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छत्तीसगढ़ के बिलासपुर से आ रही एक खबर डॉक्टरी पेशे को शर्मसार करने वाली तो है ही,देश के लिए भी सर झुकने वाली ही बात है। आ रही खबरों के अनुसार तीरंदाजी में देश का नाम रोशन करने वाली राष्ट्रीय खिलाड़ी शांति धांधी की मौत के बाद उसका शव अपोलो अस्पताल के मैनेजमेंट ने सिर्फ इसलिए देने से मना कर दिया, क्योंकि उसका 2 लाख रुपये का बिल बकाया था। नौबत यहां तक आ गई खिलाड़ी की बहन को खुद को गिरवी रखने की पेशकश करनी पड़ी
प्राप्त जानकारी के अनुसार शांति धांधी की लीवर फेल होने के कारण अपोलो अस्पताल में मौत हो ई थी। जिसका शव लेने के लिए अस्पताल प्रबंधन परिवार को 2 लाख रूपये का बिल थमाया। खिलाड़ी के परिवार ने असमर्थता जताई तो अपोलो अस्पताल प्रबंधन ने तीरंदाजी की राष्ट्रीय खिलाड़ी का शव देने से मना कर दिया।
परिवार द्वारा कई मिन्नतें करने के बाद भी जब प्रबंधन नहीं माना तो मृतका की बहन ने डॉक्टरों के सामने रोते हुये कहा कि पैसे के बदले में जब तक चाहो, मुझे रख लो, मुझे गिरवी रख लो, मुझसे जो काम चाहो करवा लो लेकिन मेरी बहन की शव दे दो। उसे यहां पर बंधक मत बनाओ। हमारे पास पैसा नहीं है। हमारा तो सब कुछ इलाज में लुट चुका है। इसके बाद प्रबंधन ने रकम जमा करने की बात लिखित में लेकर शव परिजनों को सौंपा।
कैसे हुई मौत खिलाडी की
बताया जा रहा है कि कोरबा के मुड़ापार के रहने वाली 18 साल की शांति धांधी का लीवर फेल हो गया था। एसईसीएल कोरबा अस्पताल से उसे 14 मार्च को अपोलो रेफर किया गया। 14 मार्च से उसका इलाज अपोलो में चल रहा था। शनिवार की रात करीब एक बजे उसकी मौत हो गई। इलाज के दौरान उसकी बहन सावित्री धांधी और पड़ोस में रहने वाला उसका भाई कैलाश साहू साथ थे।
क्या है मामला?
जब उन्हें मौत का पता चला तो उन्होंने रात में ही परिजनों को सूचना दे दी। अपोलो प्रबंधन ने परिजनों से बिल का हिसाब करने के लिए कहा। सावित्री और कैलाश बिल पूछने के लिए पहुंचे तो उन्हें बताया गया कि 2 लाख 19 हजार रुपए और जमा करना है। इस पर परिजनों ने कहा वे उतना पैसा नहीं दे सकते।
बिल क्लीयरेंस नहीं होने पर प्रबंधन ने शव को मरच्युरी में भिजवा दिया. दोनों भाई-बहन ने रविवार सुबह तक अलग-अलग जगहों से पैसे का इंतजाम करने की कोशिश की, लेकिन हो न सका। इसके बाद बहन ने जब खुद को गिरवी रखने की बात कही जा प्रबंधन ने शव सौंपा गया। वहीं भाई कैलाश का आरोप है कि अपोलो में इलाज नहीं होने के बाद भी जबरिया मरीज को वहां पर रखकर बिल बढ़ाया जा रहा था।
छत्तीसगढ़ के बिलासपुर से आ रही एक खबर डॉक्टरी पेशे को शर्मसार करने वाली तो है ही,देश के लिए भी सर झुकने वाली ही बात है। आ रही खबरों के अनुसार तीरंदाजी में देश का नाम रोशन करने वाली राष्ट्रीय खिलाड़ी शांति धांधी की मौत के बाद उसका शव अपोलो अस्पताल के मैनेजमेंट ने सिर्फ इसलिए देने से मना कर दिया, क्योंकि उसका 2 लाख रुपये का बिल बकाया था। नौबत यहां तक आ गई खिलाड़ी की बहन को खुद को गिरवी रखने की पेशकश करनी पड़ी
प्राप्त जानकारी के अनुसार शांति धांधी की लीवर फेल होने के कारण अपोलो अस्पताल में मौत हो ई थी। जिसका शव लेने के लिए अस्पताल प्रबंधन परिवार को 2 लाख रूपये का बिल थमाया। खिलाड़ी के परिवार ने असमर्थता जताई तो अपोलो अस्पताल प्रबंधन ने तीरंदाजी की राष्ट्रीय खिलाड़ी का शव देने से मना कर दिया।
परिवार द्वारा कई मिन्नतें करने के बाद भी जब प्रबंधन नहीं माना तो मृतका की बहन ने डॉक्टरों के सामने रोते हुये कहा कि पैसे के बदले में जब तक चाहो, मुझे रख लो, मुझे गिरवी रख लो, मुझसे जो काम चाहो करवा लो लेकिन मेरी बहन की शव दे दो। उसे यहां पर बंधक मत बनाओ। हमारे पास पैसा नहीं है। हमारा तो सब कुछ इलाज में लुट चुका है। इसके बाद प्रबंधन ने रकम जमा करने की बात लिखित में लेकर शव परिजनों को सौंपा।
कैसे हुई मौत खिलाडी की
बताया जा रहा है कि कोरबा के मुड़ापार के रहने वाली 18 साल की शांति धांधी का लीवर फेल हो गया था। एसईसीएल कोरबा अस्पताल से उसे 14 मार्च को अपोलो रेफर किया गया। 14 मार्च से उसका इलाज अपोलो में चल रहा था। शनिवार की रात करीब एक बजे उसकी मौत हो गई। इलाज के दौरान उसकी बहन सावित्री धांधी और पड़ोस में रहने वाला उसका भाई कैलाश साहू साथ थे।
क्या है मामला?
जब उन्हें मौत का पता चला तो उन्होंने रात में ही परिजनों को सूचना दे दी। अपोलो प्रबंधन ने परिजनों से बिल का हिसाब करने के लिए कहा। सावित्री और कैलाश बिल पूछने के लिए पहुंचे तो उन्हें बताया गया कि 2 लाख 19 हजार रुपए और जमा करना है। इस पर परिजनों ने कहा वे उतना पैसा नहीं दे सकते।
बिल क्लीयरेंस नहीं होने पर प्रबंधन ने शव को मरच्युरी में भिजवा दिया. दोनों भाई-बहन ने रविवार सुबह तक अलग-अलग जगहों से पैसे का इंतजाम करने की कोशिश की, लेकिन हो न सका। इसके बाद बहन ने जब खुद को गिरवी रखने की बात कही जा प्रबंधन ने शव सौंपा गया। वहीं भाई कैलाश का आरोप है कि अपोलो में इलाज नहीं होने के बाद भी जबरिया मरीज को वहां पर रखकर बिल बढ़ाया जा रहा था।
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