Saturday, September 3, 2016

हथकड़ी लगाना सर्वोच्च न्यायालय की अवमानना है.............

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सम्पूर्ण देश में नित्य प्रति कचहरी परिसर के आस पास पुलिस अभिरक्षा में व्यक्तियों के हाथ में हथकड़ी और उसकी रस्सी पकड़े पुलिस कर्मियों को देखकर किसी को अचरज नही होता। सभी इसे एक सामान्य आवश्यक पुलिसिया कार्यवाही मानते है। न्यायिक अधिकारियों के सामने भी हथकड़ी पहने लोगों को प्रस्तुत किया जाता है और उसी दशा उन्हें सुनवाई के दौरान न्यायालय कक्ष में खड़ा रखा जाता है। सर्वोच्च न्यायालय ने इसे अमानवीय अतार्किक उत्पीड़क और संविधान के अनुच्छेद 19 एवं 21 के प्रतिकूल घोषित किया है।

आजादी के पहले अंग्रेज पुलिस अधिकारी भारतीयों की गरिमा और सम्मान को धूल धूसरित करने के दुरासय से हथकड़ी बेड़ी पहनाकर उन्हें एक स्थान से दूसरे स्थान ले जाया करते थे और इससे उनका अहं संतुष्ट होता था। उन्होंने अपनी इस अमानवीय कार्यवाही को विधि सम्मत बताने के लिए पुलिस अधिनियम में इसके लिए नियम भी बना लिये थे। अंग्रेजों के बनाये नियमो का अनुचित सहारा लेकर हरियाणा पुलिस ने उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायमूर्ति श्री ए0एस0 बैन्स को हथकड़ी पहनाकर थाने से न्यायालय लाने का दुस्साहर किया था। उच्च न्यायालय ने पुलिस की इस कार्यवाही को अमानवीय बताते हुये राज्य सरकार के विरूद्ध पेनाल्टी अधिरोपित की और पचास हजार रूपये बतौर क्षतिपूर्ति देने का आदेश पारित किया है।

इस प्रकार के कई आदेशों के बावजूद सम्पूर्ण देश में स्थानीय थाना स्तरों पर पुलिस अभिरक्षा में गिरफ्तार व्यक्तियों को हथकड़ी पहनाना और फिर उन्हें एक स्थान से दूसरे स्थान तक पैदल ले जाना नित्य प्रति की सामान्य कार्यवाही है। सर्वोच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति श्री कृष्णा अय्यर ने सुनील बत्रा बनाम देलही एडमिनिस्ट्रेशन (ए.आई.आर-1978 सुप्रीम कोर्ट पेज 1678) के द्वारा सम्पूर्ण देश में जारी इस प्रथा को अमानवीय घोषित किया है। उन्होंने प्रतिपादित किया है कि हथकड़ी पहनाने से व्यक्ति की मानवीय गारिमा, सम्मान और सार्वजनिक प्रतिष्ठा नष्ट हो जाती है। इसके बाद प्रेमशंकर शुक्ला बनाम देलही एडमिनिस्ट्रेशन (ए.आई.आर-1980-एसी.सी. पेज 540) में सर्वोच्च न्यायालय ने आदेशात्मक दिशा निर्देश जारी किये। कहा गया कि गिरफ्तार व्यक्ति को हथकड़ी पहनाना अनुच्छेद 19 एवं 21 का उल्लंघन है।

हथकड़ी पहनाकर गिरफ्तार व्यक्तियों को एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाना अमानवीय अपमानजनक और उत्पीड़क है। इससे मानवाधिकारों का हनन होता है और व्यक्ति की मानवीय गरिमा धूल धूसरित हो जाती है। निर्णय में कहा गया है कि हथकड़ी के बिन्दु पर सर्वोच्च न्यायालय द्वारा जारी दिशा निर्देशों के बाद जो कोई भी  किसी को हथकड़ी पहनाकर पुलिस अभिरक्षा में कहीं ले जाता हुआ पाया जाता है तो माना जायेगा कि उसने न्यायालय के आदेश की अवमानना की है और उसे विधि के अन्य प्रावधानों के साथ साथ न्यायालय अवमान अधिनियम के तहत दण्डित किया जायेगा।

