लेखक: अरुण पटेल
Represent by - Toc News
सत्ताधारी दल भाजपा 2018 के विधानसभा चुनाव के बाद प्रदेश में चौथी बार भगवाई सूर्योदय के लिए अभी से चुनावी मोड में आ गई है। वहीं कांग्रेस भी अब धीरे-धीरे तीन दशक से उसका जो सूर्यास्त हुआ है उसे सूर्योदय में बदलने के लिए पूरी एकजुटता से चुनावी समर में उतरने की रणनीति अंदरखाने बनाने लगी है। ऐसे में एक सवाल यह उठता है कि क्या 2018 के विधानसभा चुनाव आते-आते तक दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल के नेतृत्व में आम आदमी पार्टी मध्यप्रदेश में कोई बड़ी चुनौती इन दोनों परम्परागत दलों के लिए खड़ी करते हुए इनका खेल बिगाड़ पाने की स्थिति में आ जाएगी। वैसे इन दिनों आम आदमी पार्टी में जिस तरह की उठापटक चल रही है और अपनों को ही निपटाने की साजिशें हो रही हैं उसके बाद इस पार्टी के भविष्य को लेकर संदेह पैदा हुआ है। इन विपरीत परिस्थितियों में भी यदि केजरीवाल के नेतृत्व में आम आदमी पार्टी पंजाब चुनाव में बेहतर प्रदर्शन कर पाई और उसने गुजरात व गोवा में अपना जलवा दिखा दिया तो फिर यह 2018 के लिए भाजपा और कांग्रेस दोनों के लिए मध्यप्रदेश में भी खतरे की घंटी होगी।
जहां तक भाजपा का सवाल है प्रदेश अध्यक्ष नंदकुमार सिंह चौहान ने आखिरकार लम्बी ऊहापोह के बाद अपनी टीम की घोषणा कर दी लेकिन इसमें अधिकांश अनजान चेहरों को जगह मिली है। वैसे दलगत राजनीति के क्षेत्र में महामंत्री के रूप में बी.डी. शर्मा नया चेहरा हैं लेकिन उन्हें अनुभवहीन नहीं माना जा सकता। क्योंकि अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद में वे अधिक सक्रिय रहे हैं इसलिए पूरे प्रदेश की राजनीति को भलीभांति समझते हैं और नई टीम में महामंत्री के रूप में उनसे पार्टी को काफी उम्मीदें हैं। बाकी महामंत्री के रूप में अन्य नाम ऐसे हैं जिन्हें अभी अपनी सार्थकता प्रमाणित करनी है। यदि कोई बड़ा परिवर्तन नहीं होता तो यही टीम चुनावी समर में संगठन की कमान संभाले रहेगी। इससे यह भी लगता है कि सत्ता और संगठन दोनों की असली अगुवाई मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को ही करना होगी। जहां तक कांग्रेस का सवाल है अरुण यादव अभी तक अपनी टीम में न तो और नाम बढ़ा पाये हैं और न ही जिला अध्यक्षों व ब्लॉक कांग्रेस कमेटियों में जो निष्क्रिय चेहरे हैं उन्हें बदल पाये हैं। कांग्रेस अब उत्तरप्रदेश की तर्ज पर शायद व्यापक रणनीति के तहत मध्यप्रदेश में भी परिवर्तन का मन बना रही है, लेकिन यह कब तक पूरा होगा यह अभी कहा नहीं जा सकता। इसलिए नई रणनीति के सामने आने के बाद ही यह पता चलेगा कि कांग्रेस किन चेहरों के सहारे चुनावी समर में उतरेगी। फिलहाल सात सेक्टरों में प्रदेश को बांटकर कुछ वजनदार नेताओं को इसकी जिम्मेदारी देने की चर्चा है। कांग्रेस पूरी एकजुटता के साथ चुनावी समर में उतरने का अहसास प्रदेश के मतदाताओं को दिलाना चाहती है, लेकिन उसकी असली परीक्षा टिकट वितरण के टेबल पर होती है। उसके बाद एकता अभी तक छिन्न-भिन्न होती रही है, क्योंकि हर बड़ा नेता अपने समर्थक को सबसे तेज दौड़ने वाला घोड़ा मानते हुए उसे टिकट देना अपनी नाक का सवाल बना लेता है।
