेतुका फरमान जारी किया गया है।
हैरत की बात तो यह है कि महापंचायत के तुगलकी फरमान सप्रमाण लेकर पीड़ित पक्ष जब पुलिस के पास पहुंची तो पुलिस ने कोई कार्रवाई नहीं करते हुये उन्हें न्यायालय जाने की सलाह दे दी। जब पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों से उनका पक्ष जानने की कोशिश की गई तो कोई भी जिम्मेदार इस मामले कैमरे के सामने कुछ भी कहने से बचते नजर आये।
महापंचायत के तुगलकी फरमान के बाद बहिष्कृत परिवार दहशत और खौफ के साये में जीने को मजबूर है। वहीं इस फरमान के कारण तीन लड़कों की शादी टूट गयी है। दरअसल महापंचायत ने जो लिखित फरमान जारी किया है। उसे सामाजिक बहिष्कार का दंश झेल रहे लोगों के सभी रिश्तेदारों और आसपास के गांव में बटवाया गया है।
धनराज और धन्नालाल के बेटों का विवाह आगामी दिनों में होने को था मगर महापंचायत के सदस्यों ने लड़की वालों को नोटिस जारी कर शादी नहीं करने की हिदायत दी जिससे लड़की वालों ने शादी करने से इंकार कर दिया है।
वहीं समाज के ठेकेदार और महापंचायत के आयोजनकर्ता इमरत पेन्द्रो, दलपत शाह मरावी आदि सामाजिक परंपराओं हवाला देकर सामाजिक बहिष्कार को जायज बता रहे हैं।
इनका कहना है कि धनराज की लड़की को नीची जाति के लड़के के साथ आपत्तिजनक स्थिति में दस साल पहले देखा गया था। उसी समय सात गांव की पंचायत ने धनराज पर 75 सौ रुपये का अर्थदंड लगाया था। जिसे देने का वादा कर धनराज ने पूरा नहीं किया। इसलिये दस साल के बाद महापंचायत लगाकर यह निर्णय लिया गया है।
आदिवासी बाहुल्य मंडला जिले में सामाजिक बहिष्कार का यह कोई पहला मामला नहीं है।
दरअसल पुलिस और जिला प्रशासन की उदासीनता के चलते यहां कानून से बढ़कर पंचायतों के फैसलों को तवज्जो दी जाती है, अब वह चाहे सही हो या गलत। ऐसे मामले में जहां तत्काल एक्शन लिया जाना चाहिये, लेकिन पुलिस और प्रशासन ऐसे मामलों में सामाजिक रीत रिवाज का हवाला देकर दखल देने से भी कतराते हैं।
ये भी फरमान सुनाया गया है कि यदि गांव का कोई भी व्यक्ति बहिष्कृत लोगों से मिलते या बात करते हुये पाया जाता है तो उसे 10 हजार रुपये का आर्थिक दंड भुगतना होगा। हैरत की बात तो यह है कि पंचायत का यह फैसला 10 साल पुराने मामले में सामने आया है।पंचायत का तुगलकी फरमान, 22 लोगों का हुक्का-पानी किया बंद मंडला। मंडला जिले की महापंचायत ने खाप पंचायत की तर्ज पर गांव के 22 लोगों का सामाजिक बहिष्कार करने का तुगलकी फरमान सुनाया है। समाज के ठेकेदारों ने बहिष्कृत लोगों का गांव में हुक्का पानी बंद कर दिया है।दरअसल 10 साल पहले एक लड़की ने दूसरे समाज के लड़के के साथ शादी कर ली थी। जिस पर समाज ने लड़की के पिता पर 75 सौ रुपये का अर्थदंड लगाया था। पिता ने वह अर्थ दंड अदा नहीं किया तो उसके साथ-साथ शादी में शामिल अन्य लोगों का भी बहिष्कार कर तुगलकी फरमान सुना दिया गया वो भी 10 साल बाद।
ग्राम पंचायत खुक्सर के डुंगरिया गांव के धनराज पर लड़की का अंतरजातीय विवाह कराने और बाकी के 21 सदस्यों पर उस विवाह में शामिल होने के आरोपों के चलते 28 फरवरी को 25 पंचायतों के मुखियाओं की मौजूदगी में आयोजित महापंचायत में धनराज सहित 22 लोगों को समाज से बाहर करने व गांव में हुक्का पानी बंद करने का बेतुका फरमान जारी किया गया है।
हैरत की बात तो यह है कि महापंचायत के तुगलकी फरमान सप्रमाण लेकर पीड़ित पक्ष जब पुलिस के पास पहुंची तो पुलिस ने कोई कार्रवाई नहीं करते हुये उन्हें न्यायालय जाने की सलाह दे दी। जब पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों से उनका पक्ष जानने की कोशिश की गई तो कोई भी जिम्मेदार इस मामले कैमरे के सामने कुछ भी कहने से बचते नजर आये।
महापंचायत के तुगलकी फरमान के बाद बहिष्कृत परिवार दहशत और खौफ के साये में जीने को मजबूर है। वहीं इस फरमान के कारण तीन लड़कों की शादी टूट गयी है। दरअसल महापंचायत ने जो लिखित फरमान जारी किया है। उसे सामाजिक बहिष्कार का दंश झेल रहे लोगों के सभी रिश्तेदारों और आसपास के गांव में बटवाया गया है।
धनराज और धन्नालाल के बेटों का विवाह आगामी दिनों में होने को था मगर महापंचायत के सदस्यों ने लड़की वालों को नोटिस जारी कर शादी नहीं करने की हिदायत दी जिससे लड़की वालों ने शादी करने से इंकार कर दिया है।
वहीं समाज के ठेकेदार और महापंचायत के आयोजनकर्ता इमरत पेन्द्रो, दलपत शाह मरावी आदि सामाजिक परंपराओं हवाला देकर सामाजिक बहिष्कार को जायज बता रहे हैं।
इनका कहना है कि धनराज की लड़की को नीची जाति के लड़के के साथ आपत्तिजनक स्थिति में दस साल पहले देखा गया था। उसी समय सात गांव की पंचायत ने धनराज पर 75 सौ रुपये का अर्थदंड लगाया था। जिसे देने का वादा कर धनराज ने पूरा नहीं किया। इसलिये दस साल के बाद महापंचायत लगाकर यह निर्णय लिया गया है।
आदिवासी बाहुल्य मंडला जिले में सामाजिक बहिष्कार का यह कोई पहला मामला नहीं है।
दरअसल पुलिस और जिला प्रशासन की उदासीनता के चलते यहां कानून से बढ़कर पंचायतों के फैसलों को तवज्जो दी जाती है, अब वह चाहे सही हो या गलत। ऐसे मामले में जहां तत्काल एक्शन लिया जाना चाहिये, लेकिन पुलिस और प्रशासन ऐसे मामलों में सामाजिक रीत रिवाज का हवाला देकर दखल देने से भी कतराते हैं।
ये भी फरमान सुनाया गया है कि यदि गांव का कोई भी व्यक्ति बहिष्कृत लोगों से मिलते या बात करते हुये पाया जाता है तो उसे 10 हजार रुपये का आर्थिक दंड भुगतना होगा। हैरत की बात तो यह है कि पंचायत का यह फैसला 10 साल पुराने मामले में सामने आया है।
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