अवधेश पुरोहित @ Toc News
भोपाल। वैसे लोकतंत्र में शासन चलाने के लिये चुने हुए जनप्रतिनिधियों की जवाबदेही होती है, भारतीय संविधान में नौकरशाही की भी अपनी एक भूमिका है और उसी भूमिका और अपने दायित्वों का निर्वाहन करने के लिये लोकतांत्रिक व्यवस्था में जनता द्वारा चुने हुए प्रतिनिधियों की मंशा अनुसार नौकरशाह अपनी जवाबदारी का निर्वाहन करता है।
भारतीय संविधान में देश के नौकरशाहों में विभागीय मंत्रियों के आदेशों और निर्देशों की अवहेलना और अनदेखी करना इस समय एक प्रवृत्ति सी बन गई है और इस प्रवृत्ति का यह आलम है कि यह अब सुरसा की तरह फैल गई है। वैसे एक स्वास्थ्य लोकतंत्र के लिए नौकरशाहों की यह प्रवृत्ति काफी खतरनाक भी साबित हो सकती है। हालांकि नौकरशाही भी इस देश के आम नागरिकों की तरह उनकी हैसियत होती है लोकतंत्र में किसी भी सरकार के कार्यकाल के दौरान भ्रष्टाचार का पनपना और नौकरशाहों द्वारा गलत निर्णय लेना लोकतंत्र में जनता के लिए घातक साबित हो सकते हैं। ऐसे ही मुद्दे को लेकर मध्यप्रदेश में इन दिनों चारों ओर बहस सी चल पड़ी है और इस बहस में यह प्रमुख मुद्दा है कि प्रदेश की नौकरशाही में प्रशासनिक अराजकता का माहौल बनता जा रहा है यदि समय रहते इस पर पाबंदी नहीं लगाई गई तो इसके परिणाम घातक साबित हो कसते हैं,
मजे की बात यह है कि जहां एक ओर प्रदेश में प्रशासनिक अराजकता का माहौल बन रहा है तो वहीं चाल, चरित्र और चेहरे के नाम पर पहचानी जाने वाली भाजपा के विधायक और मंत्रियों के भी बोल बदलते जा रहे हैं, मजे की बात यह है कि राज्य में इस समय चारों ओर प्रदेश की नौकरशाही को लेकर सत्ताधीशों से लेकर आमजनता और आम जनता से लेकर संघ तक इस मुद्दे को लेकर काफी चिंतित हैं तो वहीं विधायकों और मंत्रियों को बेलगाम अफसर कोई तवज्जो नहीं दे रहे हैं जिसके चलते ऐसेे माहौल में जब कभ मंत्रियों और विधायकों की प्रतिष्ठा पर बन आती है तो उनके बोल बिगडऩे लगते हैं, यही नहीं इस हालत में वह नौकरशाही के खिलाफ कुछ भी बोलते नजर आ रहे हैं।
प्रदेश में अफसरशाही को लेकर मंत्रियों, विधायकों जनप्रतिनिधियों के बिगड़े बोल के कारण राज्य के कर्मचारी कस्बे और जिलों से लेकर भोपाल तक इस बात का दबाव बनाने में लग जाते हैं , जिसकी वजह से मंत्री, विधायक या फिर जनप्रतिनिधि के साथ-साथ पार्टी के नेताओं पर प्रशासनिक अधिकारी इतना दबाव बनाते हैं कि आखिरकार उन्हें अपने श्रीमुख से बोले बोलों के लिये ख्ेाद तक व्यक्त करना पड़ता है, वैसे लोकतंत्र में जनता के द्वारा चुने गये जनप्रतिनिधि और प्रशासनिक अधिकारियों में तालमेल होना जरूरी है लेकिन पता नहीं वह क्या कारण है कि राज्य में पिछले कुछ दिनों से जहां प्रशासनिक अराजकता का माहौल बनता जा रहा है तो वहीं मंत्रियों, विधायकों और राज नेताओं के बोल भी बेपटरी होते जा रहे हैं।
जिसकी वजह से राज्य में चारों ओर अराजकता का माहौल बना हुआ है, यही वजह है कि राज्य में पिछले कुछ दिनों से अफसर और कर्मचारी शासकीय योजनाओं का लाभ सही हितग्राही को न पहुंचाकर जनप्रतिनिधियों के दबाव में कुछ भी करन की प्रवृत्ति पनप रही है, जिसकी वजह से राज्य में चाहे आदिवासी बाहुल्य जले हों या अन्य जिले यहां के रहवासियों को ना तो समय पर राशन मिल पा रहा है और न ही किसानेां को लाख मुख्यमंत्री से लेकर मंत्री तक यह दावा करने के बाद कि खसरा खतौनी उन्हेें मुफ्त दी जाएगी लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है तो वहीं किसानों की भूमि के नामांतरण के मामले में पटवारी से लेकर तहसीलदार तक लक्ष्मी दर्शन के फेर में लगा रहता है, ऐसी स्थिति में जहां प्रदेश में प्रशासनिक अराजकता का माहौल बनता जा रहा है और मंत्रियों और जनप्रतिनिधियों के बोल बिगड़ते जा रहे हैं।
