" पुरवाई "
~~~~~
पिछले पखवाडे गर्मी थी ,
अब तो पुरवाई आई है।
ठंडी पानी वाली सौगातें ,
अपनी डलिया में लाई है।
पूरब से आने वाली हवा ,
सच पूरब क्या इतना ठंडा ?
अपने पललू में ढेर लिये ,
ठंडी हवा जो लायी हो ।
हमने तो सुना पूरब में सिर्फ ,
सूरज का ही डेरा है ।
जिसने पिछले कुछ दिवसों से ,
तप्त हवा को बखेरा है।
ओंठों पर चमक आयी अब ,
जब आया पुरवाई झोका ।
नभ जो कल आग बखेरा था,
अब श्याम मेघ का डेरा है।
पुरवाई की पद आहट से ,
तृण भी अब झम झम झूम रहे ।
जिनके तन कल तक मुरझे थे ,
अब होले होले झूम रहे।
पिछली गर्मी तड्पाहट में
पुरवाई का सुख ऐसा है।
जैसे भटकी नैया को ,
कोई सहारा मिलता है।
एक एक दिन भारी पीछेमें ,
तांडव था गर्म हवाओं का ।
पद्चाप तुम्हारी पाने को ,
जन जन भी अति व्याकुल था।
तडपन मन की यों भारी थी ,
ज्यों इन्तजार की हों घडिया।
पल पल ऐसा दुःख देता था ,
जैसे कारा में कैदी हो ।
पुरवाई की ठंडी वेगों ,
दूर करो तप तांडव को ।
फैलाओ मुक्त हवा ठंडी ,
आनन्द करो इस मंडलमें।
आनन्द
🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳
~~~~~
पिछले पखवाडे गर्मी थी ,
अब तो पुरवाई आई है।
ठंडी पानी वाली सौगातें ,
अपनी डलिया में लाई है।
पूरब से आने वाली हवा ,
सच पूरब क्या इतना ठंडा ?
अपने पललू में ढेर लिये ,
ठंडी हवा जो लायी हो ।
हमने तो सुना पूरब में सिर्फ ,
सूरज का ही डेरा है ।
जिसने पिछले कुछ दिवसों से ,
तप्त हवा को बखेरा है।
ओंठों पर चमक आयी अब ,
जब आया पुरवाई झोका ।
नभ जो कल आग बखेरा था,
अब श्याम मेघ का डेरा है।
पुरवाई की पद आहट से ,
तृण भी अब झम झम झूम रहे ।
जिनके तन कल तक मुरझे थे ,
अब होले होले झूम रहे।
पिछली गर्मी तड्पाहट में
पुरवाई का सुख ऐसा है।
जैसे भटकी नैया को ,
कोई सहारा मिलता है।
एक एक दिन भारी पीछेमें ,
तांडव था गर्म हवाओं का ।
पद्चाप तुम्हारी पाने को ,
जन जन भी अति व्याकुल था।
तडपन मन की यों भारी थी ,
ज्यों इन्तजार की हों घडिया।
पल पल ऐसा दुःख देता था ,
जैसे कारा में कैदी हो ।
पुरवाई की ठंडी वेगों ,
दूर करो तप तांडव को ।
फैलाओ मुक्त हवा ठंडी ,
आनन्द करो इस मंडलमें।
आनन्द
🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳
No comments:
Post a Comment