भाजपा की मजबूती का एक कारण यह भी है कि 15 साल की एन्टी इनकम्बेंसी के बावजूद भी जिस मतदाता ने 2003 में कांग्रेस को नकार दिया था उसकी नजर में अभी भी कांग्रेस की साख लगभग जस की तस है बल्कि कुछ कम ही हुई है। ये हालात प्रादेशिक फलक पर भाजपा की मजबूती का असली कारण हैं। ऐसे में आम आदमी पार्टी जो अलग ढंग की राजनीति करने के नारे के साथ आई थी वह प्रदेश में कांग्रेस की जगह ले पायेगी या कांग्रेस के सत्ता में आने के मंसूबों को ध्वस्त कर पायेगी, इसका सारा दारोमदार पंजाब चुनाव के नतीजों पर टिका है। जहां तक आंदोलनों का सवाल है जनता से जुड़े मुद्दों को लेकर आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस से अधिक प्रदर्शन किए हैं और उनमें भीड़ भी जुटी है, जबकि कांग्रेस के राजधानी में हुए प्रदर्शन महज रस्म अदायगी बनकर रह गए हैं। भोपाल के बोर्ड ऑफिस चौराहे से लेकर राजभवन के बीच के हिस्से में ही कांग्रेस के अधिकांश धरने प्रदर्शन हुए और रोशनपुरा चौराहा उसकी सबसे पसंदीदा जगह है क्योंकि ज्ञापन देने के लिए केवल एक किलोमीटर से कम ही राजभवन तक जाना पड़ता है। वैसे कांग्रेस का यह दावा रहा है कि वह जिला व ब्लॉक स्तर पर हर मुद्दे को लेकर प्रभावी प्रदर्शन कर रही है, परन्तु ऐसा अभी तक उपचुनाव के नतीजों से सामने नहीं आया है जिससे लगे कि मतदाताओं में उसका असर बढ़ रहा है।
दूसरी ओर आम आदमी पार्टी ने पिछले एक साल में राजधानी भोपाल सहित राज्य के बघेलखंड, बुंदेलखंड, मालवा तक ऐसे मुद्दों को लेकर लड़ाई लड़ी है जो सीधे जनता से जुड़े रहे हैं। प्रदेश के किसानों की दुर्दशा, बिजली के दामों में हुई समय-समय पर वृद्धि, भ्रष्टाचार, बढ़ते महिला अपराधों, प्रदेश में चरमराती स्वास्थ्य व्यवस्था, खस्ताहाल सड़कों, बढ़ती महंगाई की मार, बढ़ती बेरोजगारी और घटते रोजगार सहित जल-आक्रोश पदयात्रा के माध्यम से आम आदमी पार्टी ने समय-समय पर जनता के बीच जाकर प्रदर्शन कर उसे अहसास दिलाने की कोशिश की है कि यह पार्टी एक अलग तरह की राजनीति ही करेगी। आप के प्रदेश संयोजक आलोक अग्रवाल अपने साथियों के साथ पूरे प्रदेश में विधानसभा चुनाव लड़ने की जमावट करने के अभियान में भिड़े हुए हैं। पार्टी केे नेता अक्षय हुंका का दावा है कि पार्टी का जनाधार बहुत तेजी से बढ़ाते हुए कई सफल कार्यक्रम किए गए हैं और अब “जनसंवाद, चलो बूथ की ओर और आपकी बात आपके साथ’’ आदि के माध्यम से बूथ स्तर तक पार्टी अपनी पैठ बढ़ा रही है। लेकिन अभी चुनाव में काफी समय है और पंजाब तथा दिल्ली में जो कुछ चल रहा है उसका कितना प्रभाव प्रदेश में पड़ेगा, अभी नहीं कहा जा सकता।
- लेखक सुबह सवेरे के प्रबंध संपादक हैं।
- संपर्क- 09425010804, 07389938090
- यह आलेख दैनिक समाचार पत्र सुबह सवेरे के 04 सितंबर 2016 के अंक में प्रकाशित हुआ है
