Saturday, December 3, 2016

कमाल है बिना शिक्षकों के प्रदेश में चल रहे स्कूल ?

SHIVRAJ CM SCHOOL के लिए चित्र परिणाम

अवधेश पुरोहित @ TOC NEWS

भोपाल । भारतीय जनता पार्टी के शासनकाल के दौरान इस सरकार में  अपने कारनामों के कई इतिहास रचे हैं फिर चाहे वह व्यापमं घोटाला हो, डीमेट घोटाला या फिर किसानों को सब्सिडी दिए जाने का मामला हो या फिर खनिज का कारोबार हो, ऐसे एक नहीं अनेकों मामलों में इस मध्यप्रदेश ने भारतीय जनता पार्टी के शासनकाल में एक के बाद एक इतिहास रचने का सिलसिला आज भी जारी है। 

यूँ तो भारतीय संविधान में देश के नागरिकों को शिक्षा, स्वास्थ्य और नि:शुल्क पानी उपलब्ध कराने की सरकार की जिम्मेदारी रहती है और इस तरह का अधिकार देश के साथ-साथ इस प्रदेश की जनता को संविधान द्वारा प्रदत्त किया गया, लेकिन राज्य में भाजपा शासनकाल के दौरान राज्य की स्वास्थ्य सेवाओं पर करोड़ों रुपए खर्च करने के बावजूद भी आज इस प्रदेश का मरीज नहीं बल्कि स्वास्थ्य सेवाएं वेंटीलेटर पर हैं और इससे परेशान होकर अब राज्य सरकार ने लडख़ड़ती स्वास्थ्य सेवाओं को निजी हाथों में सौंपने का निर्णय लिया है और इसकी शुरुआत ठेठ आदिवासी जिले अलीराजपुर से की जा रही है, लगभग ऐसी ही स्थिति राज्य में शिक्षा की भी है, 

इस प्रदेश में जहाँ शिक्षा के नाम पर सबसे बड़ा घोटाला व्यापमं ने इतिास रचा हो तो प्राथमिक शालाओं की तो बात ही छोडि़ए। शिक्षा के मामले में राज्य सरकार ने तो एक बड़ा विश्व स्तरीय रिकार्ड स्थापित किया है, जिसके चलते इस राज्य में बिना शिक्षकों के चार हजार ८३७ सरकार स्कूल धड़ल्ले से चल रहे हैं और इनमें पढऩे वाले नौनिहालों की नींव की जड़ों में मठा डालने का काम यह सरकार कर रही है। 

 

शायद हमारे सत्ताधीश उस दिशा की ओर बढ़ रहे हैं कि इस मध्यप्रदेश में शायद बच्चों को पढ़ाने की जरूरत नहीं है वह यूँ ही सरकारी स्कूलों में अनाप-शनाप फीसें जमाकर उनके अभिभावक उनका भविष्य सुधार लेंगे सरकार को क्या पड़ी, तभी तो यह प्रदेश अन्य मामलों की तरह बिना शिक्षकों के स्कूल चलाने के मामले में भी पहली पायदान पर है, इस विकासशील प्रदेश के जिसमें बचपन से लेकर पचपन तक सभी के लिए भारतीय जनता पार्टी की सरकार द्वारा तमाम जनहितैषी योजनाएं चलाई जा रही हैं और छात्राओं के भविष्य की चिंता का ढिंढोरा पीटकर उनके नाम पर कभी साइकिल तो कभी गणवेश के नाम पर घोटाले दर घोटाले तो हुए ही हैं तो मध्याह्न भोजन की क्या स्थिति है यह तो दूर दराज के स्कूलों की तो बात छोडि़ए राजधानी के स्कूल में जाकर देखा जा सकता है कि प्रदेश के नौनिहालों को दिये जाने वाले मध्याह्न भोजन में किस तरह का भोजन दिया जा रहा है। 
TOC NEWS

