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प्रदेश में नौकरशाही हावी,नहीं सुनते प्रदेश के मुखिया की।
100 करोड़ देने के बाद भी नहीं सुधरी पेय जल वयवस्था।
भोपाल। चाहे कांग्रेस की सरकार हो या भाजपा की सरकार दोनों ही सरकारों द्वारा एक लम्बे समय से इस प्रदेश की जनता को पेयजल की समस्या से मुक्ति दिलाने के लिये करोड़ों-करोड़ रुपये पानी की तरह बहा दिये लेकिन आज भी प्रदेश की जनता को शुद्ध पेयजल नसीब नहीं हो पा रहा है इसके पीछे जहां सरकार जिम्मेदार है तो वहीं राज्य र्मे सार्वजिनक तालाबों कुओं और बावडिय़ों को अतिक्रमणकारियों द्वारा सरकारी संरक्षण में दफन करने की नीति भी कम जिम्मेदार नहीं है, यह सरकार भले ही कांग्रेसी शासनकाल के दौरान बिजली पानी और सड़क की समस्या से जूझ रही प्रदेश की जनता को मुक्ति दिलाने के वायदे के साथ सत्ता पर काबिज हुई हो लेकिन इन १२ वर्षों बाद आज भी यह स्थिति है कि प्रदेश की आधी से ज्यादा आबादी में जल संकट को लेकर हाहाकार मचा हुआ है और यही स्थिति रही तो आने वाले समय में लोगों को भले ही पानी नहीं मिले लेकिन पानी को लेकर खून खराबा की स्थिति जरूर निर्मित हो सकती है, हालांकि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान द्वारा इस समस्या से जूझ रहे प्रदेशवासियों को राहत दिलाने के लिये पीएचई विभाग को १०० करोड़ रुपये की स्वीकृति की थी, मगर मुख्यमंत्री के कहने से क्या होता है यह सर्वविदित है कि राज्य में नौकरशाही हावी है और वह जो चाहती है वह करके दिखा देती है, जिसका जीता-जागता उदाहरण है कैबिनेट को गुमराह कर अपने चहेते एमजी चौबे को सेवानिवृत्ति के बाद भी लगातार पांचवीं बार नियुक्ति दिलाने की कोशिश करना इस बात के संकेत देता है कि राज्य में वल्लभ भवन में बैठे अधिकारी मुख्यमंत्री की सुनते नहीं हैं और वह जो चाहते हैं वह करके दिखा देते हैं ऐसा ही काम वित्त विभाग ने पिछले दिनों कर दिखाया, मुख्यमंत्री के द्वारा पीएचई विभाग को पानी की समस्या के निराकरण के लिये १०० करोड़ रुपये देने के आदेश के बावजूद भी वित्त विभाग में बैठे अधिकारियों ने उनके आदेश को धता दिखा दिया इससे यह साफ जाहिर होता है कि मुख्यमंत्री भले ही राज्य की जनता की चिंता करते हों लेकिन वल्लभ भवन में बैठे अधिकारियों के सामने राज्य की जनता नहीं बल्कि अपने हितों की कुछ ज्यादा चिंता है, मामला जो भी हो लेकिन यह जरूर है कि इस समय राज्य में चहुंओर पानी के संकट को लेकर हाहाकार मची हुई है फिर चाहे फिर वह बुंदेलखंड हो मालवा या आदिवासी जिले बड़वानी, अलीराजपुर, धार, झाबुआ या फिर ग्वालियर-चंबल संभाग हो अथवा महाकौशल का कुछ क्षेत्र वहां पानी को लेकर अब संघर्ष की स्थिति बनती जा रही है जिसके चलते प्रदेश की आधी से अधिक आबादी प्रदूषित नदियों और तालाबों से एक-एक बूंद पानी की जुगाड़ में लगे हैं। बुंदेलखण्ड के टीकमगढ़ में तो यह स्थिति है कि पानी की चोरी रोकने के लिए टीकमगढ़ नगर पालिका ने जामनी नदी पर बंदूकधारी तैनात कर रखे हैं जो पानी की पहरेदारी कर रहे हैं। यही स्थिति प्रदेश के सागर संभाग के पांच जिलों की है जहां एक करोड़ से ज्यादा रहवासियों के सामने प्यास बुझाने की समस्या मुंह बायें खड़ी है। राज्य के रायसेन, सीहोर, राजगढ़, विदिशा, होशंगाबाद के साथ-साथ बुंदेलखण्ड के चंबल संभाग में भी जलसंकट की विकराल स्थिति बनी हुई है तो आदिवासी जिले झाबुआ, बड़वानी, धार, खरगोन भी इस स्थिति से अछूते नहीं हैं। अलीराजपुर में जल संकट से जूझ रहे सैंकड़ों लोगों ने कलेक्टर कार्यालय पहुंचकर हंगामा खड़ा कर दिया और पेयजल उपलब्ध कराने की मांग कर दी। यह स्थिति अलीराजपुर की नहीं बल्कि पूरे प्रदेश की बन रही है यदि समय रहते जल संकट की समस्या का हल नहीं हुआ तो राज्य में पानी को लेकर खून-खराबे की स्थिति तो बनेगी ही तो प्रदेश में इस मुद्दे को लेकर कानून व्यवस्था भी बिगड़ सकती है।
