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2007 में अजमेर दरगाह विस्फोट के मामले में स्वामी असीमानंद को विशेष अदालत ने आज बरी कर दिया। तीन अन्य लोगों को दोषी करार दिया गया है। 11 अक्टूबर 2007 को हुए इस धमाके में तीन लोगों की मौत हो गयी थी जबकि 20 लोग घायल हो गये थे। अदालत दोषी की सजा पर फैसला 16 मार्च को सुनाएगी।
विशेष अदालत (सीबीआई) के विशेष न्यायाधीश दिनेश गुप्ता अजमेर स्थित सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती की दरगाह परिसर में आहता-ए-नूर पेड के पास 11 अक्टूबर, 2007 को हुए बम विस्फोट मामले का फैसला सुनाया। बचाव पक्ष के वकील जगदीश एस राणा ने कहा कि न्यायिक हिरासत में बंद आठ आरोपी स्वामी असीमानंद, हर्षद सोलंकी, मुकेश वासाणी, लोकेश शर्मा, भावेश पटेल, मेहुल कुमार ,भरत भाई, देवेंद्र गुप्ता फैसला सुनने के लिए अदालत में मौजूद थे। अदालत देवेन्द्र गुप्ता और भवेश पटेल को आगामी 16 मार्च को सजा सुनाएगी।
उन्होंने बताया कि अदालत ने स्वामी असीमानंद, हषर्द सोलंकी, मुकेश वासाणी, लोकेश शर्मा, मेहुल कुमार, भरत भाई को सन्देह का लाभ देते हुए बरी कर दिया। उन्होंने बताया कि न्यायालय ने देवेन्द्र गुप्ता, भावेश पटेल और सुनील जोशी को भारतीय दंड संहिता की धारा 120 बी, 195 और धारा 295 के अलावा विस्फोटक सामग्री कानून की धारा 3(4) और गैर कानूनी गतिविधियों का दोषी पाया है।
ध्यान रहे कि विशेष अदालत ने 6 फरवरी को मामले की अंतिम बहस सुनने के तुरंत फैसला सुनाने का फैसला टाल दिया था। आज इस मामले में अहम फैसला आया है। 11 अक्टूबर, 2007 को दरगाह परिसर में हुए बम विस्फोट में तीन लोगों की मौत हो गयी थी। विस्फोट के बाद पुलिस को तलाशी के दौरान एक लावारिस बैग मिला था, जिसमें टाइमर डिवाइस लगा जिंदा बम रखा हुआ था।
इस मामले में एनआईए ने 13 आरोपियों के खिलाफ चालान पेश किया था। इनमें से आठ आरोपी वर्ष 2010 से न्यायिक हिरासत में बंद हैं। एक आरोपी चंद्रशेखर लेवे जमानत पर है। एक आरोपी सुनील जोशी की हत्या हो चुकी है और तीन आरोपी संदीप डांगे, रामजी कलसांगरा और सुरेश नायर फरार चल रहे हैं।
गौरतलब है कि 11 अक्टूबर 2007 को दरगाह परिसर में हुए बम विस्फोट में तीन जायरीन मारे गये थे और पंद्रह जायरीन घायल हो गये थे। विस्फोट के बाद पुलिस को तलाशी के दौरान एक लावारिस बैग मिला था जिसमे टाईमर डिवाईश लगा जिंदा बम रखा हुआ था। एनआईए ने तेरह आरोपियों के खिलाफ चालान पेश किया था। इनमें से आठ आरोपी वर्ष 2010 से न्यायिक हिरासत में बंद हैं। एक आरोपी चन्द्र शेखर लेवे जमानत पर है। एक आरोपी सुनील जोशी की हत्या हो चुकी है और तीन आरोपी संदीप डांगे, रामजी कलसांगरा और सुरेश नायर फरार चल रहे हैं। इस मामले में अभियोजन पक्ष की ओर से 149 गवाहों के बयान दर्ज करवाए गये लेकिन अदालत में गवाही के दौरान कई गवाह अपने बयान से मुकर गये। राज्य सरकार ने मई 2010 में मामले की जांच राजस्थान पुलिस की एटीएस शाखा को सौंपी थी। बाद में एक अप्रैल 2011 को भारत सरकार ने मामले की जांच एनआईए को सौंप दी थी।
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