सहज संवाद / डा. रवीन्द्र अरजरिया
कार्य करने से अधिक महात्वपूर्ण होता है कार्य को सफलतापूर्वक संचालित करना। दिनचर्या से लेकर विशिष्ट और अतिविशिष्ट तक की विभिन्न पायदानों पर दायित्वों का विभाजन किया जाता है। यही विभाजन उसकी सफलता का महात्वपूर्ण सोपान होता है।
समाज के समग्र विकास के लिए संगठित किन्तु सकारात्मक कार्यों की महती आवश्यकता होती है और जब इस आवश्यकता की पूर्ति सक्षम हाथों से होने लगे तो फिर लक्ष्य भेदन की सम्भावना का प्रतिशत भी ऊंचाई पर होता है। वर्तमान कार्य योजनायें अतीत के अनुभवों के आधार पर निर्धारित की जाती है ताकि नकारात्मक पक्षों की प्रतिशत घटाया जा सके। इसी कारण प्रत्येक कार्य के लिए प्रशिक्षण और अनुभव का समुच्चय तलाशा जाता है।
विगत दिनों एक भव्य समारोह में हमारी मुलाकात प्रसिद्ध फिल्मकार शेखर कपूर से हुई। पद्मश्री, बाफ्टा तथा राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित इस व्यक्तित्व ने अन्तर्राष्ट्रीयस्तर पर देश का नाम ऊंचा किया है। आस्कर पुरस्कार से सम्मानित इस प्रतिभा ने बेंडिट क्वीन, इलिजावेथ, दि फोर फेदर्स, इलिजाबेथ-दि गोल्डन ऐज जैसी फिल्में देकर विश्वमंच पर तहलका मचा दिया है। सरल, सहज और सौम्य व्यवहार के लिए चर्चित शेखर जी से साथ आत्मिक बातचीत शुरू हुई। व्यक्तिगत अनुभूतियों से लेकर व्यवसायिक अनुभवों तक बांटते हुए उन्होंने कहा कि अत्याधुनिक तकनीक के आगमन से निःसंदेह फिल्मों की गुणवत्ता में इजाफा हुआ है परन्तु खर्चे बढ गये हैं। प्रतियोगिताओं के नाम पर चालें चली जाने लगीं है। अहम का परचम फहराने लगा है।
थोडी सी सफलता मिलते ही सातवें आसमान को छू लेने वाली अनुभूतियों लोगों के अन्दर पनपने लगती है। भीड का दवाव, अनुमतियों की पेंचेदगी, लोगों की अतिमहात्वाकांक्षा जैसे दावानलों का प्रकोप बढता जा रहा है। ऐसे में पारदर्शी कार्य करना, उसके लिए संसाधन जुटाना और फिर बाक्स आफिस के ग्राफ पर खरा उतरना बेहद कठिन हो गया है। तिस पर कम समय में बेहतर कार्य की अपेक्षाओं का प्रादुर्भाव। कुल मिलाकर वर्तमान में घनात्मक प्रस्तुति के लिए स्वीकारना होंगी ऋणात्मक वातावरण में कार्य करने की चुनौतियां तभी कीर्तिमान स्थापित कर पाना संभव हो सकेगा।
व्यवसायिकता के अथाय समुन्दर से बाहर निकाते हुए हमने क्षेत्रीय कथानकों, भाषाओं और लोकेशन पर फिल्म निर्माण से संबंधित प्रश्न किया। प्रश्न की मार्मिकता को देखते हुए वह एक क्षण के लिए शांत हो गये। दूर कहीं शून्य में कुछ खोजने लगे। मुस्कुराते चेहरे ने गम्भीरता ओठ ली। देश की धरती को फिल्म की आवश्यकताओं के अनुरूप सम्पन्न निरूपित करते हुए उन्होंने कहा कि यह सब सम्भव है परन्त इस श्रमसाध्य सम्भव के पीछे समय की कमी, संसाधनों का अभाव, तकनीकी सहयोग की कठिनाइयां जैसे अनेक कारक हैं जिनका समाधान होने की स्थिति में बेहतर ही नहीं बल्कि बहुत बेहतर कार्य किया जा सकता है।
क्षेत्रीय कथानकों की प्रमाणिकता को लेकर विवाद, भाषाओं की गूढता और निर्माण के अनुरूप लोकेशन की कठिनाई के साथ-साथ बाजार की मांग के अनुरूप कार्य करने का जोखिम आम फिल्मकार उठाने से कतराता है। ऐसे में यदि सक्षम क्षेत्रीय भागीदारी दर्ज सक्रियता के साथ दर्ज होने को संकल्पित हो जाये तो फिर इस दिशा में भी उल्लेखनीय कार्य किये जा सकते हैं। फिल्मों को विवादित बनाकर लोकप्रियता का पैमाना बढाने के प्रश्न पर वे सतर्क हो गये। अतीत की अनेक फिल्मों का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि विवादित फिल्म और फिल्म को विवादित बनाना, दौनों अलग-अलग बातें है।
विवादित फिल्म का निर्माण तो शायद ही कोई करेगा परन्तु फिल्म को विवादित बनाने की स्थिति की गहन समीक्षा की जाना चाहिये। किसी भी बात को कहने के लिए ही नहीं कहना चाहिये बल्कि उसे चिन्तन तक ले जाकर चरित्र में उतारने जैसी स्थिति में पहुंचाना चाहिये। संवेदनशील प्रश्न को बहुत सफाई से हाशिये पर पहुंचाने की उनकी शैली प्रशंसा योग्य थी। चिन्तन, चरित्र जैसे भारी भरकम शब्दों का प्रयोग करके उन्होंने सामाजिक परिवेश को धीरे से स्पर्श किया। हम ने भी फिल्मों के प्रभाव से पुरातन संस्कृति पर की जा रही चोट को प्रश्न बनाकर उछाल दिया। वे मुस्कुराये बिना नहीं रह सके।
कलमकार और फिल्मकार में कार की समानता को रेखांकित करते हुए उन्होंने चुटकी लेते हुये कहा कि यह कार जब चमकने लगे तो चमत्कार हो जाता है। हम प्रत्येक चमत्कार को प्रेरणादायक ही नहीं मानते बल्कि उसकी शिक्षाओं को अंगीकार करने में विश्वास रखते हैं। बातचीत का क्रम जारी था कि उनके लिए मंच से बुलावा आ गया। हमने भी विचारों के आदान-प्रदान के क्रम को रोककर फिर कभी इस विषय पर चर्चा करने का आश्वासन लिया।
उन्होंने मुस्कुराते हुए हमारे साथ हुई बातचीत को स्मरणीय बताया और अगली विस्त्रित मुलाकात के लिए अभी से प्रतीक्षारत रहने की बात कही। वे मंच की बढ गये और हम अतिविशिष्ठ दीर्घा में अपनी निर्धारित सीट की ओर। इस बार बस इतना ही। अगले सप्ताह एक नये मुद्दे के साथ फिर मुलाकात होगी। तब तक के लिए खुदा हाफिज।
Dr. Ravindra Arjariya
Accredited Journalist
for cont. -
ravindra.arjariya@gmail.com
ravindra.arjariya@yahoo.com
+91 9425146253
No comments:
Post a Comment