TOC NEWS // लेखक: डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'
हम सब जानते हैं कि विवाह के लिये एक विषम लिंगी की जरूरत होती है। लेकिन विवाह की सफलता के लिये यह पर्याप्त नहीं है। विवाह की सफलता के लिये, आपको ऐसा साथी तलाशना चाहिये, जो मानसिक और शारीरिक रूप से आपके अनुकूल हो। लेकिन क्या एक रूढिवादी समाज में यह सम्भव है? बिलकुल नहीं है। बल्कि असम्भव है। इसका अभिप्राय यह भी है कि, यदि आप अपने अनुकूल साथी तलाश नहीं कर सकते तो, जीवनभर इसकी वांछित कीमत चुकाते रहने को तैयार रहें।
इस विषय में वैवाहिक विवाद सलाहकार विशेषज्ञों का कहना है कि-क्या आप में सामाजिक रूढियों को तोड़ने का साहस है? ताकि आप अपने लिये उपयुक्त तथा अनुकूल वैवाहिक साथी तलाश कर सकें। जिसके बदले ताउम्र खुश रह सकें। या आप समाज की रूढियों के सामने नतमस्तक हो जायें। जिसके प्रतिफल में, आप जीवनभर खुद ही खुद की हत्या करते रहेंगे। सब कुछ आप पर निर्भर करता है, कि आखिर आप अपने लिये चाहते क्या हैं?
मैं इसमें इतना और जोड़ना चाहूंगा कि, रूढिवादी समाजों में, दोनों ही स्थितियों में धोखा होने का अंदेशा बना रहेगा। हां, धोखे की सम्भावना कम या अधिक हो सकती है। क्योंकि रूढ़िवादी समाजों में, विवाह जैसा अति महत्वपूर्ण निर्णय लेने से पहले, भावी वैवाहिक साथियों में, एक दूसरे से खुलकर बात करने की परम्परा नहीं रही है।
इस कारण, वे एक-दूसरे के भूतकाल, आदतों, विचारों और यौन व्यवहारों के बारे में खुलकर बात करने का साहस नहीं जुटा पाते हैं। इसके अलावा, संयोग तथा नियती के निर्णयों का कभी नहीं टाला जा सकता। बहुत से लोगों को ऐसी सोच के परिणाम भी भोगने पड़ते हैं।
केवल इतना ही नहीं, बल्कि टूटते परिवारों, बढते तलाकों और अनेक आत्महत्या प्रकरणों के पीछे भी, कहीं न कहीं-बेमेल विवाह, यौन असंतोष, विवाहेत्तर सम्बन्ध या विवाहपूर्व यौन सम्बन्धों में विवाहोपरान्त भी लिप्तता और पुरुषों द्वारा स्त्रियों के रूढिगत शर्मीले स्वभाव तथा उनके विलम्बित चर्मोत्कर्ष यौनांद स्वभाव को नहीं समझना की अक्षमता, साथ ही साथ स्त्रियों द्वारा पुरुषों के अवसादपूर्व यौनव्यवहारों को नहीं समझना भी मूल कारण होते हैं। साथ ही साथ पुरुषों की एक तरफा यौन आनंद प्राप्त करने की स्वार्थी प्रवृत्ति को चुपचाप सहने का स्त्रियों का स्वाभाव।
हम सब जानते हैं कि विवाह के लिये एक विषम लिंगी की जरूरत होती है। लेकिन विवाह की सफलता के लिये यह पर्याप्त नहीं है। विवाह की सफलता के लिये, आपको ऐसा साथी तलाशना चाहिये, जो मानसिक और शारीरिक रूप से आपके अनुकूल हो। लेकिन क्या एक रूढिवादी समाज में यह सम्भव है? बिलकुल नहीं है। बल्कि असम्भव है। इसका अभिप्राय यह भी है कि, यदि आप अपने अनुकूल साथी तलाश नहीं कर सकते तो, जीवनभर इसकी वांछित कीमत चुकाते रहने को तैयार रहें।
इस विषय में वैवाहिक विवाद सलाहकार विशेषज्ञों का कहना है कि-क्या आप में सामाजिक रूढियों को तोड़ने का साहस है? ताकि आप अपने लिये उपयुक्त तथा अनुकूल वैवाहिक साथी तलाश कर सकें। जिसके बदले ताउम्र खुश रह सकें। या आप समाज की रूढियों के सामने नतमस्तक हो जायें। जिसके प्रतिफल में, आप जीवनभर खुद ही खुद की हत्या करते रहेंगे। सब कुछ आप पर निर्भर करता है, कि आखिर आप अपने लिये चाहते क्या हैं?