मजे की बात यह है कि बिना शिक्षकों के स्कूल चलाने में नंबर वन होने का आरोप कोई विपक्षी दल या मीडिया ने नहीं बल्कि स्वयं भाजपा के केन्द्रीय सरकार के केन्द्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा हाल ही में पेश की गई सदन की एक रिपोर्ट के माध्यम से किया गया है, जिसको पढ़कर हर कोई हैरान है कि आखिर प्रदेश के चार हजार ८३७ सरकारी स्कूल कई वर्षों से बिना शिक्षकों के कैसे संचालित हो रहे हैं और कौन उन्हें स्कूलों में पढ़ा रहा और कौन स्कूल को खुलवा रहा है। यही नहीं प्रदेश में उत्तम शिक्षा का ढिंढोरा पीटने वाली इस सरकार के राज्य में बिना टीचर के यह स्कूल कैसे संचालित हो रहे हैं, यह जाँच का विषय है इसको लेकर अंतर्राष्ट्रीय स्तर के वैज्ञानिकों को प्रदेश में आकर शोध करना चाहिए कि जिस प्रदेश में भाजपा की सत्ता आने के बाद जिन लोगों के पास टूटी साइकिलें खरीदने की स्थिति नहीं थी 

आज इस भाजपा के ११ वर्षों के शासनकाल के दौरान सबका विकास की नीति के चलते हुए आलीशान भवनों और लग्जरी वाहनों में फ र्राटे भरते नजर आ रहे हैं? लोग उनकी इस तरह की हालत में हुए परिवर्तन को देखकर उस कुबेर भगवान का स्मरण करते नजर आते हैं कि हे कुबेर... तुम इन्हीं भाजपाईयों पर प्रसन्न हुए... इस प्रदेश के दीन-हीन दरिद्र नारायण ने आपका क्या बिगाड़ा... जो इस प्रदेश के दरिद्र नारायण से आप रुष्ट हैं ...

भाजपा शासनकाल में भाजपा से जुड़े लोगों का विकास देख लोग यह भी कहते नजर आते हैं कि वाह भाजपा शासकों की माया कहीं धूप कहीं छाया... और इसी रीति के चलते राज्य में आज प्रदेश की कुल आबादी के पाँच करोड़ ४४ लाख लोगों को यह सरकार एक रुपए किलो गेहूं और एक रुपए किलो चावल मुहैया करा रही है। सवाल यह है कि इन पाँच करोड़ ४४ लाख लोगों में से कितने लोग इस सुविधा का लाभ उठा रहे हैं और कितने इन गरीबों के नाम पर कालाबाजारी की भेंट चढ़ रही है जिसके चलते इस राज्य में भाजपा से जुड़े नेता मालामाल हो रहे हैं। जिस राज्य में यह कमाल हो उस राज्य में फिर शिक्षा की जरूरत ही क्या। 

शायद इसी फार्मूला को अपनाते हुए राज्य सरकार ने वर्षों से चार हजार ८३७ सरकारी स्कूलों में शिक्षकों की भर्ती करने की आवश्यकता ही नहीं समझी सदन में प्रस्तुत रिपोर्ट के बाद केन्द्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने राज्य सरकार को जल्द ही इन खाली शिक्षकों के पद भरने के लिऐ कहा गया है, चलो इस बहाने एक और कारनामा दिखाने का अवसर अब इस प्रदेश को मिलने वाला है और लोकतंत्र के जिस मंदिर विधानसभा में कांग्रेस कार्यकाल के दौरान हुई नियुक्तियों को लेकर पूरे प्रदेश में हो-हल्ला मचा यही नहीं पूर्व विधानसभा अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री के खिलाफ इस मामले को लेकर एफआईआर भी दर्ज की गई। 

लेकिन मजे की बात यह है कि जिस बात को लेकर यह सब कुछ किया गया उसी विधानसभा में आज अपने चहेतों की बैकडोर इंट्री का दौर भी जारी है तो वहीं सीधी भर्ती में अयोग्य और अपने चहेतों को पदस्थ किये जाने का दौर भी जारी है। यानि जिसका भाजपा नेता विरोध करते हैं वही जब स्वयं करते हैं तो ठीक वही स्थिति बनती है कि तुम करो तो पाप... हम करें तो पुण्य... पता नहीं इस भाजपा शासनकाल में इस प्रदेश की जनता को और न जाने क्या-क्या नित्य नये-नये कारनामे देखने को मिलेंगे। जब ऐसी नीति भाजपा शासकाल के सत्ताधीशों की हो तो फिर इस प्रदेश में बिना शिक्षकों के स्कूल चलना तो कोई बड़ी बात नहीं है क्योंकि वह जब विपक्ष में होते हैं तो चाल, चरित्र और चेहरे की दुहाई देते हैं तो वहीं अपनी पार्टी को पार्टी बिथ डिफरेंस... 