तो वहीं कर्मचारियों के अपने बचाव के लिये कर्मचारी संगठनों में अपने कर्मचारिायों को बचाने के लिये दबाव की स्थिति भी निर्मित हो रही है। जिसकी वजह से प्रद ेश का माहौल बिगड़ता जा रहा है। राज्य में ऐसी भी निर्मित हुई है कि क र्मचारी संगठन के दबाव में ही भाजपा के प्रदेश संगठन के मुखिया नंदकुमार चौहान को भाजपा विधायक रामेश्वर शर्मा और तत्कालीन सीईओ पीसी शर्मा के बीच पार्टी दफ्तर में सुलह करानी पड़ी, तो वहीं सतना में बिजली बिल के मुद्दे को लेकर भाजपा विधायक शंकरलाल तिवारी द्वारा भी विद्युत विभाग अफसरों के दबाव में क्षमा याचना तक करनी पड़ी।
वैसे लोकतंत्र में अफसरों और कर्मचारियों को राजनीतिक से दूर रखने की परम्परा है, लेकिन पता नहीं राज्य में इस समय जनप्रतिनिधियों और अफसरों के बीच ऐसा घालमेल का दौर चला जिसके चलते अफसर और कर्मचारियों को राजनीति से दूर रहने की परम्परा लगभग शून्य सी हो गई है और अब राजनेता और अफसर एक ही घाट पर बैठकर शेर और बकरी की तरह गलबहैयां करते नजर आ रहे हैं। शायद यही वजह है कि राजनेताओं और कर्मचारियों व अधिकारियों की राजनीति से दूर रहने की परम्परा खत्म सी हो गई है, उसी वजह से ऐसा दिखाई देने लगा है कि राज्य में प्रशासनिक अराजकता का माहौल दिखाई दे रहा है।
भोपाल। वैसे लोकतंत्र में शासन चलाने के लिये चुने हुए जनप्रतिनिधियों की जवाबदेही होती है, भारतीय संविधान में नौकरशाही की भी अपनी एक भूमिका है और उसी भूमिका और अपने दायित्वों का निर्वाहन करने के लिये लोकतांत्रिक व्यवस्था में जनता द्वारा चुने हुए प्रतिनिधियों की मंशा अनुसार नौकरशाह अपनी जवाबदारी का निर्वाहन करता है।
भारतीय संविधान में देश के नौकरशाहों में विभागीय मंत्रियों के आदेशों और निर्देशों की अवहेलना और अनदेखी करना इस समय एक प्रवृत्ति सी बन गई है और इस प्रवृत्ति का यह आलम है कि यह अब सुरसा की तरह फैल गई है। वैसे एक स्वास्थ्य लोकतंत्र के लिए नौकरशाहों की यह प्रवृत्ति काफी खतरनाक भी साबित हो सकती है। हालांकि नौकरशाही भी इस देश के आम नागरिकों की तरह उनकी हैसियत होती है लोकतंत्र में किसी भी सरकार के कार्यकाल के दौरान भ्रष्टाचार का पनपना और नौकरशाहों द्वारा गलत निर्णय लेना लोकतंत्र में जनता के लिए घातक साबित हो सकते हैं। ऐसे ही मुद्दे को लेकर मध्यप्रदेश में इन दिनों चारों ओर बहस सी चल पड़ी है और इस बहस में यह प्रमुख मुद्दा है कि प्रदेश की नौकरशाही में प्रशासनिक अराजकता का माहौल बनता जा रहा है यदि समय रहते इस पर पाबंदी नहीं लगाई गई तो इसके परिणाम घातक साबित हो कसते हैं,
मजे की बात यह है कि जहां एक ओर प्रदेश में प्रशासनिक अराजकता का माहौल बन रहा है तो वहीं चाल, चरित्र और चेहरे के नाम पर पहचानी जाने वाली भाजपा के विधायक और मंत्रियों के भी बोल बदलते जा रहे हैं, मजे की बात यह है कि राज्य में इस समय चारों ओर प्रदेश की नौकरशाही को लेकर सत्ताधीशों से लेकर आमजनता और आम जनता से लेकर संघ तक इस मुद्दे को लेकर काफी चिंतित हैं तो वहीं विधायकों और मंत्रियों को बेलगाम अफसर कोई तवज्जो नहीं दे रहे हैं जिसके चलते ऐसेे माहौल में जब कभ मंत्रियों और विधायकों की प्रतिष्ठा पर बन आती है तो उनके बोल बिगडऩे लगते हैं, यही नहीं इस हालत में वह नौकरशाही के खिलाफ कुछ भी बोलते नजर आ रहे हैं।
