Saturday, November 4, 2017

सम्प्रदायवाद से परे है भोग और मोक्ष को एक साथ देने वाला शिवयोग : डा. रवीन्द्र अरजरिया

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सहज संवाद / डा. रवीन्द्र अरजरिया
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जीवन में भौतिक सुख और अध्यात्मक आनन्द को एक साथ पाना बेहद कठिन है। वैदिक ग्रंथों से लेकर विभिन्न धार्मिक निर्देशों तक में त्याग को प्रमुखता दी गई है। समग्र सृष्टि के कल्याणार्थ स्वयं को समर्पित करने से ही परमानन्द की प्राप्ति की बातें विभिन्न धार्मिक उपदेशकों द्वारा की जाती हैं। 

तपस्या के कठिन मार्ग पर चलकर ही अभीष्ट के रूप में सत्य की प्राप्ति को आदर्श रूप में स्थापित किया गया है। ऐसे में कठिनाई भरी पगदण्डी को तिलांजलि देकर लोग भौतिक सुख के चरम की प्राप्ति के सरपट रास्ते पर भागने लगे हैं। यह अलग बात है कि वह मृगमारीचिका जीवन के अन्तिम क्षणों तक भ्रम के मायाजाल से व्यक्ति को निकलने ही नहीं देती। विचारों का प्रवाह शारीरिक सुख से लेकर अध्यात्मिक आनन्द तक एक साथ चल रहा था। 
इसी उधेडबुन में शाम को प्रेस क्लब पहुंचा। वहां मित्रों के साथ जिग्यासाओं का जिक्र किया तो शोभित शर्मा ने  गुरुग्राम में होने वाले शिवयोग शिविर को रेखांकित करते हुए अवधूत बाबा शिवानन्द जी के बारे में बताया। अब हमारी जिग्यासा ने कुछ और तेजी पकडी। शिवयोग, उसके वर्तमान स्वरूप और आयोजित होने वाले शिविर की जानकारी एकत्रित की। शिविर के  आयोजक-मण्डल से जुडे अनुपम भारद्वाज से फोन पर चर्चा हुई। उन्होंने सहजता का परिचय देते हुए आमने-सामने की मुलाकात हेतु इच्छा व्यक्त की। अंधा क्या चाहे, दो आंखें। हमने समय और स्थान निर्धारित किया। 
निर्धारण के अनुरूप हम दौनों ही पहुंच गये। औपचारिकताओं के आदान-प्रदान के बाद जिग्यासाओं ने अंगडाई लेना शुरू कर दिया। फ्रांस की एक मल्टीनेशनल कम्पनी में महाप्रबंधक के पद पर कार्यरत अनुपम ने अपने जीवन को खुली किताब की तरह सामने रख दिया। बचपन से ही अध्यात्म का आकर्षण, स्वामी मुक्तानन्द द्वारा रचित साहित्य का निरंतर अध्ययन और फिर उन्हीं से दीक्षा लेने को शब्द चित्रों में प्रस्तुत करने के बाद उन्होंने कहा कि बीते दिनों की यादें जब धूमिल पडने लगती हैं तब वर्तमान स्वयं ही उन्हें नये रूप में प्रस्तुत कर देता है। ऐसा ही हमारे साथ भी हुआ। पैर का दर्द, सिर की पीडा और विभिन्न व्याधियों का एक साथ आक्रमण हमारे शरीर पर हुआ। 
बडे से बडे संस्थानों में इलाज करवाया। अन्य उपचार पद्धतियों का भी सहारा लिया परन्तु राहत के नाम पर कुछ भी हाथ नहीं लगा। परिणाम तो ढाक के तीन पात से आगे बढने को तैयार ही नहीं हो रहे थे। तभी हमारे अंकल, जो उत्तर प्रदेश में विद्युत विभाग के महाप्रबंधक है, ने हमें अपनी तात्कालिक पद स्थापना स्थल मेरठ में बुलाया। वे शिवयोग की संजीवनी-विद्या सीख कर आये थे तथा प्रयोग करने के लिए उत्सुक थे। हम भी इस परा-विज्ञान के हीलिंग सिस्टम को समझना चाहते थे। सो मेरठ पहुंच गये। उन्होंने 15 मिनिट हीलिंग दी। 
अविश्वसनीय चमत्कार घटित हुआ। जो दर्द विभिन्न परीक्षणों के आधार पर निर्धारित की गई महंगी दवाइयों से नहीं गया, वह शिव योग के एक नये साधक द्वारा दी गई हीलिंग से चला गया। इंजीनियरिंग का विद्यार्थी होने के नाते हमने कभी कही-सुनी बातों पर विश्वास नहीं किया था, परन्तु व्यक्तिगत चैन को कैसे झुठला सकता था। मस्तिष्क ने पूरा शरीर खंगाल डाला, कहीं भी दर्द का नाम-ओ-निशान नहीं मिला। हमने उन्हें बीच में ही टोकते हुए कहा कि इस व्यक्तिगत अनुभव को आपके मस्तिष्क में जमे तार्किक संस्कारों ने कैसे स्वीकारा। 
उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा कि इस घटना के बाद हमने अपनी तार्किकता हाशिये पर रख दी हो, ऐसा भी नहीं है। मन ही मन में अवधूत बाबा शिवानन्द जी का शिविर करके शिवयोग को स्वयं जानने का संकल्प लिया। देश की राजधानी के तालकटोरा स्टेडियम में दिसम्बर, 2002 को आयोजित होने वाले शिविर में भाग लिया और वह सब कुछ पा लिया जो हमें चाहिये था। जीवन पूर्णता से भर गया। कार्य में सरलता, संबंधों में मधुरता और संस्कारों में शुद्धता का समावेश हो गया। वे कहीं खो से गये थे। 
उनके मुख ने निकलने वाले शब्द किसी गहरे कुंये में गूंजते स्वर बन गये थे। उन्हें योग की गहराई से निकालते हुए हमने एक वाक्य में शिव योग को परिभाषित करने के लिए कहा तो उन्होंने जबाब दिया कि शिव यानी अनन्त और योग अर्थात जोड, इस प्रकार हम अनन्त की शक्ति से जुडने को ही शिवयोग कहेंगे। यह सम्प्रदायवाद से परे भोग और मोक्ष को एक साथ देने वाली प्रक्रिया है जिसमें कर्मकाण्ड की जटिलतायें, असाध्य आसनों की बाध्यतायें और दुरीह पद्धति का नितांत अभाव है। यही कारण है कि सभी सम्प्रदाय के लोग एक साथ इसे स्वीकार कर रहे हैं और अनन्त की शक्ति से आनन्दित हो रहे हैं। 
तभी हमारे फोन की घंटी बज उठी। आफिस का फोन था। आवश्यक कार्य से तत्काल आने का निवेदन किया गया। कर्तव्य की बाध्यता ने अवरोध बनकर अध्यात्म की निर्झरणी से बाहर निकलने को विवस कर दिया। मन में उपजी जिग्यासा काफी हद तक शांत हो चुकी थी। सो हमने पुनः मिलने के आश्वासन के साथ एक दूसरे से विदा ली। इस बार बस इतना ही। अगले सप्ताह एक नये मुद्दे के साथ फिर मुलाकात होगी। तब तक के लिए खुदा हाफिज।  
Ravindra Arjariya
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