होने का भी ढिंढोरा पीटते हैं लेकिन वहीं भाजपाई जब सत्ता में होते हैं तो उन सब सिद्धांतों और चाल, चरित्र और चेहरे की नीति को  नकाकर ही सत्ता पर काबिज होते हैं और भाजपाई वह सब करते हैं जिसको लेकर कल तक विपक्ष में रहकर सड़क से लेकर सदन तक हंगामा खड़ा किया करते थे अब ऐसी स्थिति में तो यह होगा ही और बिना शिक्षकों के स्कूल चलेंगे हालांकि बिना शिक्षकों के सरकारी स्कूल चलाने के मामले में हमारी प्रदेश सरकार के अव्वल होने के बाद दूसरे पायदान पर तेलंगाना है, जहाँ १९४४ तो आंध्र में १३३९, छत्तीसगढ़ में ३८५ और उत्तरप्रदेश में ३९३ पाठशालायें ऐसी हैं जहाँ बिना शिक्षकों के छात्र अध्ययन कर रहे हैं। 

सदन में इस तरह के खुलासे के बाद मानव संसाधन विकास राज्यमंत्री उपेन्द्र कुशवाह ने सदन में लिखित प्रश्न का जवाब देते हुए कहा कि राज्यों को बार-बार पद भरने के लिए कहा गया लेकिन अब भी स्थिति चिंताजनक बनी हुई है पता नहीं इस प्रदेश की स्थिति इस मामले में कब सुधरेगी या फिर बिना शिक्षकों के स्कूल में पढऩे के मामले में जब हमारे राज्य के बच्चे अभ्यस्त हो गये हैं तो यह सिलसिला आगे जारी रहेगा और हम अव्वल होने के पायदान पर कदम दर कदम आगे बढ़ते जाएंगे। हालांकि यह स्थिति मुख्यमंत्री की तीसरी बार सत्ता पर काबिज होने के बाद से कुछ लडख़ड़ाई है इसके पहले क्या होगी इसकी अभी खोज करना बाकी है लेकिन लोकसभा में प्रस्तुत की गई रिपोर्ट के अनुसार २०१२-१३ में ३७८८ ऐसे स्कूल थे जो बिना शिक्षकों के संचालित हो रहे थे लेकिन हमारे प्रदेश के मुखिया के स्वर्णिम विकास की परिकल्पना के चलते ही यह सिलसिला प्रदेश के विकास की तरह आगे बढ़ता रहा और २०१३-१४ में यह आंकड़ा ४०७२ की स्थिति में पहुँच गया तो २०१४-१५ में यह प्रदेश के विकास की तरह एक कदम आगे बढ़ाकर २०१४-१५ में ४२३२ के आंकड़े पर पहुंच गया। 

चूँकि भाजपा के इस शासनकाल में सबका विकास सबके साथ की नीति के चलते हो रहा है तो इस मामले में भी पीछे क्यों रहें, २०१५-१६ में बिना शिक्षकों के सरकारी स्कूल चलाने के मामले में भी अन्य प्रदेश के विकास के आंकड़ों की तरह इसमें भी वृद्धि हुई और यह ४८३७ के पायदान पर पहुंच गया, अब विकास की इस अवधारणा वाले भाजपा के शासकनकाल में देखना अब यह है कि यह आंकड़ा आने वाले समय में कहाँ पहुंचता है, यह तो अगली रिपोर्ट के आने पर ही इसका खुलासा हो पाएगा। 

 
 
 

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