राकेश दुबे // प्रतिदिन ब्लाग
Toc News
यह सच है कि राष्ट्रपति जी ने सरकार द्वारा पेश अध्यादेश पर हस्ताक्षर कर दिए है ,पर देश को अभी ठीक से नहीं पता कि पुराने नोटों के बारे में जारी नए अध्यादेश के पीछे असल कारण क्या हैं? एकाएक इसकी जरूरत क्यों पड़ गई, और वे क्या दबाव थे, जिनमें ऐसा अध्यादेश लाना जरूरी हो गया था? बुधवार को केंद्रीय मंत्रिमंडल ने उस अध्यादेश को मंजूरी दी थी,
जिसके अनुसार अगर ३१ मार्च, २०१७ के बाद किसी के पास ५०० और १००० रुपये के दस से ज्यादा पुराने नोट मिलते हैं, तो उस पर जुर्माना लगाया जा सकता है |और उसे जेल भी भेजा जा सकता है। इसका एक कारण तो यह समझ में आता है कि सरकार सिर्फ इतने भर से संतुष्ट नहीं होना चाहती है कि जिन लोगों के पास काला धन है, वह नोटबंदी के बाद रद्दी हो जाए। वह चाहती है कि इसके लिए कुछ अतिरिक्त दंड का प्रावधान भी हो। हालांकि, वे सचमुच दंडित हो पाएंगे, अभी यह कहना थोड़ा मुश्किल है।
पुराने नोटों का मूल्य वैसे भी खत्म हो चुका होगा और अगर उन्हें अपने पास रखना भी अपराध हो जाता है, तो लोग किसी न किसी तरह से उनसे पीछा छुड़ा लेंगे। भले ही उन्हें इसे जला देना पड़े, कूड़े में फेंकना पड़े, या नाली में बहा देना पड़े। यह जरूर है कि इस कानून की चपेट में कुछ वे गरीब लोग आ सकते हैं, जो किसी लालच या उम्मीद में इन्हें कूड़े से बटोर लाए हों। यह भी कहा जा रहा है कि इससे पुलिस के पास निरपराध लोगों को फंसाने व प्रताड़ित करने का एक नया तरीका आ जाएगा।
यह अध्यादेश कई तरह से हैरत में डालता है। जिन नोटों का चलन बंद कर दिया गया है, और जिन्हें अब रद्दी का कागज घोषित कर दिया गया है, उन्हें रखने को अपराध घोषित किया जाना क्यों जरूरी था? इसी सवाल के चलते इन दिनों सोशल मीडिया पर यह चुटकुला आम हो गया है कि अब रद्दी को रखने पर भी सजा हो सकती है। सवाल यह भी है कि सिर्फ ५०० और १००० के पुराने नोट रखना ही अपराध क्यों है?
क्या ऐसा कानून उन नोटों या सिक्कों के लिए नहीं होना चाहिए, जो बहुत पहले ही बंद कर दिए गए थे? पुराने नोट कौतूहल का विषय होते हैं, कुछ लोगों के लिए ये दिखावे की चीज भी होते हैं, हो सकता है कि कुछ लोग इनका इस्तेमाल अपने काले अतीत का बखान करने के लिए करें। लेकिन क्या यह बेहतर नहीं होगा कि कानून ऐसी बेमतलब की चीजों पर ध्यान देने की बजाय उन चीजों पर ध्यान दे, जिन पर सक्रियता इस समय ज्यादा जरूरी है?
दस पुराने नोट अपने पास रखने की छूट इसलिए दी गई है, क्योंकि कुछ लोगों को पुराने नोट संग्रह करने का शौक होता है। सरकार नहीं चाहती कि अध्यादेश के चक्कर में ऐसे लोग भी बेवजह परेशानी में पड़ जाएं। सरकार की इस अच्छी मंशा को समझा जा सकता है, लेकिन यहीं यह भी लगता है कि हमारा सरकारी तंत्र नोटों के संग्रह के शौक को पूरी तरह नहीं समझ पाया। पुराने नोट सिर्फ शौकीन लोगों के संग्रह में नहीं होते, बल्कि इस शौक का पूरा एक बाजार होता है और उसका अच्छा-खासा व्यापार होता है।
जाहिर है, जो इस बाजार और व्यापार में सक्रिय हैं, वे चाहेंगे कि इस वक्त ऐसे नोटों का स्टॉक जमा कर लें और भविष्य में ज्यादा मुनाफे से बेचें। पर अब वे यह नहीं कर सकेंगे, वरना सजा के हकदार होंगे। अगर पुराने नोट रखने पर सजा न होती, तो शायद वे दुकानों पर पुड़िया बनाने और बच्चों के व्यापार व मोनोपोली जैसे खेलों में काम आते। पर अब ये लोग ऐसा नहीं कर सकेंगे, बिन यह जाने कि इस अध्यादेश की जरूरत क्यों आन पड़ी थी? पुराने नोटों के दुरुपयोग की बाजार में क्या वाकई कोई आशंका थी, जिससे बिना अध्यादेश के निपटा नहीं जा सकता था?