सर्वोच्च न्यायालय के स्पष्ट आदेशों और आदेशात्मक दिशा निर्देशों के बावजूद पुलिस अभिरक्षा में व्यक्तियों को हथकडी पहनाकर न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत करने की प्रथा आज भी बेरोकटोक जारी है। स्थानीय स्तरो पर थाने या जेल में हथकड़ी पहनाकर लोगों को अपमानित करने पर कोई अंकुश नही लग सका है। मेडिकल कालेज के कुछ छात्रों को हथकड़ी लगाये जाने के विरोध में डाक्टरों की देशव्यापी हड़ताल का भी इस अमानवीय प्रथा पर कोई प्रभाव नही पड़ा है।

आपातकाल के दौरान उस समय के प्रख्यात समाजवादी श्रमिक नेता श्री जार्ज फर्नाडीज को हथकड़ी पहनाकर सुप्रीम कोर्ट लाया जाता था। हरियाणा के तत्कालीन मुख्यमन्त्री देबी लाल ने अपनी व्यक्तिगत खुन्नस के चलते पूर्व  मुख्यमन्त्री चैधरी वंशी लाल को हथकड़ी पहनावाकर सड़क पर घुमवाया था। इस प्रकार के उदाहरणों से स्पष्ट हो जाता है कि अब पुलिस अभिरक्षा में हथकड़ी सुरक्षा कारणो से नही पहनाई जाती है बल्कि पुलिस कर्मियों की सुविधा और अहं की संतुष्टि के लिए इस प्रथा को जारी रखा जा रहा है।

सार्वजनिक मुद्दों पर धरना प्रदर्शन करने वाले आन्दोलकारी स्वयं अपनी गिरफ्तारी देते है और किसी भी दशा में पुलिस अभिरक्षा से उनके भागने की कोई सम्भावना नही होती फिर भी उन्हें थाने या जेल से न्यायालय हथकड़ी पहनाकर ही लाया जाता है। खेत मजदूर चेतना संघ बनाम स्टेट आफ मध्य प्रदेश (ए.आई.आर.-1995 एस.सी.-पेज 31) में सर्वोच्च न्यायालय ने सार्वजनिक मुद्दो पर धरना या प्रदर्शन करने वाले आन्दोलनकारियों की गिरफ्तारी और उन्हें हथकड़ी लगाने की घटना पर राज्य सरकार के साथ साथ सम्बन्धित न्यायिक अधिकारी को भी फटकार लगाई थी। आम लोगों को शोषण, अत्याचार, अन्याय, अपराध और अपराधियों से बचाना और उनकी रक्षा करना पुलिस का पवित्र कर्तव्य है।

भ्रष्टाचार और अपने आपको शासक मानने की सामन्ती प्रवृत्ति के कारण सम्पूर्ण देश में पुलिस कर्मियों ने आम लोगों की रक्षा करने के अपने पवित्र कर्तव्य का परित्याग कर दिया है और खुद आम लोगों के उत्पीड़न का कारण बन गये है। आम आदमी पुलिस अभिरक्षा से भागने या अभिरक्षा के दौरान पुलिस कर्मियों को कोई क्षति पहुँचाने के बारे में सोच भी नही सकता। पुलिस कर्मियों की मिली भगत और भ्रष्टाचार के कारण अपराधी पुलिस अभिरक्षा से भागने में सफल होते है। भागने के अवसर स्वयं पुलिस कर्मी उन्हें उपलब्ध कराते है।
   

 सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया है कि किसी भी व्यक्ति के विरूद्ध गम्भीर आरोप होना या गम्भीर धाराओं मे ज्यादा मुकदमें दर्ज होना हथकड़ी पहनाने का आधार नही हो सकता। स्वतन्त्र भारत में हथकड़ी पहनाने का कोई नियम नही है। हथकड़ी अपवाद स्वरूप ही पहनाई जायेगी। सुनील गुप्ता बनाम स्टेट आफ मध्य प्रदेश (1990-एस.सी.सी. क्रिमिनल -पेज 441) में सर्वोच्च न्यायालय ने प्रतिपादित किया है कि गिरफ्तार व्यक्ति यदि खतरनाक है और पुलिस अभिरक्षा के दौरान उसके भाग जाने की सम्भावना प्रतीत होती है तो उसे थाने से मजिस्टेªट के समक्ष लाये जाने के लिए हथकड़ी पहनाने के पूर्व सम्बन्धित अधिकारी को थाने की डायरी में हथकड़ी पहनाने के कारणों को अभिलिखित करना होगा और अन्य कागजातों के साथ इसकी प्रति भी मजिस्टेट के समक्ष प्रस्तुत करनी होगी।