प्रदेश में अफसरशाही को लेकर मंत्रियों, विधायकों जनप्रतिनिधियों के बिगड़े बोल के कारण राज्य के कर्मचारी कस्बे और जिलों से लेकर भोपाल तक इस बात का दबाव बनाने में लग जाते हैं , जिसकी वजह से मंत्री, विधायक या फिर जनप्रतिनिधि के साथ-साथ पार्टी के नेताओं पर प्रशासनिक अधिकारी इतना दबाव बनाते हैं कि आखिरकार उन्हें अपने श्रीमुख से बोले बोलों के लिये ख्ेाद तक व्यक्त करना पड़ता है, वैसे लोकतंत्र में जनता के द्वारा चुने गये जनप्रतिनिधि और प्रशासनिक अधिकारियों में तालमेल होना जरूरी है लेकिन पता नहीं वह क्या कारण है कि राज्य में पिछले कुछ दिनों से जहां प्रशासनिक अराजकता का माहौल बनता जा रहा है तो वहीं मंत्रियों, विधायकों और राज नेताओं के बोल भी बेपटरी होते जा रहे हैं।
जिसकी वजह से राज्य में चारों ओर अराजकता का माहौल बना हुआ है, यही वजह है कि राज्य में पिछले कुछ दिनों से अफसर और कर्मचारी शासकीय योजनाओं का लाभ सही हितग्राही को न पहुंचाकर जनप्रतिनिधियों के दबाव में कुछ भी करन की प्रवृत्ति पनप रही है, जिसकी वजह से राज्य में चाहे आदिवासी बाहुल्य जले हों या अन्य जिले यहां के रहवासियों को ना तो समय पर राशन मिल पा रहा है और न ही किसानेां को लाख मुख्यमंत्री से लेकर मंत्री तक यह दावा करने के बाद कि खसरा खतौनी उन्हेें मुफ्त दी जाएगी लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है तो वहीं किसानों की भूमि के नामांतरण के मामले में पटवारी से लेकर तहसीलदार तक लक्ष्मी दर्शन के फेर में लगा रहता है, ऐसी स्थिति में जहां प्रदेश में प्रशासनिक अराजकता का माहौल बनता जा रहा है और मंत्रियों और जनप्रतिनिधियों के बोल बिगड़ते जा रहे हैं।
तो वहीं कर्मचारियों के अपने बचाव के लिये कर्मचारी संगठनों में अपने कर्मचारिायों को बचाने के लिये दबाव की स्थिति भी निर्मित हो रही है। जिसकी वजह से प्रद ेश का माहौल बिगड़ता जा रहा है। राज्य में ऐसी भी निर्मित हुई है कि क र्मचारी संगठन के दबाव में ही भाजपा के प्रदेश संगठन के मुखिया नंदकुमार चौहान को भाजपा विधायक रामेश्वर शर्मा और तत्कालीन सीईओ पीसी शर्मा के बीच पार्टी दफ्तर में सुलह करानी पड़ी, तो वहीं सतना में बिजली बिल के मुद्दे को लेकर भाजपा विधायक शंकरलाल तिवारी द्वारा भी विद्युत विभाग अफसरों के दबाव में क्षमा याचना तक करनी पड़ी।
वैसे लोकतंत्र में अफसरों और कर्मचारियों को राजनीतिक से दूर रखने की परम्परा है, लेकिन पता नहीं राज्य में इस समय जनप्रतिनिधियों और अफसरों के बीच ऐसा घालमेल का दौर चला जिसके चलते अफसर और कर्मचारियों को राजनीति से दूर रहने की परम्परा लगभग शून्य सी हो गई है और अब राजनेता और अफसर एक ही घाट पर बैठकर शेर और बकरी की तरह गलबहैयां करते नजर आ रहे हैं। शायद यही वजह है कि राजनेताओं और कर्मचारियों व अधिकारियों की राजनीति से दूर रहने की परम्परा खत्म सी हो गई है, उसी वजह से ऐसा दिखाई देने लगा है कि राज्य में प्रशासनिक अराजकता का माहौल दिखाई दे रहा है।
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