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यह सच है कि राष्ट्रपति जी ने सरकार द्वारा पेश अध्यादेश पर हस्ताक्षर कर दिए है ,पर देश को अभी ठीक से नहीं पता कि पुराने नोटों के बारे में जारी नए अध्यादेश के पीछे असल कारण क्या हैं? एकाएक इसकी जरूरत क्यों पड़ गई, और वे क्या दबाव थे, जिनमें ऐसा अध्यादेश लाना जरूरी हो गया था? बुधवार को केंद्रीय मंत्रिमंडल ने उस अध्यादेश को मंजूरी दी थी,
जिसके अनुसार अगर ३१ मार्च, २०१७ के बाद किसी के पास ५०० और १००० रुपये के दस से ज्यादा पुराने नोट मिलते हैं, तो उस पर जुर्माना लगाया जा सकता है |और उसे जेल भी भेजा जा सकता है। इसका एक कारण तो यह समझ में आता है कि सरकार सिर्फ इतने भर से संतुष्ट नहीं होना चाहती है कि जिन लोगों के पास काला धन है, वह नोटबंदी के बाद रद्दी हो जाए। वह चाहती है कि इसके लिए कुछ अतिरिक्त दंड का प्रावधान भी हो। हालांकि, वे सचमुच दंडित हो पाएंगे, अभी यह कहना थोड़ा मुश्किल है।
पुराने नोटों का मूल्य वैसे भी खत्म हो चुका होगा और अगर उन्हें अपने पास रखना भी अपराध हो जाता है, तो लोग किसी न किसी तरह से उनसे पीछा छुड़ा लेंगे। भले ही उन्हें इसे जला देना पड़े, कूड़े में फेंकना पड़े, या नाली में बहा देना पड़े। यह जरूर है कि इस कानून की चपेट में कुछ वे गरीब लोग आ सकते हैं, जो किसी लालच या उम्मीद में इन्हें कूड़े से बटोर लाए हों। यह भी कहा जा रहा है कि इससे पुलिस के पास निरपराध लोगों को फंसाने व प्रताड़ित करने का एक नया तरीका आ जाएगा।
यह अध्यादेश कई तरह से हैरत में डालता है। जिन नोटों का चलन बंद कर दिया गया है, और जिन्हें अब रद्दी का कागज घोषित कर दिया गया है, उन्हें रखने को अपराध घोषित किया जाना क्यों जरूरी था? इसी सवाल के चलते इन दिनों सोशल मीडिया पर यह चुटकुला आम हो गया है कि अब रद्दी को रखने पर भी सजा हो सकती है। सवाल यह भी है कि सिर्फ ५०० और १००० के पुराने नोट रखना ही अपराध क्यों है?
क्या ऐसा कानून उन नोटों या सिक्कों के लिए नहीं होना चाहिए, जो बहुत पहले ही बंद कर दिए गए थे? पुराने नोट कौतूहल का विषय होते हैं, कुछ लोगों के लिए ये दिखावे की चीज भी होते हैं, हो सकता है कि कुछ लोग इनका इस्तेमाल अपने काले अतीत का बखान करने के लिए करें। लेकिन क्या यह बेहतर नहीं होगा कि कानून ऐसी बेमतलब की चीजों पर ध्यान देने की बजाय उन चीजों पर ध्यान दे, जिन पर सक्रियता इस समय ज्यादा जरूरी है?
दस पुराने नोट अपने पास रखने की छूट इसलिए दी गई है, क्योंकि कुछ लोगों को पुराने नोट संग्रह करने का शौक होता है। सरकार नहीं चाहती कि अध्यादेश के चक्कर में ऐसे लोग भी बेवजह परेशानी में पड़ जाएं। सरकार की इस अच्छी मंशा को समझा जा सकता है, लेकिन यहीं यह भी लगता है कि हमारा सरकारी तंत्र नोटों के संग्रह के शौक को पूरी तरह नहीं समझ पाया। पुराने नोट सिर्फ शौकीन लोगों के संग्रह में नहीं होते, बल्कि इस शौक का पूरा एक बाजार होता है और उसका अच्छा-खासा व्यापार होता है।
जाहिर है, जो इस बाजार और व्यापार में सक्रिय हैं, वे चाहेंगे कि इस वक्त ऐसे नोटों का स्टॉक जमा कर लें और भविष्य में ज्यादा मुनाफे से बेचें। पर अब वे यह नहीं कर सकेंगे, वरना सजा के हकदार होंगे। अगर पुराने नोट रखने पर सजा न होती, तो शायद वे दुकानों पर पुड़िया बनाने और बच्चों के व्यापार व मोनोपोली जैसे खेलों में काम आते। पर अब ये लोग ऐसा नहीं कर सकेंगे, बिन यह जाने कि इस अध्यादेश की जरूरत क्यों आन पड़ी थी? पुराने नोटों के दुरुपयोग की बाजार में क्या वाकई कोई आशंका थी, जिससे बिना अध्यादेश के निपटा नहीं जा सकता था?
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