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सत्ताधारी दल भाजपा 2018 के विधानसभा चुनाव के बाद प्रदेश में चौथी बार भगवाई सूर्योदय के लिए अभी से चुनावी मोड में आ गई है। वहीं कांग्रेस भी अब धीरे-धीरे तीन दशक से उसका जो सूर्यास्त हुआ है उसे सूर्योदय में बदलने के लिए पूरी एकजुटता से चुनावी समर में उतरने की रणनीति अंदरखाने बनाने लगी है। ऐसे में एक सवाल यह उठता है कि क्या 2018 के विधानसभा चुनाव आते-आते तक दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल के नेतृत्व में आम आदमी पार्टी मध्यप्रदेश में कोई बड़ी चुनौती इन दोनों परम्परागत दलों के लिए खड़ी करते हुए इनका खेल बिगाड़ पाने की स्थिति में आ जाएगी। वैसे इन दिनों आम आदमी पार्टी में जिस तरह की उठापटक चल रही है और अपनों को ही निपटाने की साजिशें हो रही हैं उसके बाद इस पार्टी के भविष्य को लेकर संदेह पैदा हुआ है। इन विपरीत परिस्थितियों में भी यदि केजरीवाल के नेतृत्व में आम आदमी पार्टी पंजाब चुनाव में बेहतर प्रदर्शन कर पाई और उसने गुजरात व गोवा में अपना जलवा दिखा दिया तो फिर यह 2018 के लिए भाजपा और कांग्रेस दोनों के लिए मध्यप्रदेश में भी खतरे की घंटी होगी।
जहां तक भाजपा का सवाल है प्रदेश अध्यक्ष नंदकुमार सिंह चौहान ने आखिरकार लम्बी ऊहापोह के बाद अपनी टीम की घोषणा कर दी लेकिन इसमें अधिकांश अनजान चेहरों को जगह मिली है। वैसे दलगत राजनीति के क्षेत्र में महामंत्री के रूप में बी.डी. शर्मा नया चेहरा हैं लेकिन उन्हें अनुभवहीन नहीं माना जा सकता। क्योंकि अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद में वे अधिक सक्रिय रहे हैं इसलिए पूरे प्रदेश की राजनीति को भलीभांति समझते हैं और नई टीम में महामंत्री के रूप में उनसे पार्टी को काफी उम्मीदें हैं। बाकी महामंत्री के रूप में अन्य नाम ऐसे हैं जिन्हें अभी अपनी सार्थकता प्रमाणित करनी है। यदि कोई बड़ा परिवर्तन नहीं होता तो यही टीम चुनावी समर में संगठन की कमान संभाले रहेगी। इससे यह भी लगता है कि सत्ता और संगठन दोनों की असली अगुवाई मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को ही करना होगी। जहां तक कांग्रेस का सवाल है अरुण यादव अभी तक अपनी टीम में न तो और नाम बढ़ा पाये हैं और न ही जिला अध्यक्षों व ब्लॉक कांग्रेस कमेटियों में जो निष्क्रिय चेहरे हैं उन्हें बदल पाये हैं। कांग्रेस अब उत्तरप्रदेश की तर्ज पर शायद व्यापक रणनीति के तहत मध्यप्रदेश में भी परिवर्तन का मन बना रही है, लेकिन यह कब तक पूरा होगा यह अभी कहा नहीं जा सकता। इसलिए नई रणनीति के सामने आने के बाद ही यह पता चलेगा कि कांग्रेस किन चेहरों के सहारे चुनावी समर में उतरेगी। फिलहाल सात सेक्टरों में प्रदेश को बांटकर कुछ वजनदार नेताओं को इसकी जिम्मेदारी देने की चर्चा है। कांग्रेस पूरी एकजुटता के साथ चुनावी समर में उतरने का अहसास प्रदेश के मतदाताओं को दिलाना चाहती है, लेकिन उसकी असली परीक्षा टिकट वितरण के टेबल पर होती है। उसके बाद एकता अभी तक छिन्न-भिन्न होती रही है, क्योंकि हर बड़ा नेता अपने समर्थक को सबसे तेज दौड़ने वाला घोड़ा मानते हुए उसे टिकट देना अपनी नाक का सवाल बना लेता है।
