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प्रेस काउंसिल ऑफ़ इंडिया की एक स्टडी ने कहा कि, 'पत्रकारों की हत्याओं के पीछे जिनका हाथ होता है वे बिना सज़ा के बच कर निकल जाते हैं
विश्व में इस साल 48 पत्रकारों की हत्या की गई और सीरिया लगातार पांचवे साल पत्रकारिता के लिहाज से सबसे खतरनाक देशों में शीर्ष पर बना हुआ है। एक अध्ययन से यह जानकारी मिली है।
अमेरिका के गैर-लाभकारी संगठन ‘कमेटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट'(CPJ) द्वारा सोमवार को जारी किए गए अध्ययन के नतीजों से पता चलता है कि केवल सीरिया में 14 पत्रकार मारे गए। पत्रकारों के लिए अन्य खतरनाक देश भी मध्य पूर्व के ही रहे।
इराक, यमन, अफगानिस्तान, सोमालिया और लीबिया ने इस सूची में दूसरे से छठा स्थान हासिल किया है। निर्धारित उद्देश्य के साथ मारे गए 48 पत्रकारों में 26 संघर्ष या गोलीबारी में मारे गए, 18 की हत्या कर दी गई और 3 खतरनाक कार्य के दौरान मारे गए। रिपोर्ट में एक अन्य की स्थिति का उल्लेख नहीं किया गया है। इसके अतिरिक्त अज्ञात इरादों के तहत 27 पत्रकारों की हत्या हुई है।
हाल ही में कमेटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट्स ने 42 पन्नों की एक विशेष रिपोर्ट में भारत में पत्रकारों की हत्या के बारे में कहा था कि भारत में भ्रष्टाचार कवर करने वाले पत्रकारों की जान को खतरा हो सकता है। कमिटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट्स की 42 पन्नों की इस विशेष रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में रिपोर्टरों को काम के दौरान पूरी सुरक्षा अभी भी नहीं मिल पाती है।
इसमें कहा गया, “1992 के बाद से भारत में 27 ऐसे मामले दर्ज हुए हैं जब पत्रकारों का उनके काम के सिलसिले में क़त्ल किया गया। लेकिन किसी एक भी मामले में आरोपियों को सजा नहीं हो सकी है”।
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रिपोर्ट के अनुसार इन 27 में 50% से ज़्यादा पत्रकार भ्रष्टाचार संबंधी मामलों पर खबरें करते थे। प्रेस फ्रीडम के नाम से भी जानी जाने वाली इस संस्था ने वर्ष 2011-2015 के बीच तीन भारतीय पत्रकारों जागेंद्र सिंह, अक्षय सिंह और उमेश राजपूत की मृत्यु का ज़िक्र किया है।
कमिटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट्स की इस रिपोर्ट के पहले, वर्ष 2015 में प्रेस काउंसिल ऑफ़ इंडिया की एक स्टडी ने कहा था कि, ‘पत्रकारों की हत्याओं के पीछे जिनका कथित हाथ होता है वे बिना सज़ा के बच कर निकल जाते हैं’।
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