मैं इसमें इतना और जोड़ना चाहूंगा कि, रूढिवादी समाजों में, दोनों ही स्थितियों में धोखा होने का अंदेशा बना रहेगा। हां, धोखे की सम्भावना कम या अधिक हो सकती है। क्योंकि रूढ़िवादी समाजों में, विवाह जैसा अति महत्वपूर्ण निर्णय लेने से पहले, भावी वैवाहिक साथियों में, एक दूसरे से खुलकर बात करने की परम्परा नहीं रही है।
इस कारण, वे एक-दूसरे के भूतकाल, आदतों, विचारों और यौन व्यवहारों के बारे में खुलकर बात करने का साहस नहीं जुटा पाते हैं। इसके अलावा, संयोग तथा नियती के निर्णयों का कभी नहीं टाला जा सकता। बहुत से लोगों को ऐसी सोच के परिणाम भी भोगने पड़ते हैं।
केवल इतना ही नहीं, बल्कि टूटते परिवारों, बढते तलाकों और अनेक आत्महत्या प्रकरणों के पीछे भी, कहीं न कहीं-बेमेल विवाह, यौन असंतोष, विवाहेत्तर सम्बन्ध या विवाहपूर्व यौन सम्बन्धों में विवाहोपरान्त भी लिप्तता और पुरुषों द्वारा स्त्रियों के रूढिगत शर्मीले स्वभाव तथा उनके विलम्बित चर्मोत्कर्ष यौनांद स्वभाव को नहीं समझना की अक्षमता, साथ ही साथ स्त्रियों द्वारा पुरुषों के अवसादपूर्व यौनव्यवहारों को नहीं समझना भी मूल कारण होते हैं। साथ ही साथ पुरुषों की एक तरफा यौन आनंद प्राप्त करने की स्वार्थी प्रवृत्ति को चुपचाप सहने का स्त्रियों का स्वाभाव।
इस विषय को सरलता से समझने के लिये, हमें विभिन्न स्वास्थ्य वैब साइट्स पर यौन विशेषज्ञों से पूछे जाने वाले सवालों पर विचार करना चाहिये। जिनमें हमें युवा पीढी के यौन-विषयक सवालों, जिज्ञासाओं, और भ्रान्तियों को समझना चाहिये। साथ ही साथ विवाहित लोगों की, वैवाहिक समस्याएं, उनका यौन असन्तोष, यौनिक पीड़ा और यौन दुर्व्यवहार भी इस विषय को समझने में सहायक हो सकते हैं।
सबसे पहली बात तो यह है कि रूढीवादी समाज में स्थापित धारणाओं तथा असुरक्षा की भावना के चलते स्त्री और पुरुष का संसार बिलकुल अलग-अलग होता है। किन्हीं अपवादों को छोड़ दिया जाये तो, वैवाहिक रिश्ते में बंधने से पहले और विवाह के बाद भी, यौन-विषयक मामलों में एक दूसरे के प्रति ईमानदारी होती ही नहीं। बल्कि यह कहना अधिक सही होगा कि उनके मध्य निष्कपटता हो ही नहीं सकती। इसका एक बड़ा कारण यह है, उनके मन में कुछ पाने की तुलना में सबकुछ खो देने का डर अधिक होता है।
सबसे पहली बात तो यह है कि रूढीवादी समाज में स्थापित धारणाओं तथा असुरक्षा की भावना के चलते स्त्री और पुरुष का संसार बिलकुल अलग-अलग होता है। किन्हीं अपवादों को छोड़ दिया जाये तो, वैवाहिक रिश्ते में बंधने से पहले और विवाह के बाद भी, यौन-विषयक मामलों में एक दूसरे के प्रति ईमानदारी होती ही नहीं। बल्कि यह कहना अधिक सही होगा कि उनके मध्य निष्कपटता हो ही नहीं सकती। इसका एक बड़ा कारण यह है, उनके मन में कुछ पाने की तुलना में सबकुछ खो देने का डर अधिक होता है।
अत: रूढिवादी समाज में, विवाहित लोगों को यथास्थिति से समझौता करके, जैसे-तैसे वैवाहिक रिश्ते को निभाना अधिक सुरक्षित लगता है।
डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'
दाम्पत्य विवाद सलाहकार
हेल्थ वाट्सएप: 8561955619
मोबाईन नम्बर: 9875066111
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