प्रदेश में नौकरशाही हावी,नहीं सुनते प्रदेश के मुखिया की।
100 करोड़ देने के बाद भी नहीं सुधरी पेय जल वयवस्था।
भोपाल। चाहे कांग्रेस की सरकार हो या भाजपा की सरकार दोनों ही सरकारों द्वारा एक लम्बे समय से इस प्रदेश की जनता को पेयजल की समस्या से मुक्ति दिलाने के लिये करोड़ों-करोड़ रुपये पानी की तरह बहा दिये लेकिन आज भी प्रदेश की जनता को शुद्ध पेयजल नसीब नहीं हो पा रहा है इसके पीछे जहां सरकार जिम्मेदार है तो वहीं राज्य र्मे सार्वजिनक तालाबों कुओं और बावडिय़ों को अतिक्रमणकारियों द्वारा सरकारी संरक्षण में दफन करने की नीति भी कम जिम्मेदार नहीं है, यह सरकार भले ही कांग्रेसी शासनकाल के दौरान बिजली पानी और सड़क की समस्या से जूझ रही प्रदेश की जनता को मुक्ति दिलाने के वायदे के साथ सत्ता पर काबिज हुई हो लेकिन इन १२ वर्षों बाद आज भी यह स्थिति है कि प्रदेश की आधी से ज्यादा आबादी में जल संकट को लेकर हाहाकार मचा हुआ है और यही स्थिति रही तो आने वाले समय में लोगों को भले ही पानी नहीं मिले लेकिन पानी को लेकर खून खराबा की स्थिति जरूर निर्मित हो सकती है, हालांकि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान द्वारा इस समस्या से जूझ रहे प्रदेशवासियों को राहत दिलाने के लिये पीएचई विभाग को १०० करोड़ रुपये की स्वीकृति की थी, मगर मुख्यमंत्री के कहने से क्या होता है यह सर्वविदित है कि राज्य में नौकरशाही हावी है और वह जो चाहती है वह करके दिखा देती है, जिसका जीता-जागता उदाहरण है कैबिनेट को गुमराह कर अपने चहेते एमजी चौबे को सेवानिवृत्ति के बाद भी लगातार पांचवीं बार नियुक्ति दिलाने की कोशिश करना इस बात के संकेत देता है कि राज्य में वल्लभ भवन में बैठे अधिकारी मुख्यमंत्री की सुनते नहीं हैं और वह जो चाहते हैं वह करके दिखा देते हैं ऐसा ही काम वित्त विभाग ने पिछले दिनों कर दिखाया, मुख्यमंत्री के द्वारा पीएचई विभाग को पानी की समस्या के निराकरण के लिये १०० करोड़ रुपये देने के आदेश के बावजूद भी वित्त विभाग में बैठे अधिकारियों ने उनके आदेश को धता दिखा दिया इससे यह साफ जाहिर होता है कि मुख्यमंत्री भले ही राज्य की जनता की चिंता करते हों लेकिन वल्लभ भवन में बैठे अधिकारियों के सामने राज्य की जनता नहीं बल्कि अपने हितों की कुछ ज्यादा चिंता है, मामला जो भी हो लेकिन यह जरूर है कि इस समय राज्य में चहुंओर पानी के संकट को लेकर हाहाकार मची हुई है फिर चाहे फिर वह बुंदेलखंड हो मालवा या आदिवासी जिले बड़वानी, अलीराजपुर, धार, झाबुआ या फिर ग्वालियर-चंबल संभाग हो अथवा महाकौशल का कुछ क्षेत्र वहां पानी को लेकर अब संघर्ष की स्थिति बनती जा रही है जिसके चलते प्रदेश की आधी से अधिक आबादी प्रदूषित नदियों और तालाबों से एक-एक बूंद पानी की जुगाड़ में लगे हैं। बुंदेलखण्ड के टीकमगढ़ में तो यह स्थिति है कि पानी की चोरी रोकने के लिए टीकमगढ़ नगर पालिका ने जामनी नदी पर बंदूकधारी तैनात कर रखे हैं जो पानी की पहरेदारी कर रहे हैं। यही स्थिति प्रदेश के सागर संभाग के पांच जिलों की है जहां एक करोड़ से ज्यादा रहवासियों के सामने प्यास बुझाने की समस्या मुंह बायें खड़ी है। राज्य के रायसेन, सीहोर, राजगढ़, विदिशा, होशंगाबाद के साथ-साथ बुंदेलखण्ड के चंबल संभाग में भी जलसंकट की विकराल स्थिति बनी हुई है तो आदिवासी जिले झाबुआ, बड़वानी, धार, खरगोन भी इस स्थिति से अछूते नहीं हैं। अलीराजपुर में जल संकट से जूझ रहे सैंकड़ों लोगों ने कलेक्टर कार्यालय पहुंचकर हंगामा खड़ा कर दिया और पेयजल उपलब्ध कराने की मांग कर दी। यह स्थिति अलीराजपुर की नहीं बल्कि पूरे प्रदेश की बन रही है यदि समय रहते जल संकट की समस्या का हल नहीं हुआ तो राज्य में पानी को लेकर खून-खराबे की स्थिति तो बनेगी ही तो प्रदेश में इस मुद्दे को लेकर कानून व्यवस्था भी बिगड़ सकती है।
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