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लखनऊ। सपा के वरिष्ठ नेता विधायक मोहम्मद आजम खाँ ने अयोध्या में राममंदिर निर्माण को लेकर अब एक नया पेंच फंसा दिया है। इनका कहना है कि राममंदिर के निर्माण के पहले यह तो तय होना चाहिये कि अयोध्या में इसे किस जगह पर बनाया जाना चाहिये। इसके लिये उन्होंने राम मंदिर निर्माण समर्थकों से सीधा सवाल किया है कि वे लोग अयोध्या में किस राम मंदिर के निर्माण की बात कर रहे हैं? पहले यह तो बताइये। अयोध्या में तो कई राममंदिर हैं। इसी तरह यहां कई रामजन्मभूमि भी हैं।
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मो.आजम खां ने अपने इसी दावे का खुलासा करते हुए कहा है कि अयोध्या में राम मंदिर तो है ही। बाबरी मस्जिद की शहादत के बाद तत्कालीन प्रधान मंत्री नरसिंहाराव की हुकूमत में लगातार तीन दिनों तक चबूतरा बनाये जाने के बाद उसी जगह पर मंदिर बना दिया गया। यह मंदिर आज भी मौजूद है। यहाँ बाकायदे पूजापाठ जारी है। इसका मतलब तो यही हुआ कि यहां मंदिर तो है ही। लेकिन, अब तो यह अयोध्या के वासिंदे ही तय करेंगे कि असल में राम मंदिर कौन है?
एक सवाल के जवाब में आजम खाँ ने कहा कि बाबरी मस्जिद की जगह जो मंदिर बना था, वह भी मौजूद है। इसलिये अब यह कहना कतई मुनासिब नहीं है कि इसी जगह पर मंदिर का निर्माण किया जाना है। इसकी बजाय यह कहना चाहिये कि राममंदिर की इमारत पक्की होनी चाहिये। लगता है कि संघ प्रमुख मोहन भागवत के राममंदिर निर्माण संबंधी ताजा बयान पर पलटवार करते हुए आजम खाँ ने अपने एक खास अंदाज में विरोध जताया है।
उल्लेखनीय है कि कुछ ही दिनों पहले देवधर में आयोजित हिंदुओं के एक सम्मेलन को संबोधित करते हुए राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने जोर देते हुए यह कहा है कि देशवासी रामजन्मभूमि पर राममंदिर का निर्माण चाहते हैं। इस समस्या का समाधान अदालत से नहीं, दोनों समुदायों के लोगों के बीच आपसी बातचीत से ही हो सकता है। इनका यह भी कहना है कि इस्लामी धर्मावलंबी राममंदिर निर्माण का विरोध नहीं कर रहे है।।राजनीतिक कट्टरपन के कारण ही यह विरोध किया जा रहा है। रामलला को इस स्थान से हटाकर अब अन्यत्र नहीं ले जाया जा सकता है।
संघ प्रमुख मोहन भागवत का मानना है कि इस समस्या का सबसे उपयुक्त समाधान वही है जो चंद्रशेखर ने अपने प्रधानमंत्रित्व काल में कहा था। इसके लिये उन्होंने सऊदी अरब के बडे मौलवी से फतवा या अभिमत मंगाकर करना चाहा था। उन बडे मौलवी ने इस्लाम की मान्यता और मोहम्मद साहब के आचरण का उदाहरण देते हुए कहा था कि किसी दूसरे की जमीन पर पढी गयी नमाज कुबूल नहीं होती है। पुरातत्व के उत्खनन से वह जमीन दूसरे की है।
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