 न्यायालय को गिरफ्तार व्यक्ति के भाग जाने की सम्भावना के बारे में सम्पूर्ण तथ्यों से अवगत कराना होगा और फिर न्यायिक अधिकारी के आदेश के अधीन हथकड़ी पहनाई जा सकती है, परन्तु पुलिस या जेल अधिकारियो को अपने मन से अपने स्तर पर किसी को भी हथकड़ी पहनाने के लिए निर्णय लिए निर्णय लेने का कोई अधिकार किसी विधि के तहत प्राप्त नही है। विभिन्न राज्यों में अंग्रेजों के बनाये पुलिस अधिनियमों में हथकड़ी पहनाने के प्रावधान थे जो सर्वोच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति श्री कृष्णा अय्यर द्वारा पारित निर्णय के बाद स्वतः निष्प्रभावी हो गये है और अब उनका कोई विधि अस्तित्व नही है। हथकड़ी पहनाने की कार्यवाही अब पूरी तरह विधिविरूद्ध और संविधान के अनुच्छेद 19 एवं 21 के प्रतिकूल घोषित कर दी गयी है तद्नुसार उसे किसी भी दशा में जारी नही रखा जा सकता है।

प्रायः देखा जाता है कि अस्पतालों में इलाज के दौरान बीमार बन्दियों को भी हथकड़ी पहनाकर रखा जाता है। सिटीजन आफ डेमोक्रेसी बनाम स्टेट आफ आसाम (ए.आई.आर-1996-एस.सी.- पेज 197) के द्वारा सर्वोच्च न्यायालय ने अस्पताल में बीमार बन्दियों को हथकड़ी बेड़ी लगाकर रखे जाने की घटना को अन्तर्राष्ट्रीय विधि के तहत सभी को प्राप्त मानवाधिकारो का उल्लंघन बताया है। इस निर्णय के द्वारा सर्वोच्च न्यायालय ने घोषित किया है कि देश के किसी भी भाग में दोषी या विचाराधीन किसी भी प्रकार के बन्दी को हथकड़ी पहनाकर अस्पताल में रखना, एक जेल से दूसरी जेल स्थानान्तरित करना या जेल से न्यायालय लाना आम लोगों को प्राप्त संवैधानिक अधिकारों के प्रतिकूल है,

परन्तु सर्वोच्च न्यायालय की इस उद्घोषणा या इसके पूर्व जारी आदेशात्मक दिशा निर्देशों का स्थानीय स्तर पर पालन नही किया जा रहा है और सम्बन्धित न्यायिक अधिकारी से अनुमति प्राप्त किये बिना नित्य प्रति गिरफ्तार व्यक्तियों को पुलिस अभिरक्षा में हथकड़ी पहनाकर लाया जाता है और हथकड़ी लगाये रखकर न्यायिक अधिकारी के समक्ष प्रस्तुत भी किया जाता है। एलटेमेस एडवोकेट बनाम यूनियन आफ इण्डिया आदि मे देलही हाई कोर्ट ने सरकार को हथकड़ी के सम्बन्ध में स्पष्ट दिशा निर्देश जारी करने के लिए आदेशित किया है परन्तु केन्द्र सरकार या राज्य सरकारो ने इस दिशा में अपने स्तर पर अभी तक कोई पहल नही की है। सरकारो का यही रवैया पुलिस कर्मियों और जेल अधिकारियों को मनमानी करने की छूट देता है।

आम लोगों के प्रति असंवेदनशील रवैये के कारण पुलिस कर्मी या जेल अधिकारी अपनी अभिरक्षा में बन्दियों को मनुष्य नही मानते और हथकड़ी बेड़ी रस्सी में उसे बाँधकर लाने ले जाने में गर्व महसूस करते है। दुःखद सच्चाई है बन्दियों के मानवीय अधिकारों की रक्षा के लिए सर्वोच्च न्यायालय द्वारा जारी दिशा निर्देश थाने या जेल की चैखट पर दम तोड़ देते है। किसी को हथकड़ी पहनाकर थाने या जेल से न्यायालय लाना न्यायालय की अवमानना की परिधि में आता है परन्तु अभी तक किसी पुलिस कर्मी या जेल अधिकारी के विरूद्ध न्यायालय अवमान अधिनियम के तहत कार्यवाही नही की गई है।

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