भाजपा की मजबूती का एक कारण यह भी है कि 15 साल की एन्टी इनकम्बेंसी के बावजूद भी जिस मतदाता ने 2003 में कांग्रेस को नकार दिया था उसकी नजर में अभी भी कांग्रेस की साख लगभग जस की तस है बल्कि कुछ कम ही हुई है। ये हालात प्रादेशिक फलक पर भाजपा की मजबूती का असली कारण हैं। ऐसे में आम आदमी पार्टी जो अलग ढंग की राजनीति करने के नारे के साथ आई थी वह प्रदेश में कांग्रेस की जगह ले पायेगी या कांग्रेस के सत्ता में आने के मंसूबों को ध्वस्त कर पायेगी, इसका सारा दारोमदार पंजाब चुनाव के नतीजों पर टिका है। जहां तक आंदोलनों का सवाल है जनता से जुड़े मुद्दों को लेकर आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस से अधिक प्रदर्शन किए हैं और उनमें भीड़ भी जुटी है, जबकि कांग्रेस के राजधानी में हुए प्रदर्शन महज रस्म अदायगी बनकर रह गए हैं। भोपाल के बोर्ड ऑफिस चौराहे से लेकर राजभवन के बीच के हिस्से में ही कांग्रेस के अधिकांश धरने प्रदर्शन हुए और रोशनपुरा चौराहा उसकी सबसे पसंदीदा जगह है क्योंकि ज्ञापन देने के लिए केवल एक किलोमीटर से कम ही राजभवन तक जाना पड़ता है। वैसे कांग्रेस का यह दावा रहा है कि वह जिला व ब्लॉक स्तर पर हर मुद्दे को लेकर प्रभावी प्रदर्शन कर रही है, परन्तु ऐसा अभी तक उपचुनाव के नतीजों से सामने नहीं आया है जिससे लगे कि मतदाताओं में उसका असर बढ़ रहा है।
दूसरी ओर आम आदमी पार्टी ने पिछले एक साल में राजधानी भोपाल सहित राज्य के बघेलखंड, बुंदेलखंड, मालवा तक ऐसे मुद्दों को लेकर लड़ाई लड़ी है जो सीधे जनता से जुड़े रहे हैं। प्रदेश के किसानों की दुर्दशा, बिजली के दामों में हुई समय-समय पर वृद्धि, भ्रष्टाचार, बढ़ते महिला अपराधों, प्रदेश में चरमराती स्वास्थ्य व्यवस्था, खस्ताहाल सड़कों, बढ़ती महंगाई की मार, बढ़ती बेरोजगारी और घटते रोजगार सहित जल-आक्रोश पदयात्रा के माध्यम से आम आदमी पार्टी ने समय-समय पर जनता के बीच जाकर प्रदर्शन कर उसे अहसास दिलाने की कोशिश की है कि यह पार्टी एक अलग तरह की राजनीति ही करेगी। आप के प्रदेश संयोजक आलोक अग्रवाल अपने साथियों के साथ पूरे प्रदेश में विधानसभा चुनाव लड़ने की जमावट करने के अभियान में भिड़े हुए हैं। पार्टी केे नेता अक्षय हुंका का दावा है कि पार्टी का जनाधार बहुत तेजी से बढ़ाते हुए कई सफल कार्यक्रम किए गए हैं और अब “जनसंवाद, चलो बूथ की ओर और आपकी बात आपके साथ’’ आदि के माध्यम से बूथ स्तर तक पार्टी अपनी पैठ बढ़ा रही है। लेकिन अभी चुनाव में काफी समय है और पंजाब तथा दिल्ली में जो कुछ चल रहा है उसका कितना प्रभाव प्रदेश में पड़ेगा, अभी नहीं कहा जा सकता।
- लेखक सुबह सवेरे के प्रबंध संपादक हैं।
- संपर्क- 09425010804, 07389938090
- यह आलेख दैनिक समाचार पत्र सुबह सवेरे के 04 सितंबर 2016 के अंक में प्रकाशित हुआ है
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